शैलेंद्र राजन
देश में गुणवत्ता युक्त बीजों की भारी माँग है और सिर्फ़ सरकारी और निजी कंपनियों के बूते किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध करा पाना नामुमकिन है। बदलते हालात में किसानों को जागृत कर बीज गाँव विकसित करने होंगे जिससे उन्नत बीजों की उपलब्धता बढ़े, उत्पादकता बढ़े।
एक अनोखे प्रयास के तहत केन्द्रीय उपोषण बाग़वानी संस्थान, लखनऊ ने फ़ार्मर फ़र्स्ट परियोजना के तहत मलिहाबाद के एक गाँव मोहम्मद नगर तालुकेदारी के 10 किसानों को हल्दी की उन्नत क़िस्म ‘नरेन्द्र देव हल्दी-2’ क़िस्म के बीज दिये जिसमें करकयूमिन की मात्रा 5% जो स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभप्रद है। हल्दी में पाए जाने वाला करक्यूमिन स्तन एवं प्रोस्टेट कैंसर से बचाव करने में सहायक है।
संस्थान के निदेशक बताते हैं कि रूढ़िवादी मान्यताओं के चलते आम बागवान इसे बाग़ मे उगाना अशुभ मानते थे। गाँव के एक जागरूक किसान राम किशोर मौर्य ने पहल की और आम के बाग़ में इस हल्दी के बीज को अंतर फ़सल के रूप मे लगाया। उनके इस प्रयास को नौ और किसानों ने अपनाया। परिणाम शानदार रहे।
ये भी पढ़ें- ठंडी में पीजिये हल्दी वाला दूध, रहिये संक्रमण से दूर
बाग़ की ख़ाली ज़मीन उपयोग में आयी, आम के पेड़ों की छाया में भी सफलता पूर्वक 45 कुंतल प्रति एकड़ की उपज मिली जिसे किसानों ने 20-25 रुपये प्रति किलो के भाव से बीज के रूप मे बेच दिया। सबसे ख़ास बात इसके पौधे छुट्टा जानवर नही खाते।
डॉ. मनीष मिश्रा, प्रधान अन्वेषक बताते हैं कि देखते-देखते इस गाँव के तीस किसानों ने हल्दी की इस क़िस्म को आम के बाग़ मे सह-फ़सल के रूप मे अपनाकर इस गाँव को बीज गाँव मे तब्दील कर दिया।
संस्थान के एक और वैज्ञानिक डॉ. पवन गुर्जर ने किसानों को हल्दी प्रसंस्करण की नयी विधि सिखाई जिसमें हल्दी के कंदों को बिना उबाले, चिप्स बना कर, फिर इसे सुखा कर पीसने पर उत्तम क़िस्म का हल्दी पाउडर बनाया गया।
इस गाँव के एक किसान रमेश बताते हैं कि अब मैंने हल्दी चिप्स बनाने और डिहाइडऱेटर मे सुखाने मे महारत हासिल कर ली है और मैं हल्दी पाउडर पैक कर के बेचता हूँ।
प्रधान वैज्ञानिक डॉ. मनीष मिश्र बताते हैं कि हल्दी बीज ‘गाँव’ से उत्साहित होकर फ़ार्मर फ़र्स्ट परियोजना ने 10 किसानों को जिमीकंद की उन्नत क़िस्म राजेन्द्र दी जिसमें में एलकलायड कम होने से गले में खराश नहीं होती है। इस प्रकार के जिमीकंद की दिवाली में भारी माँग में होती है। किसानों ने जिमीकंद को आम के बाग़ों मे अंतर फ़सल के रूप मे अपनाया है। हल्दी और जिमीकंद ने इस गाँवों अभिजात्य बना दिया है। पचास से ज़्यादा किसान इस बीज मुहिम से जुड़ चुके हैं।
(लेखक केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ में निदेशक हैं)
ये भी पढ़ें- रामबाण औषधि है हल्दी, किसानों की गरीबी का भी इसकी खेती में है ‘इलाज’