जंगली सुअरों से बचने के लिए अभी तक कोई खास तकनीक या उपाय तो नहीं है। सुअर या शूकर बचने के लिए देसी और परम्परागत तरीके भी अपनाए जा सकते हैं।
छुट्टा गाय, नीलगाय, बंदर और जंगली सुअर ने किसान की नींद खराब कर रखी है। इन पशुओं का आतंक इनकी संख्या के मुताबिक अलग-अलग है। यूपी के बुंदेलखंड, पूर्वांचल, मध्य यूपी, मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड और गुजरात में छुट्टा गायों से किसान परेशान हैं। पहाड़ी इलाकों हिमाचल, उत्तराखंड आदि में जंगली सुअरों को आतंक है। कई इलाकों में बंदर भी किसानों का सिरदर्द बने हुए हैं। आज हम बात करेंगे सुअरों से फसल बचाव की। आखिर किसान अपने खेत कैसे बचाएं।
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इन सुअरों से बचने के लिए अभी तक कोई भी ऐसी दवा या केमिकल नहीं ईज़ाद हो सका है। न ही ऐसी कोई तकनीक विकसित हुई है जो किसानों को इनसे निज़ात दिला सकें। एक और समस्या यह है कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत इनको मारा भी नहीं जा सकता है। फिलहाल किसान इनको खुद अपने दम पर ही खेतों से भगा रहे हैं।
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किसान हर एक मौसम में अपनी फसल लगाने के समय से ही योजना बनाने लगते हैं, जबकि कुछ किसान ऐसे भी हैं, जो योजना बनाने में बहुत यकीन नहीं रखते हैं। फिर भी, वे योजना बनायें या न बनायें, अपनी फसलों से उम्मीदें तो लगाकर रखते ही हैं। ऐसे में अपनी उम्मीदों को मूर्त रूप में लाने में उनके सामने बहुत सारी मुश्किलें और चुनौतियाँ आती हैं जो उनके उत्पादन और सफलता पर लगातार प्रश्न करते हैं। जंगली सुअरों से फसल को बचाने की चुनौती उन्हीं में से एक है।
एक तरफ जब हम किसानों की आय दोगुनी करने की बात कर रहे हैं, उस समय में यदि किसान जंगली जानवरों से अपनी फसलें ही नहीं बचा पाएंगे तो आय का प्रश्न तो बहुत पीछे चला जाता है। सबसे पहले तो बात उस प्रबन्धन की होनी चाहिए, जिससे जो भी, जैसी भी फसल हो वो कटाई होने तक बची तो रहे। जब लागत निकलेगी तब तो हम आय के बारे में सोच पाएंगे। इस लिहाज से हम यहां बात कर रहे हैं जंगली सुअरों से खेतों को बचाने के उपायों पर।
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देसी और परंपरागत तरीके
जंगली सुअरों से बचने के लिए अभी तक कोई खास तकनीक या उपाय तो नहीं है। इनसे बचने के लिए देसी और परम्परागत तरीके भी अपनाए जा सकते हैं। अपने अनुभव और कुछ किसानों से बातचीत के आधार पर मेरे कुछ सुझाव हैं, जिन्हें अपनाकर किसान अपनी फसलों को बचा सकते हैं। सबसे बेहतर उपाय है कि खेतों की मेढ़ पर नागफनी जैसे पौधों की बाड़ लगाई जाए, साथ ही करौंदे भी लगाए जा सकते हैं। नीचे कुछ विशेष उपाय भी दिए गए हैं।
1. सुअर के गोबर की परत
जिस क्षेत्र में भी जंगली सुअरों का प्रकोप हो, उनसे बचने के लिए वहाँ उसी इलाके में पाले जा रहे पालतू सुअरों के गोबर का प्रयोग किया जा सकता है। इस गोबर को खेत में ज़मीन से एक फीट की ऊँचाई तक, एक फीट चौड़ी जगह पर डाला जा सकता है। इस गोबर को देखकर जंगली सुअरों को यह आभास होगा कि यहाँ उनके अलावा कोई और जानवर भी हैं, फिर धीरे-धीरे इस डर से वे वहाँ आना बन्द कर देंगे।
2. रास्ते पर इंसान के बालों का प्रयोग
गाँव में नाई की दुकान पर जो कटे हुए बाल इकठ्ठा होते हैं, वो कूड़े में फेंक दिए जाते हैं। किसान नाई से वो बाल लेकर उसे उस रास्ते पर बिखरा दें जिनसे होकर सुअर खेतों तक पहुँचते हैं। इसके बाद जब भी सुअर उस रास्ते से आएंगे और हवा चलेगी तो छोटे-छोटे बाल उड़कर उनकी नाक में पहुँचेंगे, जो उन्हें साँस लेने में दिक्कत पैदा करेंगे।
3. सुअर के गोबर के उपले को सुलगाना
पालतू सुअरों के गोबर में खाने वाली लाल मिर्च मिलाकर उनके उपले बनाए जा सकते हैं। किसान मिटुटी की हाँडी में इन उपलों को सुलगाकर खेतों के किनारे किनारे रख दें। इन सुलगते हुए उपलों से जो अजीब सी गंध उठेगी, वो जंगली सुअरों को किसी अन्जान खतरे जैसा एहसास कराएगी।
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4. पलंग के पट्टों से बाड़ बनाना
पलंग बनाने में प्रयोग होने वाले पट्टों से खेतों के किनारे बाड़े बना दिए जायें। बाड़े में लगे पट्टों पर स्प्रेयर से मिट्टी के तेल (केरोसिन ऑयल) का छिड़काव कर दें। बेहतर प्रभाव के लिए यह प्रक्रिया हर हफ़्ते दोहराई जा सकती है।
5. रंगीन साड़ियों की घेराबन्दी
बेकार हो चुकी रंगीन साड़ियों से खेतों के किनारे घेराबन्दी की जा सकती है। दूर से ही इन रंगीन साड़ियों को देखकर सुअरों को लगेगा कि खेतों में कोई काम चल रहा है। उन्हें खेतों में लोगों की रिहाइश का आभास होगा जिसके चलते भी उनका वहाँ आना कम हो जाएगा। इस स्थिति में वो आक्रामक के बजाए बचाव की भूमिका में आ जाएंगे।
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6. कुत्तों से पहरेदारी
अगर खेतों के आस पास कुत्ते रखे जायें तो वो सुअरों के आने पर सिग्नल देने का काम करेंगे। कुछ कुत्ते जो आक्रामक स्वभाव के होते हैं वो सुअरों को दौड़ाकर उनको भगाने के काम भी आ सकते हैं। इनमें कुछ देसी प्रजाति के कुत्ते भी आते हैं जैसे रामपुर हाउण्ड।
जंगली सुअर की समस्या इस लिहाज से भी एक बड़ी समस्या है कि अभी तो किसान स्वयं ही इनको भगाने में लगे हुए हैं और फिर ये भड़के हुए जंगली जानवर तो तों की रखवाली कर रहे किसानों पर भी हमला कर सकते हैं। इसके साथ ही इन सुअरों के आक्रमण का कोई समय भी नहीं है, ये दिन-रात कभी भी आ सकते हैं।
जंगली सुअर से बचने के लिए इन तमाम परम्परागत उपायों को समेकित रूप से प्रयोग में लाना चाहिए नाकि किसान किसी एक तरीके पर पूरी तरह निभर्र होकर बैठ जाएं। किसानों को चाहिए कि वे लगातार इन जानवरों की आदतों पर ध्यान देते रहें जैसे उनकी चाल, उनकी आक्रामक प्रवृत्ति आदि। जब किसान स्वयं ही इनके व्यवहार को समझ जाएंगे तो वे इनसे बचने के तमाम देसी उपायों पर खुद ही प्रयोग कर पाएंगे।
(लेखक कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया सीतापुर में कृषि वैज्ञानिक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)