कोयंबटूर (भाषा)। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के एक शीर्ष अधिकारी ने यहां सोमवार को कहा कि गन्ने में प्रमुख बीमारियों की प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए देश में उलब्ध इसकी जंगली प्रजातियों का उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि गेहूं में फंगस (कवक) रोग की रोकथाम के लिए ऐसे ही प्रयोग किए जा चुके हैं।
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आईसीएआर के महानिदेशक डॉ त्रिलोचन महापात्रा ने कहा, “शोधकर्ताओं को सीमा पार के विदेशी रोगजनक तत्वों के प्रवेश को रोकने के लिए प्रभावी संगरोध तरीके विकसित करने चाहिए तथा पौध संरक्षण की चुनौतियों का हल तलाशने के लिए वैश्विक संघ बनाना चाहिये।” महापात्रा, कृषि शोध एवं शिक्षा विभाग के सचिव भी हैं। वह अंतरराष्ट्रीय गन्ना प्रौद्योगिकीविद संघ की 12 वीं पैथोलॉजी कार्यशाला का उद्घाटन कर रहे थे। इस पांच दिवसीय कार्यशाला का संयुक्त रूप से आयोजन यहां आईसीएआर-गन्ना प्रजनन संस्थान और गन्ना शोध एवं विकास सोसायटी द्वारा रिसर्च एंड डेवलपमेंट द्वारा किया गया है।
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देश में कोयम्बटूर 0238 और कोयम्बतूर 86032 जैसी गन्ने की प्रमुख किस्मों को विकासित कर चीनी क्रांति’ में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए संस्थान को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि इस साल देश में 3.2 करोड़ टन चीनी उत्पादन के चलते इथेनॉल नीति में बदलाव का मौका मिला है। उन्होंने इसे एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है।
फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के आईएसएससीटी कार्यकारी समिति की अध्यक्ष डॉ फिलिप रोटे ने कहा कि कार्यशाला भारत में पहली बार आयोजित की जा रही थी और आईएसएससीटी एक वैश्विक संगठन है जिसका मुख्यालय मॉरीशस में है। सोसाइटी का गठन 1925 में हुआ था और अब तक उसने 29 सम्मेलन आयोजित किए हैं।