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उत्पादन में आगे, दुग्ध प्रसंस्करण में पीछे यूपी

दूध

लखनऊ। भारत में दूग्ध उत्पादन का 18 फ़ीसदी हिस्सा उत्तर प्रदेश पूरा से आता है, लेकिन अच्छे उत्पादन के बावजूद दुग्ध प्रसंस्करण व दुग्ध उत्पादों के निर्माण व विपणन में यूपी अभी भी गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों से काफी पीछे है।

प्रदेश में दुग्ध उत्पादों के विपणन और इसके प्रसंस्करण में कमी की मुख्य वजह बताते हुए प्रादेशिक सहकारी डेयरी फेडरेशन, उत्तर प्रदेश (पराग) के वरिष्ठ प्रभारी (आपरेशन एवं मेटीरियल पर्चेज़) बीबी बैरा बताते हैं, “अन्य प्रदेशों की तुलना में यूपी में दुग्ध उत्पादन बहुत अधिक होता है, इसलिए यहां पर कम्पिटीशन बहुत है। ग्राहक अधिकतर ब्रांडेड दुग्ध उत्पाद लेते हैं, इसलिए छोटी दुग्ध उत्पाद बेचने वाली कंपनियां बंद हो जाती हैं। इसका असर दुग्ध प्रसंस्करण पर भी पड़ता है।’’

कृषि मंत्रालय भारत सरकार के पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग के अनुसार वर्ष 2011-12 से 2013-14 के बीच गुजरात में मक्खन, पनीर, दही, घी, जैसे डेयरी उत्पाद बनाने वाली इकाइयों की संख्या में 26 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई, जबकि उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या पांच फीसदी घट गई।

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गुजरात के जूनागढ़ जिले में बड़ी संख्या में लोग दुग्ध उत्पादन व्यवसाय से जुड़े हैं। जिले में अधिकतर पशुपालकों व्दारा लाया गया दूध अमूल खरीद लेता है। जूनागढ़ जिले के रहने वाले पशुपालक अर्पण राठौर (58 वर्ष) बताते हैं, “जिले के कई ब्लॉक में पशुपालकों ने पैसा जमा करके मिल्क चिलिंग प्लांट लगवाए हैं। इसमें किसान एक से दो दिनों तक दूध स्टोर करते हैं, फिर इस दूध को अमूल कंपनी का वहन आकर ले लेता है।

इससे काफी समय तक दूध की क्वालिटी गिरती नहीं है।’’ उत्तर प्रदेश में पशुपालकों के पास अधिक तकनीकी सुविधाओं का न होना भी पिछड़ते दुग्ध प्रसंस्करण की मुख्य वजह है। सुविधाएं न होने की वजह से पशुपलकों व्दारा पराग व अमूल जैसे प्लांटों में लाया गया दूध प्रसंस्करण के मानकों पर खारा नहीं उतरता है।

प्रदेश में डेयरी उद्योग के विकास की नोडल एजेंसी प्रादेशिक कॉऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन है। डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश में चारा विकास, महिला डेयरी, कामधेनु, मिनि व माइक्रो कामधेनु जैसी योजनाएं क्रियान्वित की गई थीं, लेकिन मौजूदा समय में इन योजनाओं में से अधिकतर योजनाएं बंद हो चुकी हैं।

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उत्तर प्रदेश में घटते दुग्ध प्रसंस्करण को पटरी पर लाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अमूल प्लांट की मदद से प्रदेश का दुग्ध प्रसंस्करण अनुपात को मौजूदा 12 फीसदी से बढ़ाकर 30 फीसदी करने का लक्ष्य रखा है।

बीबी बैरा, संगठित क्षेत्र में दूग्ध की उपलब्धता में कमी को भी घटते दुग्ध प्रसंस्करण का एक कारण मानते हैं। वो आगे बताते हैं, “गुजरात और महाराष्ट्र के पशुपालक बिजनेस माइंडेड अधिक होते हैं, जबकि यहां के पशुपालक दुग्ध उत्पादन का कुछ हिस्सा स्वयं उपयोग के लिए रखते हैं। अन्य राज्यों के दुग्ध उत्पादन का 99 फीसदी हिस्सा संगठित क्षेत्र में जाता है। यूपी में दुग्ध उत्पादन का 40 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र में खप जाता है, जबकि 60 फीसदी भाग ऑर्गेनाइज़ सेक्टर में जाता है।’’

किसानों से दूध खरीदकर पराग बाज़ार में जल्द उतारेगा  मक्खन, घी, छाछ, क्रीम, यूएचटी फ्लेवर्ड मिल्क और फ्लेवर्ड चीज़ जैसे दुग्ध उत्पाद।

दुग्ध प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ाने के लिए पराग खोलेगा 10 नए डेयरी प्लांट –

प्रदेश में दुग्ध प्रसंस्करण क्षेत्र में पशुपालकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रादेशिक सहकारी डेयरी फेडरेशन, उत्तर प्रदेश (पराग) प्रदेश में 10 नई दुग्ध प्रसंस्करण इकाई खोलने जा रही है। इन इकाईयों किसानों से दुग्ध खरीदकर उससे पैक्ड दूध, पनीर, मक्खन, घी, छाछ, क्रीम, यूएचटी फ्लेवर्ड मिल्क और फ्लेवर्ड चीज़ जैसे दुग्ध बनाएं जाएंगे।

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‘’हम प्रदेश में अक्टूबर 2018 तक वाराणसी, मेरठ, लखनऊ, बरेली, गोरखपुर, फिरोज़ाबाद , मुरादाबाद, कन्नौज, फैज़ाबाद और कानपुर नगर जिलों में एक लाख लीटर से लेकर चार लाख लीटर क्षमता के दुग्ध प्रोसेसिंग प्लांटों की स्थापना करने जा रहे हैं। इससे प्रदेश में दुग्ध प्रसंस्करण क्षेत्र को अधिक मजबूती मिलेगी।’’ यह बताया प्रादेशिक कॉऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन, उत्तर प्रदेश के प्रभारी अभियंता (मशीनरी) आरएस कुशवाहा ने।

उत्तर प्रदेश में मौजूदा समय में पराग और अमूल कंपनियां बड़ी मात्रा में दुग्ध प्रसंस्करण क्षेत्र में काम कर रही हैं। पराग सहकारिता क्षेत्र में काम रही हैं, वहीं अमूल निजी क्षेत्र में पशुपालकों की मदद कर रही है। अमूल ने वर्ष 2015 में प्रदेश में लखनऊ,कानपुर और वाराणसी में दूग्ध प्रसंस्करण इकाईयां स्थापित की हैं। इन इकाइयों में प्रतिदिन एक लाख किसानों की औसत से करीब पांच लाख लीटर दूध खरीदता है। गुजरात में अमूल 30 लाख किसानों से प्रतिदिन की औसत में 177 लाख लीटर दूध खरीदता है।

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