निर्यात पर संकट: एंटीबायोटिक्स की वजह से अमेरिका ने भारतीय झींगा मछलियों की खेप लौटाई

Mithilesh DharMithilesh Dhar   16 Feb 2019 9:00 AM GMT

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निर्यात पर संकट: एंटीबायोटिक्स की वजह से अमेरिका ने भारतीय झींगा मछलियों की खेप लौटाई

लखनऊ। सरकार भले ही वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कृषि निर्यात पर जोर दे रही है, लेकिन धड़ल्ले से कीटनाशकों का उपयोग और मानकों का उल्लंघन इस राह में रोड़े खड़े कर रहा है। इसी कारण अमेरिका ने भारतीय झींगा मछलियों की बड़ी खेप वापस लौटा दी है। हालिया रिपोर्ट के अनुसार कृषि जिंसों के निर्यात में 46 फीसदी तक की गिरावट आयी है। बासमती चावल, झींगा मछली और सब्जियों की गुणवत्ता पर उठते सवालों के कारण ये संकट और बढ़ता जा रहा है।

"पिछले दो साल के दौरान मेरे यहां से दूसरे देशों में जाने वाली झींगा मछलियों की मांग आधी तक घट गयी है। कई बार खेप वापस भेज दी गयी। लोकल बाजारों में इसकी मांग तो है लेकिन दाम सही नहीं मिलता। ऐसे में बाजार में नकारात्मक खबरें फैलती हैं और इसका असर यह होता है कि कीमत और कम हो जाती है," पटना के मछली व्यापारी और किशोर फिश कंपनी के डायरेक्टर किशोर कुमार गाँव कनेक्शन से बताते हैं।

अमेरिका के खाद्य एवं दवा प्रशासक (एफडीए) ने प्रतिबंधित एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल वाले भारतीय झींगों की खेपों पर नाराजगी जताई है, साथ ही 26 झींगा खेपों को ठुकरा दिया है। भारतीय झींगा निर्यातकों के लिए अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है और इसका भारत से कुल समुद्री खाद्य निर्यात में लगभग 32 प्रतिशत का योगदान है। एफडीए ने गाँव कनेक्शन को ये जानकारी मेल पर दी।


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इससे पहले भी कई यूरोपियन देश झींगा पर सवाल उठा चुके हैं। हालांकि अमेरिका और वियतनाम को छोड़कर अन्य देशों में भारतीय झींगा की मांग बढ़ी है, लेकिन अगर इन देशों में मांग बराबर की रही होती तो कृषि निर्यात की सूरत बदल सकती थी।

उधर कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की रिपोर्ट के अनुसार भारत के कृषि जिंस के निर्यात में 46 फीसदी तक की कमी आयी है। ये कमी इसलिए भी भयावह लगती है क्योंकि केंद्र सरकार ये बार-बार कहती है कि किसानों की आय दोगुनी करने में निर्यात की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2018 और दिसंबर 2018 के बीच गेहूं निर्यात गिरकर 1,35,284 टन (3.5 करोड़ डॉलर) पर आ गया जबकि पिछले वर्ष इस समय यह 2,49,702 टन (7.2 करोड़ डॉलर) था।

चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में बासमती चावल, भैंस के मांस, मूंगफली और फल निर्यात में भी गिरावट दर्ज हुई है। जिन देशों ने बासमती की गुणवत्ता पर सवाल उठाये थे वहां निर्यात में भारी कमी आयी है।

वर्ष 2017-18 के दौरान सऊदी अरब ने भारत से 7,92,482 कुंतल बासमती चावल आयात किया था, जबकि इस वित्त वर्ष (अप्रैल 2018 से नवंबर 2019) में अभी तक यह आंकड़ा 3,78,756 कुंतल तक ही पहुंच पाया है। इसी तरह 2017-18 में भारत ने यूएई को 4,29,324 कुंतल जबकि इराक और कुवैत को क्रमश: 4,29,965 और 1,66,873 कुंतल बासमती निर्यात किया था जबकि इस वित्तीय वर्ष अभी तक इन देशों के निर्यात का आंकड़ा क्रमश: 2,71,945, 2,07,568 और 1,04,218 कुंतल तक ही पहुंच पाया है। गिरावट साफ देखी जा सकती है।


यूरोपीय संघ ने बासमती चावल में फंफूदीनाशक ट्रासाइक्लाजोल के लिए अवशेष सीमा कम कर 0.01 एमजी (मिलीग्राम) प्रति किलो निर्धारित किया था, वहीं अब सऊदी फूड एंड ड्रग अथॉरिटी ने नई गाइडलाइंस के तहत बासमती धान में कीटनाशकों के प्रयोग को 90 फीसदी तक कम करने को कहा था, जिसके बाद अप्रैल 2018 से जून 2018 तक ही निर्यात में सात फीसदी की गिरावट आ गयी। हालांकि ईरान से पाबंदी हटने के बाद स्थिति में थोड़ा सुधार जरूर आया।

इस बारे में बासमती चावल के सबसे बड़े निर्यातकों में शुमार कोहिनूर फूड्स के संयुक्त प्रबंध निदेशक गुरनाम अरोड़ा ने 'गाँव कनेक्शन' को बताया, "निर्यात में कमी काफी समय से आ रही है। हालांकि ईरान से पाबंदी हटने के बाद स्थिति में थोड़ा सुधार जरूर आया है लेकिन यूएई और सऊदी बड़े खरीदार हैं, अगर कीटनाशकों की बात नहीं होती तो निर्यात और ज्यादा होता।"

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उधर सब्जियों के बाद झींगे पर संकट और गहराता जा रहा है। पिछले साल एंटीबायोटिक के ज्यादा इस्तेमाल के कारण यूरोपियन देशों ने आयात होने वाली मछलियों की आवश्यक जांच संख्या 10 से बढ़ाकर 50 फीसदी तक कर दिया था, इसमें झींगा मछलियों पर सवाल उठा था। वहीं अब अमेरिका ने भारत के 26 झींगा खेपों को वापस भेज दिया है। ये खेपें जनवरी 2019 में रद्द की गईं कुल 175 समुद्री खाद्य खेपों की 14.9 प्रतिशत हैं।


एफडीए ने गाँव कनेक्शन को मेल पर जानकारी दी कि यह संख्या वर्ष 2017 और 2018 में रद्द की गईं कुल खेपों से कुछ ही कम है। यानी जितनी खेपों को 2017 और 2018 में ठुकराया गया था, उससे कुछ ही कम खेपें एक महीने में ही रद्द कर दी गईं। मेल से मिली जानकारी के अनुसार जनवरी 2019 में वापस की गयीं खेपों की कुल संख्या 2018 में ठुकराई गईं खेपों की 50 फीसदी है और सभी ऑर्डर प्रतिबंधित एंटीबायोटिक्स की वजह कैंसिल किया गया है।

इससे पहले 2016 अगस्त में भी भारी मात्रा में झींगा मछलियों की खेप लौटा दी गयी थी। तब एफडीए ने एंटीबायोटिक्स की वजह से 35 झींगा खेपों के प्रवेश को रोक दिया था जिनमें से 24 भारत से थीं।

देश में सीफूड की सबसे बड़ी निर्यातक फाल्कन मरीन एक्सपोट्र्स लिमिटेड (कटक) के अध्यक्ष तारा पटनायक ने पिछले दिनों कहा था, "भारतीय झींगा निर्यात में तेजी आ रही थी, यह 2016-17 में 5 अरब डॉलर पार कर चुका है, यह सात अरब डॉलर तक पहुंच सकता है, लेकिन एंटीबायोटिक्स के कारण बड़ी परेशानी आ सकती है।"

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एफडीए ने यह भी बताया कि अमेरिका भारत से 2.2 बिलियन डॉलर (15 अरब) से ज्यादा का कारोबार करता है बावजूद इसके वहां से आने वाली मछलियों की जांच नहीं की जाती। इसलिए 51 फीसदी से ज्यादा मछलियां वापस भेजी जा रही हैं।

इस बारे में समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण यानि एमपीईडीए के अध्यक्ष ए. जयतिलक ने पिछले दिनों एक प्रेस वार्ता में कहा था ''एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल से समस्या बढ़ती ही जा रही है। सरकार के साथ-साथ निर्यातकों को भी इस ओर गंभीर होना पड़ेगा। हम मछली पालकों को भी एंटीबायोटिक्स के नुकसान के प्रति जागरूक कर रहे हैं।"

भारत में झींगा उत्पादन के लिए अनुकूल अनुमानित खारा पानी करीब 11.91 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला है जो 10 से अधिक राज्यों और केंद्र शासित राज्यों में, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पॉन्डिचेरी, केरल, कर्नाटक, गोआ, महाराष्ट्र और गुजरात है। इनमें से अभी मात्र 1.2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर ही झींगा पालन हो रहा है।

  

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