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दाल आयात के बावजूद नहीं घटेंगी कीमतें

India

लखनऊ। देश में दलहन आयात अप्रैल से दिसंबर के दौरान 50 लाख टन रहने की संभावना है। इस आयात में निजी कारोबारियों की भूमिका अहम रहने वाली है। लेकिन एग्री एक्सर्ट्स और आर्थिक मामलों के जानकार मानते हैं कि सरकार की इस कोशिश का असर दाल की कीमतों पर कुछ ख़ास नहीं पड़ने वाला है।

इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन (आईपीजीए) के सेक्रेटरी एसपी गोयनका का कहना है, ”सरकार के इतनी बड़ी मात्रा में दाल आयात करने के बावजूद कीमतों पर लगाम लगने की संभावना कम है। देश में अब तक तकरीबन 12-13 लाख टन दलहन का आयात हो चुका है। जबकि निजी कारोबारियों के किए गए सौदों से 30 लाख टन दलहन सितंबर से दिसंबर के बीच भारत आएगी।”

आयातित दलहन की भारत लागत के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि पीले मटर की लागत 32-33 रुपए, तुअर दाल की 92-93 रुपए, उड़द के लिए 105-106 रुपए, मसूर के लिए 65 रुपए और मूंग के लिए 58-60 रुपए प्रति किलोग्राम बैठ रही है।

गोयनका ने कहा, ”आयातक दलहन को मिलर्स और थोक विक्रेताओं को काफी कम मार्जिन पर बेच रहे हैं। इस साल दलहन का कुल आयात मॉनसून पर निर्भर करेगा। अगर मॉनसून अनुमान के मुताबिक आता है तो घरेलू उत्पादन बढ़ेगा। ऐसे में चालू वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में आयात कम होगा।”

दलहन के कम उत्पादन की वजह से ही रीटेल बाजार में अरहर और उड़द दाल की कीमतें 180 और 198 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गईं हैं। चना दाल 105 रुपए और मूंग दाल 130 रुपए, मसूर दाल 110 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रही है। सरकार ने दलहन का बफर स्टॉक सीमा बढ़ाकर आठ लाख टन कर दी है और आयात बढ़ाकर घरेलू सप्लाई को बढ़ाने का फैसला किया है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पल्सेज़ रिसर्च के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ पुरुषोत्तम कुमार का कहना है, ”हर साल मांग पूरी करने के लिए दाल का आयात करना ही समाधान नहीं है। हमें किसानों को दाल की खेती करने के लिए और प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है। दाल के भंडारण के तरीके को और बेहतर बनाने की ज़रूरत है। अगर सरकार ये सोच रही है कि दाल का आयात करने से कीमतों पर लगाम लग जाएगी तो ऐसा होना मुश्किल लग रहा है। दुनिया का 70 फीसदी दाल भारत में ही पैदा होता है बावजूद इसके हमें बाहरी मुल्कों से दाल आयात करना पड़ता है लेकिन उसके लिए भी विकल्प कम ही हैं।”

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