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बरबरी बकरियां आपको कर सकती हैं मालामाल, पालना भी आसान, देखिए वीडियो

अगर कोई बकरी पालन शुरू करना चाहता है तो मथुरा स्थित केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान में समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता है। लखनऊ में स्थित द गोट ट्रस्ट द्वारा भी प्रशिक्षण दिया जाता है और यहां से इस नस्ल की बकरी को खरीदा भी जा सकता है।
फायदा

लखनऊ। अगर आप बकरी पालन शुरू करना चाह रहे हैं तो आप बरबरी प्रजाति की बकरी पालकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। यह बकरी एक दिन में एक किलो दूध तो देती ही है साथ ही इसका मांस भी ज्यादा स्वादिष्ट होता है।

लखनऊ के द गोट ट्रस्ट के संमवयक विनय गौतम कहते हैं “इस बकरी को कम लागत में और किसी भी स्थान पर पाला जा सकता है। इनका रख-रखाव भी काफी आसान होता है। बाजार में इसके मांस की अच्छी कीमत भी मिलती है और बकरीद में पशुपालों को इसके अच्छे रेट मिलते हैं।”

बरेली जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर भोजीपुरा ब्लॅाक के मो. शारुन खान (30 वर्ष) पिछले कई वर्षों से बरबरी बकरी पालन कर रहे हैं। शारुन कहते हैं, “इन बकरियों को बीमारी भी कम होती है। इनको चराने के लिए बाहर नहीं ले जाना पड़ता है।ये एक साल में बिकने के लिए तैयार हो जाती हैं। अन्य बकरियों के मुकाबले यह बकरियां ज्यादा फुर्तीली होती है।”

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बरबरी बकरी छोटे कद की होती है लेकिन इसका शरीर काफी गठीला होता है। शरीर पर छोटे-छोटे बाल पाये जाते हैं। शरीर पर सफेद रंग के साथ भूरा और सुनहरा रंग का धब्बा पाया जाता है। इसकी नाक बहुत ही छोटी और कान खड़े हुए होते हैं।

बरबरी नस्ल की बकरियां ज्यादातर उत्तर प्रदेश के ऐटा, मैनपुरी, इटावा, आगरा, मथुरा और इससे लगे क्षेत्रों में ज्यादा पाली जाती हैं। हर छह साल में देश में होने वाली (जो 2012 में हुई ) पशुगणना (इसे 19वीं पशुगणना कहते हैं) के मुताबिक भारत में 7.61 करोड़ बरबरी बकरियां हैं। पूरे विश्व में बकरियों की कुल 102 प्रजातियां हैं जिसमें से सिर्फ 20 प्रजातियां ही भारत में पायी जाती हैं।

अगर कोई बकरी पालन शुरू करना चाहता है तो प्रशिक्षण ले सकता है। मथुरा स्थित केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान में समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता है। लखनऊ में स्थित द गोट ट्रस्ट द्वारा भी प्रशिक्षण दिया जाता है और यहां से इस नस्ल की बकरी को खरीदा भी जा सकता है। बरबरी बकरी को आप शेड में पालना चाहे तो एलीवेटेड प्लास्टिक फ्लोरिंग विधि (स्टाल-फेड विधि) से भी पाल सकते है। 

स्टाल-फेड विधि के लाभ

  • बकरियों को बाहर चराने की ज़रूरत नहीं नहीं पड़ती है।
  • उनको शेड में ही (जमीन पर या जमीन से उठा हुआ) अलग किया जा सकता है।
  • चारे की मात्रा और गुणवत्ता को विभिन्न उम्र की बकरियों के अनुसार नियंत्रित किया जाता है।
  • चराने के दौरान बाहर से आने वाली बिमारियों से सुरक्षा होती है।
  • इस विधि से बना फार्म कम से कम 10 वर्ष और उससे अधिक दिन तक चलता है।
  • फ्लोर और पार्टिशन को इन्टर-लॉकिंग करके आसानी से कुछ दिनों में ही फ्लोर तैयार किया जा सकता है।
  • कम समय में उचित रखरखाव और आसान धुलाई।
  • 16 मिमी होल से मैगनीं और यूरीन नीचे गिर जाता है तथा फ्लोर एकदम साफ-सुथरा रहता है।
  • किसी तरह की मरम्मत की जरुरत नहीं पड़ती।
  • वाटर प्रूफ वर्जिन प्लास्टिक का प्रयोग जिससे बकरी को नमी और गर्मी से बचाता है।
  • पानी गिरने पर भी कोई फिसलन नहीं होती।
  • रोज साफ करने की आवश्यकता नहीं होती।

केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान

0565-2763320

टोल फ्री नंबर — 1800-180-5141 पर संपर्क कर सकते है।

अन्य ऩ 0522-2741991-2741992

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