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भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान ने किसानों की आय बढ़ाने हेतु यूपी के 8 गाँवों को लिया गोद 

Farmers

नई दिल्ली (भाषा)। खेती की नवीनतम तकनीक और पद्धति अपनाकर अगले कुछ वर्षो में गन्ना किसानों की आय दोगुना करने के मकसद से भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ ने निजी चीनी मिल के साथ मिलकर इस सिलसिले में प्रायोगिक तौर पर उत्तर प्रदेश के आठ गाँवों को गोद लिया है।

आईआईएसआर के निदेशक डॉ. एडी पाठक ने को बताया, “इस पहल के तहत आरंभ में आठ गाँवों को गोद लिया गया है, जहां के गन्ना किसानों की आय को वर्ष 2021 तक दोगुना करने की योजना है। सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य बनाया है।”

उन्होंने कहा, “इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमारी ओर से किसानों को प्रौद्योगिकीय सहायता, खेती के नवीनतम तौर तरीके और गन्ने की नई किस्में उपलब्ध करायी जाएंगी। इन कार्यो के लिए श्रीराम समूह की चीनी मिल, डीएससीएल आर्थिक सहायता उपलब्ध कराएंगी।

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इस कार्य की सफलता के बाद देश के जो भी राज्य या जिले इस मॉडल को अपनाना चाहेंगे उन्हें समान तकनीकी सहायता, बीज के किस्म इत्यादि उपलब्ध कराये जाएंगे। आईआईएसआर के अधिकारियों ने बताया कि उसके लखनऊ केंद्र तथा भारतीय कृषि शोध संस्थान (आईसीएआर), निजी चीनी मिलों और किसानों की सक्रिय भागीदारी से वर्ष 2016-17 में उत्तर प्रदेश ने 87.2 लाख टन का रिकॉर्ड चीनी उत्पादन किया गया।

डॉ. पाठक ने कहा कि संस्थान गोद लिए गाँव के गन्ना किसानों की आय को दोगुना करने के लिए उन्हें गन्ने के साथ साथ आलू, तिलहन और दलहन जैसी फसलों की सह फसली खेती को प्रोत्साहित करेगी ताकि उन्हें अतिरिक्त आय हो सके। इसके अलावा किसानों को खेती के अलावा मत्स्यपालन, कुक्कुटपालन, दुधारु मवेशीपालन जैसी सहायक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाएगा।

आईआईएसआर, लखनऊ ने 2020-21 तक गन्ना किसानों की आय दोगुना करने के इस प्रयोग के लिए जिन आठ गाँवों को गोद लिया गया है वे हरदोई और लखीमपुर खीरी के आसपास के गाँव हैं। गन्ने की सीओ 0238 और सीओएलके 94184 और कुछ किस्मों को व्यापक स्तर पर अपनाने के बाद गन्ने की उत्पादकता में अच्छा सुधार हुआ है और गन्ने से चीनी की प्राप्ति में लगभग छह से आठ प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इसके साथ-साथ खेत की मेड़ बनाने, संस्थान के द्वारा तैयार की गई गन्ना बुवाई और पेड़ी (रैटून) प्रबंधन के नवीनतम यंत्रों के उपयोग से उत्पादन बढ़ाने में सफलता मिली और कीटनाशकों इत्यादि की लागत में भी कमी आयी है।

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