इंदौर (भाषा)। बुवाई क्षेत्र के साथ प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादकता में कमी के चलते मौजूदा खरीफ सत्र के दौरान देश में सोयाबीन का उत्पादन करीब 17 प्रतिशत घटकर 91.46 लाख टन रह सकता है। प्रसंस्करणकर्ताओं के इंदौर स्थित संगठन सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) ने यह अनुमान जाहिर किया है।
सोपा के एक अधिकारी ने आज बताया कि इस बार देश में 101.56 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन बोया गया, जो वर्ष 2016 के खरीफ सत्र के मुकाबले लगभग 7.5 प्रतिशत कम है, इसके साथ ही, सोयाबीन की प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादकता पिछले खरीफ सत्र के मुकाबले करीब 10 फीसद घटकर 901 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रह गयी है।
उन्होंने बताया कि देश के सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक मध्यप्रदेश में इस बार 45.36 लाख टन सोयाबीन पैदावार का अनुमान है। महाराष्ट्र में 31.89 लाख टन और राजस्थान में 7.63 लाख टन सोयाबीन पैदावार हो सकती है। देश के अन्य राज्यों में सोयाबीन की कुल 6.58 लाख टन उपज अनुमानित है।
सोपा के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2016 के खरीफ सत्र के दौरान देश में 109.71 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन बोया गया था, जबकि इसकी पैदावार 109.92 लाख टन रही थी।
जानकारों के मुताबिक बीते खरीफ सत्र के दौरान भावों में गिरावट के चलते किसानों को सोयाबीन की फसल निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी नीचे बेचनी पड़ी थी। इस कारण परंपरागत रूप से सोयाबीन उगाने वाले कई किसानों ने उपज के बेहतर भावों की आशा में मौजूदा खरीफ सत्र में खासकर तुअर (अरहर), मूंग और उडद जैसी दलहनी फसलों की बुवाई मुनासिब समझी। इससे सोयाबीन के रकबे में जाहिरतौर पर गिरावट आयी।
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जानकारों ने बताया कि अगस्त के पहले पखवाड़े में मध्यप्रदेश और देश के अन्य प्रमुख सोयाबीन उत्पादक इलाकों में पर्याप्त बारिश नहीं होने से इस तिलहन फसल की उत्पादकता पर बुरा असर पड़ा। कुछ इलाकों में सोयाबीन कटाई से पहले भारी बारिश से भी फसल की पैदावार प्रभावित हुई।