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‘ज़रूरत पूरी करने के लिए भारत को मंगानी होंगी 1 करोड़ टन दालें’

India

लखनऊ। यदि भारत अपनी दालों की खपत और उत्पादन के अंतर को घटाना चाहता है तो उसे एक करोड़ टन दलहन का आयात करना पड़ेगा, जो कि सरकार के लिए भयंकर चुनौती है। यह बात बाज़ार पर निगरानी रखने वाली संस्था एसोचैम ने एक नवंबर को जारी अपने शोध की रिपोर्ट में कही।

शोध रिपोर्ट के अनुसार, ”वर्ष 2015-16 में वर्षा की कमी के चलते इस बार दलहन का उत्पादन एक करोड़ 70 लाख टन रहने का अनुमान है जो कि वर्ष 2014-15 के मुकाबले थोड़ा कम है। लेकिन दालों की मांग में आई तेज़ी को देखते हुए अनुमानत: देश को एक करोड़ एक लाख टन दालहन का आयात करना पड़ सकता है।”

हालांकि इस बार दलहन उत्पादन दूसरे देशों में भी कम है जिसके कारण मांग-आपूर्ति के अंतर को कम करना देश के लिए बहुत मुश्किल होगा। भारत कुल दलहन आयात का लगभग 55 फीसदी हिस्सा कनाडा से मंगाता है। लेकिन इस वर्ष कनाडा के कृषि मंत्रालय ने भी अपने यहां अगस्त से शुरू हुए फसल सीजन 2015-16 के दौरान अधिकतर दलहन की फसलों के उत्पादन में कमी का अनुमान लगाया है। 

भारत के कृषि मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2014-15 में देश में 40 लाख टन से ज्यादा दलहन का आयात हुआ है और इसमें से सबसे ज्यादा करीब 55 फीसदी यानि 21.95 लाख टन का आयात अकेले कनाडा से ही हुआ है। भारत कनाडा से मुख्यत: मटर और चना ही मंगाता है।

”हम इस वर्ष बहुत कठिन स्थितियों से लड़ रहे हैं, लेकिन हम इस लड़ाई को जारी नहीं रख सकते क्योंकि आवश्यक खाद्य पदार्थों के लगातार बढ़ते दाम, इको सिस्टम को बिगाडऩे के साथ-साथ माहौल नकारात्मक बनाते हैं। साथ ही यह खाने के दाम को बढ़ाता है, जो कि मुख्य मुद्रास्फीति में जुड़ता है जाकर, पर ऐसा नहीं होने दिया जा सकता”, एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने बताया।

महाराष्ट्र दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य आते हैं। इन राज्यों का इस वर्ष कुल खरीफ दलहन में उत्पादन योगदान क्रमश: 24.9 प्रतिशत, 13.5 प्रतिशत, 13.2 प्रतिशत, 10 प्रतिशत व 8.4 प्रतिशत रहा है। ये पांच राज्य मिलकर देश की 70 प्रतिशत खरीफ दलहन अकेले उपजाते हैं। लेकिन शोध रिपोर्ट के अनुसार इन सभी राज्यों में इस बार मौसम की अनियमितता ने उत्पादन को प्रभावित किया है।

दालों की आवयश्यकता को महंगे आयात से पूरा कर पाना अकेली चुनौती नहीं हैं। दालों को राज्यों तक तेज़ी से अच्छी तरह पहुंचा पाना नीतिनिर्धारकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। ”इसीलिए दालों के मूल्यों के मुद्दे में स्थिति बेहतर कर पाना केंद्र व राज्य सरकारों के लिए एक चुनौती होगी। देश की क्षेत्रीय मंडियों की तमाम कमियां और कमज़ोर वितरण प्रणाली भी स्थिति को और बुरा बनाएगी”, एसोचैम द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया।

हालांकि संस्था ने अपनी इस रिपोर्ट में सरकार को चेताया भी है कि अंधाधुध आयात से भारत दहलन उत्पादन में आत्मनिर्भर भी नहीं बन पाएगा और देश के किसानों का भी हित मारा जाएगा। इस कारण ”सरकार को लागू किया जाने योग्य एक एक्शन प्लान तैयार करना चाहिए, जिससे किसानों को बीज व तकनीकि सहयोग उपलब्ध कराकर अधिक से अधिक दालें उगाने के लिए प्रेरित किया जा सके“, रिपोर्ट में सुझाया गया।

देश में ज्यादातर चना व अरहर उगाया जाता है। लगभग 70 लाख टन उत्पादन के साथ, चना देश के उत्पादन में अकेले 41 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। वहीं अरहर का उत्पादन बीस लाख 70 हज़ार टन है जो कि कुल दलहन उत्पादन का 16 प्रतिशत है। इनके अलावा भारत में उड़द व मूंग भी बड़ी मात्रा में उगाई जाती हैं।

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