खाद्य मंत्रालय द्वारा निर्णयों में बार-बार बदले जाने से जूट उद्योग परेशानी महसूस करने लगा है। मंत्रालय ने 2018-19 में खरीफ एवं रबी सीजन सत्र के लिए 2,58000 जूट बोरियों की गांठों की जगह अन्य तरह की बोरियों के उपयोग करने की मंजूरी दे दी है। रबी फसल 11 लाख गठानों की आवश्यकता होती है। इसमें से 10 प्रतिशत की छूट दे दी है। इससे जूट उद्योग को कम से कम 800 करोड़ रुपए का नुकसान होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। खाद्यान्न की भराई के लिए सरकारी एजेंसियां बड़ी मात्रा में बी ट्रिवल का उपयोग करती है। जूट उद्योग सरकार की मांग पूरी करने में सक्षम है। इसके बावजूद यह घोषणा की गई है। प्लास्टिक की बोरियों का उपयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जा रहा है। इसके बाद भी इस उद्योग को प्रोत्साहित क्यों किया जा रहा है?
छूट के कारण अब जूट बोरियों की जगह उच्च सघनता की प्लास्टिक बोरियां (एचडीपीई) और पॉलिप्रोपीन (पीपी) से बनी बोरियों का प्रयोग किया जा सकता है। वस्त्र मंत्रालय पहले ही इसकी अनुमति दे चुका है। रबी और खरीफ सत्र को मिलाकर लगभग 17 लाख जूट बोरियों की गांठों की आवश्यकता होगी।
देशभर में जूट उद्योग से जुड़े करीब 2.6 लाख कामगारों और जूट की खेती करने वाले करीब 60 लाख किसानों को लाभ होगा। देश में जूट की खेती पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम, आंध्र प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा में होती है।
भारत के जूट उद्योग में पश्चिम बंगाल का प्रथम स्थान है। देश के कुल 83 जूट कारखानों में से 64 यहीं स्थापित हैं। यहाँ हुगली नदी के दोनों किनारों पर 3 से 4 किमी की चौड़ाई में 97 किमी लम्बी पेटी में इन कारखानों की स्थापना की गयी है। रिसरा से नईहाटी तक विस्तृत 24 किमी लम्बी पट्टी में तो इस उद्योग का सर्वाधिक केन्द्रीकरण हो गया है। यहाँ जूट उद्योग के प्रमुख केन्द्र हैं- रिसरा, बाली, अगरपाड़ा, टीटागढ़, बांसबेरिया, कानकिनारा, उलबेरिया, सीरामपुर, बजबज, हावड़ा, श्यामनगर, शिवपुर, सियालदाह, बिरलापुर, होलीनगर, बड़नगर, बैरकपुर, लिलुआ, बाटानगर, बेलूर, संकरेल, हाजीनगर, भद्रेश्वर, जगतदल, आदि।
जूट के कारोबारी पहले से ही परेशान हैं। जूट उद्योग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कच्चे माल (पाट) की कीमतों में गिरावट के कारण इसके जूट व्यापारी परेशानी का सामना कर रहे हैं। अब इसमें हस्तक्षेप के लिए इस उद्योग से जुड़े लोगों ने केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखा है। स्मृति ईरानी को लिखे एक पत्र में भारतीय जूट मिल्स एसोसिएशन (आइजेएमए) के अध्यक्ष मनीष पोद्दार ने कहा है “कच्चे जूट की कीमतें निर्धारित कीमत से काफी कम है जिससे उद्योग के समक्ष मुसीबत आन पड़ी है। टीडी 5 किस्म के लिए कीमत 7,000 रुपए प्रति टन और टीडी 6 किस्म प्रति टन 10,290 रुपए प्रति टन के निचले स्तर पर है। ऐसे में यह भी कहा गया है कि यह क्रमश: टीडी 5 और टीडी 6 के लिए निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से लगभग 20 फीसद व 35 फीसद नीचे है। ऐसे में प्लास्टिक की बोरियों के इस्तेमाल से हमें और नुकसान होगा। कच्चे माल की कीमतों में गिरावट से ही किसानों को करीब 1,000 करोड़ रुपए नुकसान का अनुमान है।”
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इस योजना से जूट उद्योग को लगभग 800 करोड़ रुपयों का नुकसान होने की संभावना है। अनाज की भराई के लिए सरकार उद्योगों से बड़ी मात्रा में बी-ट्विल बैग (एक दूसरे प्रकार की जूट बोरी) खरीदती है। प्लास्टिक बोरियों का रास्ता खोलकर एक तरह से जूट उद्योग पर उत्पादन में कमी करने का दबाव डाला जा रहा है। इस योजना को मंजूरी देने के बाद उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने 2018-19 के रबी सत्र के लिए जरूरी परिवर्तन कर दिए हैं।
मंत्रालय ने राज्य सरकारों और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) से कहा है कि वह संशोधित खाद्य आपूर्ति योजना के तहत बोरियों के लिए समय पर फंड की आपूर्ति सुनिश्चित करे। साथ ही सभी राज्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी तरह से खरीद प्रभावित नहीं हो। जूट आयुक्त कार्यालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, रबी फसल के लिए पैकिंग सामान की बैकलॉग स्थिति (25 फरवरी को) 3.12 लाख गांठें हैं। वहीं, खरीफ फसलों के लिए बैकलॉग स्थिति 83,375 गांठें हैं।
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विश्व का 49 प्रतिशत जूट उत्पादन भारत में
विश्व में कुल जूट उत्पादन का लगभग 49 प्रतिशत उत्पादन भारत में होता है। आज भी देश में लगभग 40 लाख किसान आठ लाख हेक्टेयर में जूट उपजा रहे हैं। देश में आज भी जूट से विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार करने वाले कारखानों में ढाई लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के किसान भी जूट की खेती करके इस नगदी फसल के जरिए आपनी आर्थिक स्थिति को भी बेहतर करेंगे।