अधिक मुनाफे के लिए इस महीने करें बेबी कॉर्न की खेती

Divendra SinghDivendra Singh   1 April 2018 11:23 AM GMT

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अधिक मुनाफे के लिए इस महीने करें बेबी कॉर्न की खेतीसाल में तीन-चार बार कर सकते हैं इसकी खेती

लखनऊ। पिछले कुछ वर्षों में किसानों का रुझान बेबी कॉर्न (मक्के की प्रजाति) की खेती की तरफ बढ़ रहा है, क्योंकि बेबी कॉर्न की फसल बहुत कम समय में तैयार हो जाती है, साथ ही इसके साथ दूसरी फसलें भी ले सकते हैं।

अप्रैल से लेकर मई तक बेबी कॉर्न की बुवाई का सही समय है, एक साथ पूरे खेत में बेबी कॉर्न की बुवाई नहीं करनी चाहिए। इसे दस-दस दिन के अंतर में खेत के कुछ हिस्सों में बोना चाहिए क्योंकि अगर किसान एक साथ पूरे खेत में बुवाई करता है, तो पूरी फसल एक साथ तैयार हो जाती है। तब बाजार में बेचने में कुछ दिक्कत होती है इसलिए कुछ अंतराल पर बुवाई करने से जैसे-जैसे फसल तैयार होगी बाजार में बेच सकते हैं। इसके डंठल और पत्ते जानवरों के लिए पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। इसकी खेती से तो सालभर जानवरों को चारा उपलब्ध हो सकता है।

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बेबी कॉर्न की खेती के बारे में भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिक डॉ. योगेन्द्र यादव बताते हैं, 'ये एक ऐसी फसल है जो हर मौसम में उगाई जा सकती है। इसे साल में तीन से चार बार उगा सकते हैं, इसमें एक हेक्टेयर में करीब चालीस से पचास हजार रुपए तक का मुनाफा होता है।'

बेबी कॉर्न उत्पादन का शोध सबसे पहले साल 1993 से मक्का अनुसंधान निदेशालय द्वारा हिमाचल प्रदेश, कृषि विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र, बजौरा (कुल्लू घाटी) में शुरू हुआ था। तभी से बेबीकोर्न के रूप में मक्के की खेती का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। उत्तर भारत में दिसम्बर, जनवरी महीने को छोड़ सालभर बेबी कॉर्न की खेती की जा सकती है। मध्यम ऊंचाई की जल्दी तैयार होने वाली किस्म/प्रजाति और एकल क्रॉस संकर का चयन करना चाहिए। संकर-बीएल, संकर-एमईएच-133, संकर-एमईएच-114 और अर्ली-कम्पोजिट बेबी कॉर्न की उन्नत किस्म होती हैं।

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बेबीकॉर्न की बुवाई के लिए किसान सबसे पहले खेत में मेड़ बना लें और इसकी चौड़ाई एक फीट रखें। बुवाई से पहले खेतों में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव करें। मेड़ पर बुवाई से पानी कम लगता है और पैदावार अच्छी होती है।

सिंचाई

पहली सिंचाई बुवाई से पहले करें, क्योंकि बीज अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी होना जरूरी होता है। बुवाई के 15-20 दिन बाद मौसम के अनुसार जब पौधे 10-12 सेमी के हो जाएं तो पहली सिंचाई करनी चाहिए। उसके बार 8-10 दिन के अन्तराल से ग्रीष्मकालीन फसल में पानी देते रहना चाहिए।

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खरपतवार-नियंत्रण

इस मौसम में बोई गई फसल में खरपतवार या जंगली घास हो जाती हैं जिनको निकालना जरूरी होता है। इन्हें निकालने के लिए 2-3 खुरपी से गुड़ाई करें क्या साथ-साथ हल्की-हल्की मिट्‌टी भी पौधों पर चढ़ा दें, जिससे पौधे हवा से गिरते नहीं हैं। इसके दूसरी फसलें भी लगा सकते हैं, इस समय इसके साथ लोबिया, उड़द, मूंग जैसी फसलें लगा सकते हैं।

ये एक ऐसी फसल है जो हर मौसम में उगाई जा सकती है। इसे साल में तीन से चार बार उगा सकते हैं, इसमें एक हेक्टेयर में चालीस से पचास हजार रुपए तक का मुनाफा हो जाता है।
डॉ. योगेन्द्र यादव, कृषि वैज्ञानिक, भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान

बेबी कॉर्न की तुड़ाई

बेबी कॉर्न की भुट्टा को एक से तीन सेमी. सिल्क आने पर तोड़ लेनी चाहिए। भुट्टा तोड़ते समय उसके ऊपर की पत्तियों को नहीं हटाना चाहिए। पत्तियों को हटाने से ये जल्दी खराब हो जाती है।

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