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कुपोषण के खात्मे के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने खोजा मास्टर प्लान

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स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। भारत में बच्चों और महिलाओं में कुपोषण दर कम करने के लिए आहार में पौष्टिकता बरकरार रखना वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी चुनौती थी। इसके लिए कृषि आधारित विदेशी संस्था और भारतीय कृषि वैज्ञानिक, किसानों को सूक्ष्म पोषक तत्वों वाली फसलों की खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इस प्रयोग का नाम हार्वेस्ट प्लस है।

“ पूर्वी उत्तर प्रदेश में वाराणसी, चंदौली, मिर्ज़ापुर और भदोही जैसे जिलों के कई क्षेत्रों में जिंक और लौह तत्वों की कमी से बच्चों में शारीरिक और मानसिक वृद्धि देर से होती है। अनाज में जिंक और लौह जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों को बढ़ाकर उच्च गुणवत्ता की फसल लेने और महिलाओं व बच्चो में कुपोषण की समस्या को कम करने के लिए भारत सहित 40 देशों में हार्वेस्ट प्लस परियोजना चलाई जा रही है।” यह बताया बीएचयू के हार्वेस्ट प्लस परियोजना प्रमुख डॉ. वीके मिश्रा ने।

स्टेट फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन 2017 की जारी रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में 777 मिलियन लोग कुपोषित थे, जो वर्ष 2016 में बढ़कर 815 मिलियन हो गए हैं। इन आंकड़ों के बीच भूखे, कुपोषित और एनेमिक भारतीयों का आंकड़ा चौकाता है। भारत के 38.4 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं, जबकि 51.4 फीसदी महिलाओं में खून की कमी पाई गई है। ऐसे में सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर अनाज के सेवन से बढ़ते कुपोषण दर पर लगाम लगाई जा सकती है।

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किसानों की सहभागिता से चलाई जा रही हार्वेस्ट प्लस परियोजना के बारे में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. साकेत कुशवाहा ने बताया, ”इस परियोजना में हमने देश भर के बीज बैंकों में रखी गई उन प्रजातियों को खोजा, जिनमें सूक्ष्म पोषक तत्व ज़्यादा थे पर उनकी उपज कम थी। इन प्रजातियों को हमने अधिक उपज मगर कम पोषक तत्वों वाले अनाज की किस्मों के साथ प्रजनन करवाया। यह परीक्षण हमने किसानों के खेतों में किया।”

”खाने में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के कारण वैश्विक कुपोषण दर बढ़ता जा रही है। इस परियोजना के अंतर्गत उगाई जा रही गेहूं की किस्में जिंक और लौह तत्वों से भरपूर होती हैं। इससे खाद्यानों की पौष्टिक्ता तो बढ़ती ही है साथ ही बाज़ार में अन्य किस्मों की तुलना में किसानों को इन किस्मों के अच्छे दाम भी मिलते हैं।” डॉ. साकेत कुशवाहा ने आगे बताया।

अनाज में पोषक तत्व बढ़ाने के लिए चलाई जा रही हार्वेस्ट प्लस परियोजना

पांच राज्यों में लागू हुई परियोजना

भारत में हार्वेस्ट प्लस परियोजना को किसानों तक पहुंचाने के लिए फ्रांस की कंसल्टेटिव ग्रुप फॉर इंटरनेश्नल एग्रीकल्चर संस्था (सीजीआईएआर) और चार राज्यों के कृषि विश्वविद्यालयों की मदद से चलाया जा रहा है। इस परियोजना की मदद से उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, हरियाणा और पंजाब के लाखों किसानों को पोषक तत्वों से भरपूर गेहूं जैसी फसलों की खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

डॉ. मिश्रा आगे बताते हैं, ”हार्वेस्ट प्लस परियोजना के अंतर्गत अभी तक भारत सरकार ने करनाल में विकसित डब्लयूबी-02 और पंजाब की पीबी-01 ज़ेडएन गेहूं की किस्मों को बाज़ार में उतारने की अनुमति दी है। यूपी में फिलहाल बीएचयू-03, 06, 31 और 35 किस्मों का परीक्षण किसानों के खेतों में किया जा रहा है।”

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उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में पिरखिड़ गाँव के किसान हरिवंश सिंह (74 वर्ष) के खेत में पिछले वर्ष हार्वेस्ट प्लस परियोजना के तहत गेहूं की सूक्ष्म पोषक तत्व वाली बीएचयू-31 और बीएचयू-35 किस्मों की खेती की गई थी। किसान हरिवंश बताते हैं, ”पिछले वर्ष हमारे खेत में वैज्ञानिकों की टीम ने हार्वेस्ट प्लस परियोजना में हाई जिंक वैराइटी का गेहूं लगाया था। गेहूं का पैदावार अच्छी मिली और इसकी पकी रोटियां भी मुलायम होती हैं। इस गेहूं की मांग भी ज़्यादा है, इसलिए इस बार भी हम यह किस्म लगाएंगे।”

जिंक की मात्रा से भरपूर है पीबी-01 ज़ेडएन वैराइटी

पंजाब में हार्वेस्ट प्लस परियोजना के अंतर्गत पंजाब कृषि विश्वविद्यालय को ज़िम्मेदारी दी गई है। पंजाब में कई जिलों में किसानों के साथ कृषि वैज्ञानिकों की मदद से गेहूं की कई किस्मों की खेती का परीक्षण किया गया। कई वर्षों की मेहनत के बाद पंजाब की पीबी-01 ज़ेडएन गेहूं की किस्म को भारत सरकार ने विपणन की मंज़ूरी दे दी है।

गेहूं की पीबी-01 ज़ेडएन किस्म की सफलता के बारे में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक गुरूविंदर सिंह मावी ने बताया, ”सरकार की मंज़ूरी मिलने के बाद हमने इस वर्ष पीबी-01 ज़ेडएन हाईयील्ड जिंक वराइटी गेहूं के 10 किलो के पैकेट किसानों को बांटे हैं। किसानों की यह संख्या हज़ारों में है।”

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क्या है हार्वेस्ट प्लस परियोजना

इस परियोजना में किसानों के सहयोग से उनके खेतों में सूक्ष्म पोषक तत्वों (जिंक और लौह तत्व) वाली गेहूं की कई किस्मों की खेती का परीक्षण किया जाता है। फसल पकने पर किसान मढ़ाई और कटाई के बाद कृषि वैज्ञानिकों को यह बताते हैं कि लगाई गई किस्मों में से कौन सी किस्म की पैदावार सबसे अच्छी रही। इसके बाद वैज्ञानिक इन किस्मों को भारत सरकार से विपणन की मंज़ूरी दिलवाते हैं।

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