लखनऊ। पपीता नगदी फसल है,इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में किसान अपने खेतों में फसली तौर के रूप में पपीता को उगाकर कमाई करे इसके लिए प्रयोग किए जा रहे हैं। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों ने गन्ने की खेती के साथ पपीते की खेती का नायाब तरीके की खोज की है।
यहां के कृषि वैज्ञानिक डॉ. कामता प्रसाद ने उत्तर पूर्व के राज्य मिजोरम जाकर यह देखा है कि वहां के लोग किस तरह से गन्ने के साथ पपीते की उत्तम खेती कर रहे हैं। इससे वहां किसानों की आय भी बढ़ गई है। ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार से सटे राज्यों के किसानों को सलाह दी है। कुछ दिनों बाद जब गन्ने की शरदकालीन बुवाई करें तो किसान उसके साथ पपीते की खेती करें। यह किसान के लिए बहुत ही लाभकारी होगा।
पपीते की रेड लेडी किस्म में पैदावार ज्यादा
उत्तर भारत के लिए यह है पहला प्रयोग
देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ने के साथ कई सारी दूसरी फसलों को लगाया जाता है लेकिन अभी तक यहां के गन्ने के साथ पपीते की खेती को किसान बड़े पैमाने पर नहीं कर पाए हैं। गाजीपुर, बलिया, देवरिया, मऊ और आजमगढ़ के कुछ जिलों में प्रयोग के तौर पर इसको बहुत छोटी जगह में आजमाया गया है। चूंकि गन्ने की फसल तैयार होने में 11 से लेकर 12 महीने का समय लगता है। ऐसे में इस बीच गन्ने के साथ किसान कुछ दूसरी फसलें लगाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं। किसान गन्ने के साथ पपीता उगाएं तो उनके लिए दोहरा लाभ होगा। पपीता जल्दी तैयार हो जाएगा और यह गन्ने की खेत में जगह भी अधिक नहीं लेगा।
यही है सही समय
पपीते की खेती के लिए पौधा आमतौर पर जून-जुलाई में लगाया जाता है लेकिन कुछ इलाकों में जहां सिंचाई की व्यवस्था अच्छी होती है वहां पर इसे सितंबर और अक्टूबर में भी लगाया जाता है। भारतीय गन्ना अनुसंधान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आरएस दोहरे ने बताया कि गन्ने जैसी नकदी फसल के साथ दूसरी ऐसी फसलें जिससे किसानों को लाभ मिले इसका प्रयोग चल रहा है। इस कड़ी में उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के लिए गन्ने के साथ पपीते की खेती एक नया विकल्प है।
ऐसे करें खेत तैयार
पपीते की उन्नतशील प्रजातियां मधु, हनी, पूसा डेलिसियस, पूसा ड्वार्फ, पूसा नन्हा, सीओ-7, पीके-10 हैं। एक एकड़ पौध रोपण के लिए मात्र 125 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। बीज को तीन ग्राम कैप्टान दवा प्रति किलोग्राम की दर से उपचार करके, 15 सेंमी की दूरी पर दो सेंमी गहराई में लगाकर पौध तैयार करना चाहिए। 10 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद प्रति पौधा और 500 ग्राम अमोनियम सल्फेट सिंगल सुपर फास्फेट और पोटैशियम सल्फेट को दो व चार के अनुपात में प्रति पौधा देना चाहिए।
पपीते को रोगों से बचाएं
पपीता के प्रमुख रोगों में लीफकर्ल और मोजैक रोग हैं। ऐसे में जबपपीता का पौधा बड़ा हो जाए तो बीमारियों से बचाने के लिए मैलाथियान और ईसी को पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। इस तरीके को अपनाकर पपीते की खेती करने पर प्रति पौध 40 किलोग्राम तथा प्रति एकड़ 200 से 250 क्विंटल तक पैदावार मिल जाती है।
फसल बीमार होने पर तुरंत उपचार करें
गन्ना संस्थान के ही वैज्ञानिक डॉ. कामता प्रसाद ने बताया कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के जिलों में दोमट और बलुई मिट्टी की अधिकता है। यह मिट्टी पपीते के लिए उपयुक्त होती है। पपीते की खेती के लिए पानी की भी जरूरत ज्यादा पड़ती है। यहां का मौसम भी पपीते की फसल के लिए अनुकूल है लेकिन किसानों को खेत की तैयारी से लेकर बीज का चयन जैसी चीजों के लिए विशेष ध्यान रखना होगा। पपीते में लगने वाली बीमारियां गन्ने में भी फैल सकती हैं। ऐसे में किसानों को किसी एक फसल में भी बीमारी लगे तो तो वह उसका तुरंत उपचार कराना चाहिए।
फल मंडियों में पपीते की खपत
कृषि वैज्ञानिक डा. कामता प्रसाद ने बताया कि पपीता का पौधा गन्ने में लगने वाली बीमारियों के लिए एक प्रतिरोधक का भी काम करेगा। इसे साथ ही गन्ना का पौधा भी पपीते के लिए प्रतिरोधक बनेगा। उत्तर प्रदेश की फल मंडियों में पपीते की खपत है। उसके लिए इसके देश के बाकी राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के राज्यों से यहां पपीता मंगवाया जाता है। ऐसे में अगर प्रदेश में ही गन्ने के सहफसली रूप में पपीता फायदेमंद होगा।