भारतीय कपास व्यापारियों ने करीब 4,00,000 गांठों के निर्यात सौदों का अनुबंध रद्द कर दिया है। घरेलू दामों में सुधार और रुपए की मजबूती से विदेशी बिक्री आकर्षित न रहने के बाद ऐसा हुआ है। रॉयटर्स ने भारतीय कपास संघ के अध्यक्ष के अनुसार ये खबर दी है।
एसोसिएशन प्रमुख अतुल गणत्र ने कहा कि इस परिवर्तन की वजह से बांग्लादेश, वियतनाम और चीन जैसे प्रमुख बाजारों में कपास खरीदार छूट गए हैं और अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा ब्राजील के आपूर्तिकर्ताओं से यह कमी पूरी की जाने की संभावना है।
कपास परामर्श बोर्ड के अनुसर महाराष्ट्र के प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में खड़ी फसलों पर गुलाबी कीट (पिंक बॉलवर्म) के हमले की वजह से राज्य में इस साल कपास किसानों को अपनी उपज में करीब 13 प्रतिशत का नुकसान उठाना पड़ सकता है। यवतमाल और जलगांव जिलों में फसल के भारी नुकसान के साथ महाराष्ट्र में औसत कपास उत्पादन में 13 प्रतिशत की गिरावट की आशंका है। महाराष्ट्र का करीब एक-तिहाई कपास क्षेत्र गुलाबी कीटों के हमले से ग्रस्त है।
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अतुल गणत्र ने कहा कि ये अनुबंध रद्द होने तथा स्थानीय दामों के उच्च स्तर के कारण 1 अक्टूबर से शुरू होने वाले 2017-18 के विपणन वर्ष के दौरान भारत का निर्यात पांच लाख गांठ (एक गांठ का वजन 170 किलोग्राम) कम रह सकता है, जो शुरुआती अनुमान में एक तिमाही का निम्र स्तर है। विश्व के सबसे बड़े फाइबर उत्पादक देश की आपूर्ति में कीट संक्रमण से कमी आने के बाद पिछले छह हफ्तों में दाम 15 प्रतिशत से अधिक हो गए हैं।
गणत्र ने कहा कि स्थानीय दामों में अचानक बढ़ोतरी की वजह से बांग्लादेश, वियतनाम और चीन के लिए कुछ निर्यात अनुबंध पूरे नहीं हो सके हैं। उन्होंने निर्यात अनुबंध करने वाले व्यापारियों का खुलासा नहीं किया। हालांकि रॉयटर्स द्वारा संपर्क किए जाने पर छह व्यापारियों ने इस कदम की इसकी पुष्टि की। पिछले साल के आखिर में तूफान की वजह से शीर्ष निर्यातक अमेरिका की आपूर्ति में संदेह होने के बाद, भारतीय व्यापारियों ने काफी अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए थे।
कपास परामर्श बोर्ड के मुताबिक, महाराष्ट्र में 2017-18 के सीजन का कपास उत्पादन 344.21 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रहेगा, जो पिछले साल के 395.92 किलोग्राम से कम है। बोर्ड का अनुमान है कि महाराष्ट्र में कपास का रकबा 42 लाख हेक्टेयर है, जो पिछले साल के 38 लाख हेक्टेयर से 10.5 प्रतिशत अधिक है।