बागवानी फसलों का उत्पादन व रक़बा तो बढ़ा, लेकिन किसानों को नहीं हो रहा फ़ायदा

पिछले कुछ वर्षों में किसानों का रुझान बागवानी फसलों की खेती की तरफ तेजी से बढ़ रहा है, इसका एक कारण ये भी है कि सब्जियों की खेती कम समय और कम क्षेत्र में हो जाती है।

Shubham KoulShubham Koul   8 Jun 2018 8:47 AM GMT

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बागवानी फसलों का उत्पादन व रक़बा तो बढ़ा, लेकिन किसानों को नहीं हो रहा फ़ायदा

कृषि मंत्रालय के अनुसार फल और सब्जियों जैसी बागवानी फसलों के उत्पादन का 2017-18 में रिकॉर्ड 307 मिलियन टन हुआ। जोकि पिछले वर्ष के मुकाबले 27 मिलियन टन अधिक अच्छा है।

लखनऊ। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी अग्रिम अनुमान में ये बात साफ हो गई है, कि इस बार बागवानी फसलों के रकबा और उत्पादन दोनों में वृद्धि हुई है। लेकिन अभी भी बाग़वानी किसानों को बाजार मिल रहा है और न ही सही दाम।

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. शैलेन्द्र राजन कहते हैं, "पिछले कुछ वर्ष से किसान नकदी फसलों की खेती ज्यादा करना चाहता है, क्योंकि इसमें किसानों को फायदा हो रहा है, पिछले वर्ष यहां के अमरूद के पौधे अरुणाचल प्रदेश के किसान ले गए थे, यहां भी किसान आम की बाग में दूसरी फसलें भी लगा रहे हैं।"

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कृषि मंत्रालय के अनुसार देश का कुल बागवानी फसल उत्पादन 2017-18 में बढ़कर 30.72 करोड़ टन रहने का अनुमान है , जो कि पिछले वर्ष से 2.2 प्रतिशत अधिक और पिछले पांच वर्षों के औसत से 8.6 प्रतिशत अधिक है। आंकडो़ं के मुताबिक, प्याज उत्पादन 21.8 प्रतिशत गिरकर 2.24 करोड़ टन रहने जबकि आलू उत्पादन बढ़कर 5.03 करोड़ टन होने का अनुमान है।

बागवानी फसलों का रकबा बढ़ने का एक कारण ये भी है, जिस तरह छोटे जोत के किसानों की संख्या बढ़ रही है, सब्जियों की खेती में उन्हें ज्यादा फायदा दिखता है और कम समय में तैयार भी हो जाती है।

वित्तीय वर्ष 2017-18 भी छठे सीधा अंक को चिह्नित करता है जब बागवानी फसलों के उत्पादन अनाज से अधिक हो गया है। 2013-14 और 2017-18 के बीच बागवानी उत्पादन 2.6% की एक संयुक्त वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) में वृद्धि हुई, खाद्यान्न उत्पादन में वार्षिक वृद्धि दोगुनी हो गई।

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यूपी के फैज़ाबाद, बाराबंकी, सीतापुर, कौशाम्बी जैसे ज़िले में केला की खेती का रकबा बढ़ा है, पहले महाराष्ट्र से यहां पर केला आता था, अब किसान यहीं पर केला की खेती कर रहे हैं। बाराबंकी ज़िले के बनीकोडर ब्लॉक के नारायणपुर गांव के किसान कृष्ण कुमार शुक्ला पिछले पांच वर्ष से केला लगा रहे हैं। वो बताते हैं, "अब धान गेहूं जैसी फसलों में कोई फायदा नहीं रह गया है, इसलिए केला की खेती कर रहा हूँ, एक बार लगाने पर तीन बार फसल मिल जाती है और सीधे बेच भी सकते हैं।"

लहसुन को नकदी फसल के रूप में जाना जाता है और किसानों को उम्मीद थी कि इस बार लहसुन का अच्छा दाम मिलेगा, इस बार लहसुन का रकबा भी बढ़ा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2008 में जहां पूरे देश में लहसुन की खेती का क्षेत्रफल 166000 हेक्टेयर था, वहीं 2014-15 में बढ़कर 244000 हेक्टेयर हो गया, जिस कारण लहसुन का उत्पादन भी लगातार बढ़ रहा है।


उद्यान विभाग भी कर रहे हैं मदद

सभी राज्यों में उद्यान विभाग भी किसानों की मदद कर रहा है, बागवानी फसलों को बढ़ावा देने के लिए विभाग सिंचाई के यंत्रों के साथ ही दूसरे कृषि यंत्रों पर भी सब्सिडी देता है, जिससे किसान धान गेहूं के बजाए बागवानी फसलें उगा रहे हैं।

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अभी और भी ध्यान देने की है जरूरत

पिछले कुछ वर्षों में रकबा तो बढ़ा, लेकिन इस हिसाब से किसानों को बाजार नहीं मिल पाया, सबसे ताजा उदाहरण लहसुन किसानों का है, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की कुछ जिलों में इस बार लहसुन का रकबा बढ़ा और उत्पादन भी अच्छा हुआ, लेकिन किसानों को न सही दाम मिल पाया और न ही बाजार। ऐसे में किसानों को माटी मोल अपनी फ़सल बेचनी पड़ी।

यही हाल अप्रैल में, टमाटर की थोक कीमतें रुपये के रूप में कम हो गईं और किसानों ने अपनी फसलों को नष्ट कर दिया।

सरकार और किसान इन बातों का रखें ध्यान तो नहीं उठाना पड़ेगा नुकसान

फसल उत्पादन होने पर जब किसानों को खेती की लागत भी निकालना मुश्किल हो जाता है, उस समय उनके लिए प्रोसेसिंग यूनिट मददगार साबित हो सकती हैं। बेहतर कोल्ड स्टोर व रेफ्रिजरेटर युक्त वाहनों की व्यवस्था हो ताकि लंबे समय तक फसल उत्पाद को रखा जा सके। भारतीय किसानों को बाजार को देखते हुए खेती करनी चाहिए, जिसकी मांग ज्यादा हो उसकी खेती करें तो नुकसान से बच सकते हैं। बाजार तक बेहतर पहुंच और तकनीकी की जानकारी भी किसानों को ज्यादा मुनाफ़ा दिलाने में मददगार साबित हो सकती है।

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