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रिकॉर्ड कृषि उत्पादन और बढ़ती निर्यात मांग की संभावनाएं

वैश्विक स्तर पर बढ़ती खाद्यान्न निर्यात मांग का लाभ किसानों को भी मिल सके, केंद्र और राज्य सरकारों को ऐसी व्यवस्था बनानी होगी। निश्चित रूप से इस समय देश में कृषि निर्यात को अधिकतम ऊंचाइयों तक ले जाने की संभावनाएं हैं।
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वैश्विक संकट के दौर में भारत की खेती और किसानी रिकार्ड बनाने की ओर अग्रसर है। देश के किसानों की मेहनत, कृषि वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन और भारत सरकार की नीतियों के चलते ऐसा हो पाना संभव हो रहा है। खाद्यानों से लेकर तिलहन, दलहन, गन्ना आदि के उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि होने का अनुमान हैं।

भारत में खाद्यानों के भंडार और रिकार्ड उत्पादन को देखते हुए वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न निर्यात बढ़ाने का भी अच्छा मौका है। भारत इस अवसर का लाभ उठाकर गेहूं की अच्छी कीमतों का लाभ किसानों को दे सकती है। वैश्विक स्तर करोना के साथ ही रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते खाद्यान्न की मांग में बढ़ोतरी हुई है। वैश्विक स्तर पर रूस और यूक्रेन दोनों देश मिलकर गेहूं आपूर्ति का लगभग एक चौथाई हिस्से का निर्यात करते हैं। लेकिन युद्ध के चलते यह देश गेहूं की वैश्विक आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में पूरी दुनियां में गेंहू सहित अन्य कृषि उत्पादों की निर्यात मांग लगातार बढ़ रही है, जिसे भारत पूरी कर पाने में सक्षम हैं।

भारत ने इस वर्ष फरवरी के अंत तक लगभग 66 लाख टन गेहूं का निर्यात किया है, जो कि अब तक का सबसे ज्यादा है। अनुमान के अनुसार आने वाले कुछ माहों में 70 लाख टन से अघिक गेहूं का निर्यात होने की पूरी उम्मीद है। वैश्विक स्तर पर वर्तमान में गेहूं की कीमतें दस साल के उच्चतम स्तर पर चल रहीं हैं। इतना ही नहीं बल्कि भारत के गेहूं की कीमतें भी वैश्विक स्तर पर 320 डालर से बढ़कर 360 डालर प्रति टन तक पहुंच गई हैं।

भारत में दुनियां के अन्य देशों की तुलना में अप्रैल माह के अंत तक लगभग पूरी तरह गेहूं की नई फसल आ जायेगी। इस समय वैश्विक बाजार में गेहूं की भारी कमी देखी जा रही है। उस कमी को भारत जैसा बड़ा गेहूं उत्पादक देश पूरी करने में सक्षम हैं। ऐसे में भारतीय गेहूं निर्यातकों के लिए यह एक सुनहरा अवसर है। निश्चित रूप से गेहूं की इस वैश्विक मांग का लाभ देश के किसानों को भी मिलेगा। सरसों की तरह ही गेहूं की कीमतें भी खुले बाजार में एमएसपी से ज्यादा मिलने की पूरी उम्मीद की जा रही है। भारत के पास गेहूं का विशाल भंडार मौजूद होने के कारण इस निर्यात मांग को पूरा करने में किंचित मात्र कोई अड़चन भी नहीं दिखाई देती है। वैश्विक स्तर पर बाजार की स्थिति इसी तरह बनी रही तो भारत का गेहूं निर्यात 2022-23 में एक करोड़ टन के रिकार्ड स्तर को छू पाने में सफल हो सकेगा।

भारत के कृषि मंत्रालय द्वारा जारी द्वितीय अग्रिम अनुमान के अनुसार फसल वर्ष 2021-22 में खाद्यान्नों का रिकार्ड उत्पादन होने के आंकड़ें जारी किये गये हैं। देश में इस वर्ष 2021-22 में खाद्यानों का 316.06 मिलियन टन रिकार्ड उत्पादन होने का अनुमान हैं। जोकि पिछले साल 2020-21 की तुलना में 5.32 मिलियन टन ज्यादा है। यदि पिछले पांच सालों वर्ष 2016-17 से 2020-21 से तुलना की जाये तो यह 25.35 मिलियन टन ज्यादा है। इस वर्ष चावल का भी रिकार्ड उत्पादन 127.93 मिलियन टन होने का अनुमान हैं। जोकि पिछले पांच वर्षों की तुलना में 11.49 मिलियन टन ज्यादा है।

गेहूं का उत्पादन भी इस वर्ष 111.32 मिलियन टन होने की पूरी संभावना हैं। जोकि गेहूं के औसत उत्पादन 103.38 मिलियन टन से 7.44 मिलियन टन ज्यादा है। इसी प्रकार से दलहन उत्पादन 26.96 मिलियन टन पिछले पांच सालों के उत्पादन 23.82 मिलियन टन से 3.14 मिलियन टन ज्यादा है।

देश में इस वर्ष सरसों के क्षेत्रफल में बहुत अधिक वृद्धि दर्ज की गई है। इसके चलते देश में तिलहन उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि दर्ज की जा रही है। इस वर्ष 2021-22 में 37.15 मिलियन टन रिकार्ड तिलहन उत्पादन होने जा रहा है। जोकि गत् वर्ष के उत्पादन 35.95 मिलियन टन की तुलना में 1.20 मिलियन टन ज्यादा है। गन्ना उत्पादन में भी रिकार्ड 414.04 मिलियन टन उत्पादन गन्ना के औसत उत्पादन से 40.59 मिलियन टन ज्यादा हो रहा है। देश में यह रिकार्ड उत्पादन करोना जैसी महामारी के बावजूद होने जा रहा है, जो कि खेती और किसानी के लिए आपदा में किसी अवसर से कम नहीं हैं।

कोविड-19 की आपदाओं के मध्य, भारत ने वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया के जरूरतमंद देशों की खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अफगानिस्तान जैसे देश को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने में भी भारत सरकार का महत्वपूर्ण योगदान हैं। वर्तमान परिदृश्य में रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते दुनियां के कई देश भारत से गेहूं और अन्य खाद्यान्न की मांग कर रहे हैं। इसके चलते भारत से खाद्यान्न निर्यात बढ़ने का अवसर है।

वैश्विक स्तर पर बढ़ती खाद्यान्न निर्यात मांग का लाभ किसानों को भी मिल सके, केंद्र और राज्य सरकारों को ऐसी व्यवस्था बनानी होगी। निश्चित रूप से इस समय देश में कृषि निर्यात को अधिकतम ऊचांईयों तक ले जाने की संभावनाएं हैं। इसके लिए भारत सरकार पूरी तरह से सजग और सर्तक दिखाई भी देती है। जरूरत इस बात की भी है कि सरकार कृषि उपज की बेहतर विपणन व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करने की दिशा में और अधिक ध्यान दे।

कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने की दिशा में और अधिक कार्य किया जाए। खराब होने वाले कृषि उत्पादों जैसे फल-फूल, सब्जियां, दूध, मछली आदि के लिए लॉजिस्टिक व्यवस्था सुदृढ़ करने की दिशा में अधिक कार्य किया जाये। हांलाकि भारत सरकार द्वारा गत् सात वर्षों के दौरान इस दिशा में बेहतर कार्य किया है। भारत सरकार द्वारा 1300 करोड़ रूपये से अधिक का कृषि बुनियादी ढ़ाचा कोष बनाया गया है। राज्यों में एक जिला एक उत्पाद जैसे कार्यों पर प्रभावी कदम उठाये जा रहे हैं। भारत सरकार के प्रयासों से ही इन सब योजनाओं का लाभ छोटे और मझोले किसानों तक को मिल पाना संभव हो पा रहा है। 

(डॉ सत्येंद्र पाल सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी, मध्य प्रदेश के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख हैं, यह उनके निजी विचार हैं।) 

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