राम सिंह, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट
मदनापुर (शाहजहांपुर)। शाहजहांपुर जिले में उद्यान विभाग खेती-बाड़ी से जुड़े लोगों को खेती के साथ-साथ मधुमक्खी पालन का व्यवसाय करने के लिए प्रेरित कर रहा है। इसके लिए विभाग गाँवों में जाकर युवा किसानों को इस व्यवसाय से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
मधुमक्खी पालन के बारे में नयागाँव इकाई संचालक राजिन्दर सिंह (35 वर्ष) ने बताया,“विभाग मधुमक्खी पालन के लिए किसानों को प्रति इकाई लागत पर 40 प्रतिशत अनुदान की व्यवस्था की गई है। इसमें प्रति इकाई एक लाख रुपए की लागत आती है। किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।”
शाहजहांपुर जिले में मदनापुर, जलालाबाद व जैतीपुर गाँवों में किसानों ने मधुमक्खी पालन के लिए पंजीकरण कराया है। शाहजहांपुर ही नहीं प्रदेश के कई जिलों में मधुमक्खी पालन के व्यवसाय को उद्यान विभाग बढ़ावा दे रहा है। शाहजहांपुर समेत आसपास के जिलों में किसानों द्वारा उत्पादित शहद को खरीदने व बेचने के लिए सोसाइटी उद्योग अब उत्तर प्रदेश में भी पसंद किया जा रहा है। यह उद्योग जम्मू-कश्मीर, दक्षिणी राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब तथा तमिलनाडु जैसे राज्यों में सफलतापूर्वक संचालित किया जाता है।
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राजिन्दर सिंह आगे बताते हैं कि मधुमक्खियों को आधुनिक ढंग से लकड़ी के बने हुए संदूकों में पाला जाता है,जिससे मधुमक्खियों को पालने से अंडे एवं बच्चे वाले छत्तों को हानि नहीं पहुंचती तथा शहद अलग छत्तों में भरा जाता है। इस शहद को बिना छत्तों को काटे मशीन द्वारा निकाल लिया जाता है। इन खाली छत्तों को वापस बाक्सों में रख दिया जाता है। मधुमक्खी पालन के लिए ग्रामीणों को 400 बक्से दिए गए हैं, जिनमें लगभग चार से पांच किलो शहद निकलता है। बाज़ार में प्रति किलो की कीमत लगभग 100 से 150 रुपए रहती है।
ज़्यादा शहद के लिए पालें एपिस मेलीफेरा मधुमक्खी
मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण में प्राप्त जानकारी के अनुसार इस व्यवसाय के लिए चार तरह की मधुमक्खियां इस्तेमाल होती हैं, ये एपिस मेलीफेरा, एपिस इंडिका, एपिस डोरसाला और एपिस फ्लोरिया हैं और इस व्यवसाय के लिए एपिस मेलीफेरा मधुमक्खियां ही अधिक शहद उत्पादन करने वाली और स्वभाव की शांत होती हैं। इन्हें डिब्बों में आसानी से पाला जा सकता है। इस प्रजाति की रानी मक्खी में अंडे देने की क्षमता भी अधिक होती है।
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