रामदाने की खेती में बढ़ा किसानों का रुझान, कम लागत में ज्यादा मुनाफा
Virendra Singh 29 May 2017 10:27 PM GMT
स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट
बाराबंकी। मेंथा की खेती में पहचान बनाने वाले बाराबंकी के किसानों ने सरसों व मसूर जैसी खेती का क्षेत्रफल कम कर रामदाना की खेती का दायरा धीरे-धीरे बढ़ाना शुरू कर दिया है।
जिला मुख्यालय से उत्तर दिशा में 38 किमी दूर सूरतगंज व फतेहपुर ब्लाक क्षेत्र में ही लगभग 30 एकड़ क्षेत्रफल में रामदाना की खेती हो रही है। कम लागत और अच्छे मुनाफे की वजह से भी इस क्षेत्र के किसानों का रुझान रामदाने की खेती की ओर बढ़ रहा है।
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सूरतगंज ब्लॉक के दुन्दपुर गाँव के किसान शेष नारायण वर्मा (51 वर्ष) पिछले तीन वर्षों से रामदाने की खेती करते आ रहे हैं। अब इनसे प्रेरित होकर क्षेत्र के दर्जनों किसानों ने रामदाने की खेती शुरू कर दी है। शेष नारायण वर्मा कहते हैं, “रामदाने की बोवाई नवम्बर मध्य में की जाती है। जो मार्च के मध्य तक तैयार हो जाती है। रामदाने का बीज बहुत छोटा होता है जो एक एकड़ में मात्र 500 ग्राम ही पर्याप्त होता है।” वो आगे बताते हैं, “रामदाने के पौधे में छोटे-छोटे कांटे होते हैं, जिससे जानवर इस खेती में नहीं जाते हैं और जानवरों से नुकसान न होना भी इस खेती की तरफ किसानों को मोड़ रहा है।”
रामदाने की खेती लिए एक एकड़ खेती में लगभग आठ हजार से दस हजार की लागत आती है। अच्छी फसल होने पर प्रति एकड़ 15 से 18 कुंतल तक पैदावार होने की सम्भावना रहती है। तैयार फसल मंडी में 3500 से लेकर 7200 रुपए प्रति कुंतल तक बिक जाती है। जिससे प्रति एकड़ लगभग 50 हजार तक शुद्ध मूनाफा होने की उम्मीद रहती है।सतगुरु चौहान, किसान
वहीं फतेहपुर विकास खण्ड के कस्बा बेलहरा के किसान सतगुरु चौहान (52 वर्ष) बताते हैं, “रामदाने की खेती के लिए एक एकड़ खेती में लगभग आठ से दस हजार की लागत आती है। अच्छी फसल होने पर प्रति एकड़ 15 से 18 कुंतल तक पैदावार होने की संभावना रहती है। तैयार फसल मंडी में 3500 से लेकर 7200 रुपए प्रति कुंतल तक बिक जाती है। जिससे प्रति एकड़ लगभग 50 हजार तक शुद्ध मुनाफा होने की उम्मीद रहती है।”
अपने खेतों में काम कर रहे किसान दलजीत बताते हैं, “रामदाने की खेती में पौधे से पौधे की दूरी आठ इंच से लेकर 10 इंच तक होनी चाहिए। अधिक घनी होने पर पौधों को निकाल देना चाहिए।” रामदाने की खेती में भी माहू रोग लगने का डर रहता है, जिसके लिए समय-समय पर दवा प्रयोग करते रहना चाहिए। वह आगे कहते हैं, “रामदाने की खेती में पानी की बहुत कम अवश्यकता होती है।”
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