लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। 38 साल के चंद्रकांत सिंह किसान हैं, वो पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के सेंवराई गांव के रहने वाले हैं। पिछले तीन दिनों से वो लखनऊ मशरूम उत्पादन और वैल्यू एडिशन की ट्रेनिंग ले रहे थे। उनका कहना है कि जमाना धान गेहूं की खेती का नहीं, ऐसी फसलों और उनके वैल्यू एडिशन का है।
चंद्रकांत कहते हैं, “हम लोगों को यहां मशरुम उत्पादन के साथ ही मशरूम को सुखाकर उसके पाउडर से चॉकलेट, लड्डू, बिस्किट, मशरुम बर्गर, अचार समेत कई चीजें बनाना सिखाया गया है। गाजीपुर में हमारा 200 किसानों का एक एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) हम उन सबको मशरुम का काम सिखाएंगे। हर सदस्य घर पर उगाएगा, जो पैदा होगा उसके उत्पादन (मूल्य संवर्धन) कर बेचेंगे।”
चंद्रकांत जैसे प्रदेश के अलग-अलग जिलों के 41 युवाओं (युवक-युवतियों) को लखनऊ में उद्यान विभाग के क्षेत्रीय खाद्य अनुसंधान एवं विश्लेषण केन्द्र 3 दिन तक मशरूम उत्पादन और उसके अलग-अलग उत्पाद बनाने और उनकी मार्केटिंग का ट्रेनिंग दी गई। लखनऊ के सप्रू मार्ग पर स्थित केंद्र में 2 से 5 तक हुए “मशरूम उत्पादन एवं मूल्य संवर्धन” कार्यक्रम में शामिल हुए बाराबंकी जिले के वीरेंद्र शुक्ला (31 वर्ष) बताते हैं, “बाकी फसलें 3 से 4 महीने में तैयार होती हैं। सब्जियां भी 25 से 60 दिन कम से कम लेती हैं लेकिन मशरूम ऐसी फसल फसल है जो 20 दिन में ही उत्पादन देनी लगती है। इसीलिए हम लोग इसे अपने गांव में शुरु करना चाहते हैं तो ट्रेनिंग आए थे। यहां तोमर जी ( निदेशक उद्यान विभाग) ने हम लोगों को बताया कि कैसे पोषक तत्वों से भरपूर मशरूप एक सुपर फूड है।”
उत्तर प्रदेश में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के निदेशक डॉ. आर. के तोमर ने बताया, “मशरुम में बहुत संभावनाएं हैं। मशरूम में पाये जाने वाले पौष्टिक तत्व मानव शरीर के लिए बहुत ही उपयोगी व लाभकारी हैं। प्रोट्रीन का बहुत अच्छा सोर्स है मशरुम। लखनऊ में एक कंपनी है जो मशरुम के पाउडर से बिस्किट बना भी रही है। पिछले दिनों महामहिम राज्यपाल ने बच्चों में ये बिस्किट वितरित भी किए थे।”
उन्होंने आगे कहा, “पिछले साल हमने 500 लोगों को अकेले लखनऊ में प्रशिक्षित किया था, अभी 41 लोगों का प्रशिक्षण पूरा होगा हुआ। नया बैच 26 अगस्त से शुरु होगा।”
इससे पहले ट्रेनिंग लेने आए युवाओं को संबंधित करते हुए उन्होंने उद्यान निदेशक ने कहा “इस प्रशिक्षण से नवयुवक एवं नवयुवकों को एक नयी दिशा मिलेगी। मशरूम का व्यवसाय बहुत ही लाभकारी है, इसको छोटे स्तर पर प्रारम्भ कर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।”
तीन दिन के कार्यक्रम में युवाओं ने केंद्र में ही ओस्टर मशरूम और बटन मशरूम उगाना सीखा। इसके साथ ही मशरूम के विभिन्न मूल्य सवंर्धित उत्पादों यथा सुखा हुआ मशरूम, मशरूम पाउडर, मशरूम सूप, मशरूम आचार, श्रीखण्ड, योगर्ट, कुकीज, मफिन्स, बेबी फूड, कैनिंग, मशरूम की विभिन्न सब्जियॉ, पुलाव, मशरूम सैंडविच, मशरूम बर्गर आदि के बनाने की तकनीकी जानकारी प्रैक्टिकल डेमोस्ट्रेशन के माध्यम से लाभार्थियों को उपलब्ध करायी गई।
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क्षेत्रीय खाद्य अनुसंधान एवं विश्लेषण केन्द्र के निदेशक डॉ. एसके चौहान ने अपने बयान में कहा, “मशरूम उत्पादन एवं उससे निर्मित उत्पादों को तैयार कर उनकी बिक्री, बाजार, मॉल, बाजार, स्कूल, जिम दफ्तर कहीं भी की जा सकती है। इसके अलावा ऑनलाइन या ऑफलाइन लोगों तक मशरुम या उसके उत्पादन पहुंचाकर एक बिजनेस स्थापित किया जा सकता है। ये काम कैसे किया जाए इन्हीं सब की तकनीकी जानकारी एवं मार्गदर्शन उद्यान विभाग की ओर से दिया जाती है।”
डॉ. चौहान ने कहा कि मशरूप से संबंधित कार्य करते न सिर्फ युवक-युवतियां आत्मनिर्भर हो सकते हैं बल्कि कुपोषण भगाने की दिशा में योगदान कर सकते हैं।
क्षेत्रीय खाद्य अनुसंधान एवं विश्लेषण केन्द्र में अलग-अलग ट्रेनिंग साल के कई महीने जारी रहती हैं। जिसमें 2 दिन से लेकर 1 साल तक कोर्स शामिल हैं। जिनकी फीस उसी के अनुरुप है। इस तीन दिन की ट्रेनिंग के लिए प्रति लाभार्थी 700 लिए शुल्क लिया गया।