हरिओम पटवारी के पास 12 एकड़ में तरबूज लगा है। 60 दिन से ऊपर की फसल हो गई लेकिन कोई खरीदार नहीं मिल रहा है। अगर 5-10 दिन उनके खेत का तरबूज नहीं बिका तो पूरी फसल खेत में ही सड़ सकती है।
“आठ लाख रुपए की लागत से 12 एकड़ तरबूज बोया था, जिसमें से 6 लाख रुपए सिंडिकेंट बैंक से इसी फसल के लिए कर्ज़ लिया था। 5-6 दिन में फसल नहीं बिकी तो पूरा पैसा डूब जाएगा। कोरोना और लॉकडाउन ऐसे नहीं तो वैसे मार डालेगा।” निराशा के साथ हरिओम बताते हैं। हरिओम पटवारी दिल्ली से करीब 900 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश में हरदा जिले के दलाह गांव के रहने वाले हैं।
“कहीं माल ही नहीं जा रहा है। हर जगह बंदी (लॉकडाउन है)। एक ट्रक मॉल भोपाल भेजा था 2 दिन से वहां गाड़ी खड़ी है।” हरिओम आगे बताते हैं। इस ट्रक का उन्होंने 16 हजार रुपए भाड़ा अपने जेब से दिया है। 6 मई की दोपहऱ को हरिओम ने गांव कनेक्शन को अपने मोबाइल से एक रसीद भेजी, जिसमें भोपाल भेजा गया उनका 10 टन (100 क्विंटल) तरबूज 53212 में बिका जिसमें से 5461 रुपए वहां का खर्च निकल गया। इसमें से 16000 रुपए ट्रक का भाड़ा, 2000 वहां का होल्डिंग चार्ज के बाद मुझे 29751 रुपए मिले हैं। इस हिसाब से मुझे तरबूज के 3 रुपए का दाम मिला।”
लॉकडाउन ने कैसे फल और सब्जी की खेती करने वाले किसानों को पर असर डाला है, हरिओम के जिले हरदा से करीब 1000 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के कोल्हापुर में रहने वाले अल्फांसो (हाफूस) आम के बड़े कारोबारी नंदकुमार वालान्जू की बातों से समझा जा सकता है।
“आम की हालत खराब हो गई है। कोई पूछने वाला नहीं है। न लोकल में माल खप रहा है और न एक्सपोर्ट हो रहा है। हमारे यहां एक एजेंट सुहैल बागवान ने रत्नागिरी से 7 गाड़ी (ट्रक) एक्सपोर्ट वाला आम मंगा लिया। जिसकी कीमत करीब 60 लाख रुपए है। लेकिन माल जा नहीं पाया। ट्रक और उसके गोदाम में माल सड़ रहा है। सुहैल कह रहा है जिसका माल लिया उसको पैसे कहां से देखा, वो इतना परेशान हो गया है कि कह रहा है कि कुआं और नदी में डूबकर जान दे देगा। ऐसे हालात हो गए हैं।” नंदकुमार कारोबार का हाल बताते हैं।
“इस तरह की परिस्थितियों में फार्म गेट प्राइज (किसानों को मिलने वाला दाम) सस्ता हो जाता है और रिटेल (उपभोक्ता को फुटकर) महंगा हो जाता है। सब्जी, फल और पोल्ट्री (अंडा-मुर्गा) के साथ ये मैं देख रहा हूं। ये सप्लाई में चेन में दिक्कत के चलते होता है, ऐसी परिस्थितियों में किसान और उपभोक्ता दोनों को नुकसान होता है।” महाराष्ट्र के पुणे में रहने वाले कृषि अर्थशास्त्री और जानकार दीपक चव्हाण कहते हैं।
दीपक आगे कहते हैं, ” ऐसा भी नहीं है कि लॉकडाउन में सब्जियों की खपत पर बहुत असर पड़ता है। लेकिन किसान की मोलभाव क्षमता कम जाती है, बीच के लोग उसका फायदा उठाते हैं। महाराष्ट्र में किसानों ने एक अप्रैल से प्याज को लेकर सामूहिक मुहिम चलाई और कहा कि सिर्फ वही लोग माल बेचे जिन्हें जरुरत है। इसका असर ये हुआ कि प्याज की कीमतें बहुत नीचें नहीं गईं।”
कोरोना महामारी की दूसरी लहर देश में कहर बरपा रही है। अब तक 2,26,188 की लोगों की जान जा चुकी है। लाखों लोग अस्पताल में भर्ती है। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए कई राज्यों में लॉकडाउन से कारोबार और आजीविका को तगड़ा झटका लगा है। इनमें एक वर्ग वो भी है जो देश में फल, सब्जी की खेती, पॉल्ट्री से जुड़ा कारोबार करता है। पेरिसेबल आइटम (जल्द खराब होने वाली चीजें) को लेकर लगातार दूसरा साल है जब किसानों उनकी उपज के दाम नही मिल रहे हैं।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने मार्च में जारी आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में सब्जियों का उत्पादन बढ़कर 193.61 मिलियन टन होने का अनुमान जताया था। जबकि साल 2019-20 में ये उत्पादन 188.91 मिलियन टन था। कुल बागवानी फसलों (फल-सब्जी) की उपज 326.58 मिलियन टन होने का अनुमान है। आंकड़ों के अनुसार देश के सभी राज्यों में 2020-21 (प्रथम अनुमान) के मुताबिक 10.71 मिलियन हेक्टेयर में सब्जियों की खेती हो रही है, जिससे 193.61 मिलियन टन उत्पादन होने का अनुमान है जबकि 2019-20 में 10.30 हजार हेक्टेयर रकबे में 188.91 मिलियन टन उत्पादन हुआ था वहीं 2018-19 में 10.07 हजार हेक्टेयर रकबे में 183.17 मिलियन टन सब्जी का उत्पादन हुआ था। वहीं फलों की बात करें तो 2020-21 प्रथम अनुमान के मुताबिक 6.96 मिलियन हेक्टेयर में खेती हो रही है और 103.23 मिलियन टन उत्पादन का अनुमान है।
लखनऊ जैसे शहर में तरबूज फुटकर 20 रुपए किलो तक बिक रहा है लेकिन किसान को चार रुपए किलो का रेट मुश्किल से मिल रहा है उसमें भी प्रति क्विंटल 5 किलो कर्दा (एक कुंटल पर 5 किलो ज्यादा देना होता है) लिया जा रहा है। दिल्ली मुंबई समेत कई शहरों के लोगों ने ट्वीट पर लिखा कि वो मिर्च 20 रुपए की 200 ग्राम तक, आम 80 रुपए किलो तो टमाटर 30 रुपए किलो से ज्यादा में खरीद रहे हैं।
मध्य प्रदेश में हरदा जिले के ही एक और किसान राजेश गैंधर (35 वर्ष) अपने इलाके के प्रगतिशील किसान माने जाते हैं। पिछले कई वर्षों से वो आधुनिक तरीकों से खेती कर मुनाफा भी कमा रहे थे लेकिन ये लगातार दूसरा साल है जब वो अपनी फसल की लागत नहीं निकाल पा रहे। राजेश कई किस्मों के तरबूज, हरी मिर्च, टमाटर की खेती करते हैं।
“मार्केट में भाव ही नहीं मिल रहा है। इन दिनों 40-50 रुपए किलो बिकने वाली हरी मिर्च 20 रुपए में जा रही है तो 9-10 रुपए बिकने वाला तरबूज 4 रुपए किलो और टमाटर आधे से कम रेट 4-5 रुपए किलो में मुश्किल से बिक पा रहा है।
“मेरे पास 25 एकड़ में ये फसलें लगी हैं। प्रति एकड़ हमारा एक से डेढ़ लाख रुपए का खर्च आता है। लॉकडाउन नहीं था तो अच्छा मुनाफा होता था मेरा। मेरी पूरी प्लानिंग मार्च से मई तक महीने के लिए होती थी लेकिन दो साल से कोरोना इन्हीं महीनों में आता है। अब मुनाफा तो दूर लागत निकालनी मुश्किल है।”
लॉकडाउन का असर: सब्जियां और फल माटी मोल, 4 रुपए किलो तरबूज, 20 रुपए किलो मिर्च, आम के खरीदार नहीं
रिपोर्ट: @AShukkla #CovidIndia #CoronaPandemic #FarmersProtest https://t.co/qvdGoBOqDt— GaonConnection (@GaonConnection) May 5, 2021
लॉकडाउन के चलते समस्या सिर्फ सब्जी और फल किसानों को ही नहीं है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब हरियाणा में किसान अलग-अलग समस्याओं से जूझ रहे हैं।
राजस्थान के अलवर जिले के खानपुर मेवान गांव में रहने वाले दीनू प्याज के बड़े किसान हैं, इस बार वो 25 एकड़ प्याज लगाना चाहते हैं। कुछ महीने पहले गांव कनेक्शन से उनकी मुलाकात आजादपुर मंडी में हुई थी। वे फोन पर बताते हैं, “सरकार कहती है किसान के लिए सब कुछ खुला है लेकिन बाजार में न खाद मिल रही न दवाई (पेस्टीसाइड) हमको प्याज (मॉनसून सीजन) के लिए नर्सरी डालनी थी तो 2500 रुपए की एक बोरी डीएपी खरीदकर किसी तरह लाए हैं।” दीनू के मुताबिक बाजार में सिर्फ मेडिकल स्टोरी और किराना की दुकानें खुल रही हैं।
बाजार जाओ तो पुलिस वाले डंडे मारते हैं। जो दुकाने कुछ घंटे खुल रही हैं वो कह रहे कि बंदी में माल नहीं मिल रहा तो जो है वो महंगा मिल रहा। जबकि किसान का माल सस्ते में जा रहा है। 2-3 महीने तक जो प्याज हमने 2000 रुपए कुंतल में बेचा था वो 500-800 पिछले दिनों बिका है जबकि किसान का गेहूं जो तैयार है 1500-1600 रुपए कुंटल में मांगा जा रहा है। जमींदार (किसान) आदमी का काम बिना फसल बेचे चलेगा नहीं भाव जो मिले।” वहीं राजस्थान में ही भरतपुर जिले के डाइना बांस गांव के किसान साजिश खान बताते हैं, “एक एकड़ में कपास लगाना है लेकिन बीच नहीं मिल रहा है। खाद नहीं मिल पा रही है।”
पहले दो दिन, फिर तीन दिन और अब पंचायत चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में भी 10 मई तक लॉकडाउन (आंशिक लॉकडाउन) लग गया है। प्रदेश में गृह विभाग ने 3 मई जो जारी बयान में कहा कि आंशिक कर्फ्यू के दौरान गेहूं की खरीद जारी रहेगी, खाद, बीज, कीटनाशक की दुकानें खुली रहेंगी।
2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का दावा कर रही केंद्र सरकार भी चाहती है कि किसान धान-गेहूं, गन्ना से हटकर फल सब्जियों की खेती करें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के बजट संत्र के दौरान देश के 86 फीसदी छोटे और मझोले किसानों जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है ऐसे करीब 12 करोड़ किसानों से धान-गेहूं छोड़कर मांग के अनुसार नकदी फसल लेने की कह चुके हैं। पीएम का इशारा फल और सब्जियों की खेती की तरफ था उन्होंने स्ट्रॉबेरी से लेकर चेरी टमाटर तक का उदाहरण दिया था। सब्जियों की खेती को बढ़ावा देना, फसल उपरांत होने वाले नुकसान से बचाने और प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए प्याज,टमाटर और आलू के बाद 22 फसलों को ऑपरेशन ग्रीनरी योजना में शामिल किया गया है। लेकिन बाजार में ये योजनाएं जमीन पर आम किसानों के बीच नजर नहीं आ रही हैं।
कोल्हापुर में आम के कमीशन एजेंट नंदकुमार वालान्जू कहते हैं, “इन दिनों सब परेशान हैं, किसान को माल का रेट नहीं मिल रहा। एजेंट के पास काम नहीं है। खाने वाले ज्यादा कीमत चुका रहे हैं। सुहैल बागवान जैसे एजेंट क्या करेंगे। यहां तो लॉकडाउन है कौन सुनेगा एक आढ़ती को 1000 रुपए का माल बेचने पर 60 रुपए कमीशन (6 टका) मिलते हैं। और उसका फंस गया है 60 लाख रुपए। हम लोग कोशिश में हैं कि सुहैल का माल किसी जूस बनाने वाली फैक्ट्री में चला चाए, कुछ रुपए तो छूट आएंगे वर्ना वो कहीं कुछ कर न ले।”
गांव कनेक्शन ने सुहैल बागवान से फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो सका है।
समस्या सिर्फ बाजार की नहीं है, कोरोना और लॉकडाउन से मजदूरी भी महंगी
देश की सबसे बड़े प्याज उत्पादक राज्य महाराष्ट्र के नासिक इलाके में इन दिनों बड़े पैमाने पर प्याज की खुदाई हो रही है लेकिन किसानों के सामने मजदूरी की समस्या है। नासिक जिले में सटाणा तहसील के अभिजीत मुरली धर देवरे फोन पर बताते हैं, “कोरोना के चलते लेबर की बड़ी समस्या हो गई है। हमारे इलाके में प्याज निकालने का ये समय है। यहां ज्यादातर लेबर गुजरात के डांग के आदिवासी इलाके से आते हैं, लेकिन वहां बीमारी के चलते लेबर नहीं आ रहा है, जिससे पहले जो लेबर 200-250 में मिलता था उसके लिए 300-350 रुपए देने पड़ रहे हैं।”
बड़े शहरों में लॉकडाउन के चलते कई राज्यों में प्रवासी मजदूरों की वापसी हुई है लेकिन स्थानीय स्तर समस्या बनी हुई है। राजस्थान में कई जगहों पर किसानों ने 500-600 रुपए में गेहूं कटवाया है तो यूपी के बाराबंकी जिलों में भी दिक्कत है।
टांडपुर गांव के किसान शिवम सिंह बताते हैं, “मेरे पास 9 एकड़ मेंथा और 12 एकड़ तरबूज है। रोज 5-6 लेबर की जरूरत है लेकिन लेबर नहीं है। जिन्हें पहले पैसे एडवांस दे रख हैं वो ही आ रहे हैं बाकी 300-400 मांग रहे हैं वो भी मिलते नहीं।” शिवम के मुताबक लेबर की दिक्कत की वजह, पंचायत चुनाव, गेहूं की कटाई और कई परिवारों में बीमारी रही हैं।
किसान जिनसे बात हुई है जिनके पास तरबूज, मिर्च टमाटर और आम हैं।
हरिओम पटवारे- हरदा, मध्य प्रदेश- 9754325242
राजेश गैंधर- मध्य प्रदेश- 9926666406