Gaon Connection Logo

किन राज्यों में सबसे खुश हैं वो मज़दूर जो आपका अन्न उगाते हैं?

किसान कल्याण

भारतीय कृषि के सितारे कौन से राज्य हैं? ये प्रश्न अगर आपसे पूछा जाए तो शायद आप पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश आदि का नाम लेंगे। लेकिन मीडिया की सुर्ख़ियों से दूर ऐसे कई राज्य हैं जहां खेती से जुड़ी मजदूरी वहां आये सकारात्मक बदलावों के कारण ज्यादा तेज़ी से बढ़ी है।

भारत में दो पिछले दशकों में खेतिहर मजदूरी दरों पर हुई ताज़ा शोध के अनुसार बिहार, मणिपुर, मेघालय, हिमाचल प्रदेश और त्रिपुरा में कृषि मजदूरी दर पिछले 19 सालों में सबसे ज्यादा बढ़ी है। ये वे राज्य हैं जो मुख्यधारा मीडिया में जगह नहीं पाते लेकिन इसके बावजूद यहां अन्य बड़े राज्यों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा काम हो रहा है। गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में वृद्धि दर इस राज्यों से काफी कम रही है।

बेंगलुरु-स्थित फाउंडेशन फ़ॉर अग्रेरियन स्टडीज़ ने अपने शोधपत्र “रिव्यु ऑफ़ अग्रेरियन स्टडीज़ शोध में बताया कि भारत में 1998-99 और 2006-07 के बीच जोत के लिए देश में मजदूरी दर तीन फीसदी बढ़ी। आंध्र प्रदेश में ये वृद्धि 1.16, असम में -1 रही। जबकि मेघालय में ये दर 4.10, त्रिपुरा में 6.20, हिमाचल प्रदेश में 3.30 और वेस्ट बंगाल में 3.30 फीसदी रही। जबकि बड़े प्रदेश जैसे महाराष्ट्र में ये वृद्धि दर 0.1, गुजरात में 2.0, हरियाणा 0.3 और रही। जबकि राजस्थान, तमिलनाडु सहित पूरे देश में वृद्धि दर निगेटिव रही।

ये भी पढ़ें- किसानों के लिए बनाई गई योजनाओं में किसान होता है क्या ?

2006-07 और 2014-15 के बीच इन प्रदेशों में जोत के लिए मिलने वाली मजदूरी और ज्यादा बढ़ी। बिहार में 8.2, आंध्र प्रदेश में 7.1 कर्नाटक में सबसे ज्यादा 9.2, मणिपुर में 6.0, मेघालय में 4.4 और त्रिपुरा में 2.7 फीसदी की दर से मजदूरी बढ़ी। जबकि गुजरात में ये वृद्धि दर 2.7, मध्य प्रदेश में 6.7, महाराष्ट्र में 6.9 और उत्तर प्रदेश में 6.3 फीसदी रही।

बुवाई / रोपाई / निराई (पुरुष) की मजदूरी में भी छोटे प्रदेश ही आगे रहे। 1998 से 2006-07, 2014-15 के बीच बिहार में क्रमश: 1.6, 10.00, मेघालय में 3.7, 2.8, त्रिपुरा में 6.0, 2.6, पश्चिम बंगाल में 2.6, 5.8 और मेघालय में 3.7, 2.8 फीसदी रही। जबकि इस अवधि और क्षेत्र में इस दौरान महिलाओं की मजूदरी भी इन प्रदेशों में ज्यादा बढ़ी है।

इस क्षेत्र की मजदूरी में महिलाओं की मजदूरी बहुत ठीक नहीं थी। लेकिन 2007 के बाद स्थिति में बदलवा हुआ। 1998 से 2007 के बीच की ग्रोथ रेट यहां 1.8 जबकि 2014-15 के बीच वृद्धि दर 9.40 फीसदी रही। वहीं गुजरात में दस दौरान ये दर 0.5 से 4.9 फीसदी तक पहुंची। मेघालय में ये दर 3.20, 3.3, त्रिपुरा में 6.2, मणिपुर में 1.5, 9.3 और हिमाचल प्रदेश का आंकड़ा मिल नहीं पाया है अभी तक। वहीं हरियाणा में ये ग्रोथ रेट 2.2, 5.4, कर्नाटक में 0.2, 7.3, महाराष्ट्र में 0.9, 7.0 और उत्तर प्रदेश में 0.4, 6.9 फीसदी रही।

ये भी पढ़ें- भावांतर को पूरे देश में लागू करने की सुगबुगाहट लेकिन, एमपी के किसान ही खुश नहीं…

महाराष्ट्र अकोला के लाला लाजपत सोसायटी के किसान राम विलास गाँव कनेक्शन से कहते हैं “हमारी प्रदेश सरकार क्या करती है, ये हमें पता ही नहीं चलता। योजनाएं बनती भी हैं तो हम तक पहुंच नहीं पाती। ऐसे में हमारी आय कैसे बढ़ेगी। हमारे पड़ोसी प्रदेश मध्य प्रदेश में हमारे यहां से अच्छा काम होता है।”

कटाई / खलिहान / सूप की मजदूरी के मामले में भी छोटे प्रदेश बड़े और विकसित कहे जाने वाले राज्यों से आगे रहे। 2014-15 (पुरुष) की बात करें तो बिहार में वृद्धि दर 9.10, मणिपुर में 10.7, मेघालय में 3.5, त्रिपुरा में 2.7 फीसदी रही। जबकि उत्तर प्रदेश में ये वृद्धि दर 7.4, तमिलनाडु 10.5 और वेस्ट बंबाल में 6.4 फीसदी रही। सबसे कम वृद्धि दर त्रिपुरा में रही।

बात अगर महिलाओं की करें तो दस क्षेत्र में सबसे ज्यादा वृद्धि मणिपुर 10.4, ओडिशा 10.3, मध्य प्रदेश 10.0, तमिलनाडु 9.8 और बिहार में 8.9 फीसदी रही। सबसे ज्यादा वृद्धि मणिपुर में हुई जबकि मेघालय में सबसे कम 2.9 फीसदी बढ़ोतरी हुई। छोटे प्रदेशों में राजमिस्त्री और लोहार की आय भी बड़े शहरों की अपेक्षा ठीक बढ़ी है।

ये भी पढ़ें- देविंदर शर्मा का लेख : शहर के लोगों काे न खेती की चिंता है न किसानों की

बिहार, मुजफ्फरपुर के ब्लॉक मोतीपुर के रहने के किसान अजय आनंद कहते हैं “प्रदेश सरकार की योजनाओं का लाभ मजदूरों को मिल रहा है। पहले बस परंपरागत खेती होती थी, लेकिन सरकार की मदद से अब फल और सब्जियों की पैदावार भी ज्यादा हो रही है। ऐसे में मजदूरी दर तो बढ़ेगी ही।”

छोटे प्रदेशों में कैसे बढ़ी कृषि मजदूरी दर

केंद्र सरकार के अलावा प्रदेश सरकारें भी कृषि में सुधार के लिए विभिन्न योजनाएं संचालित कर रही हैं। जैसे कर्नाटक में राज्य सरकार ने कृषि भाग्य योजना नामक योजना कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए शुरू की। इस योजना के तहत सरकार कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाकर नई तकनीक और उपकरण का सृजन टिकाऊ कृषि पद्धतियां और राज्य में बेहतर जल प्रबंधन और सिंचाई सुविधाओं को बदलने के लिए प्रयास कर रही है।

कर्नाटक बेल्लारी के किसान यशवंत कुमार कहते हैं ” हमारी सरकार गैर परंपरागत खेती पर ज्यादा ध्यान देती है। हम उन फसलों को पैदा करने का प्रयास करते हैं जिनसे हमें ज्यादा फायदा होता है। जब हमें फायदा होगा तो हमें मजदूरों को ज्यादा मजदूरी देने में कोई दिक्कत नहीं होती।”

ये भी पढ़ें- खेत मज़दूरों के लिए क्यों नहीं है समान ऋण व्यवस्था ?

कर्नाटक में 70% किसान अपने फसलों के लिए बारिश के पानी पर निर्भर रहते हैं। इन बारिश वाले खेतों में शुष्क अवधि के दौरान किसी भी प्रकार का विश्वस्त सिंचाई का साधन नहीं है। फसलों को महत्वपूर्ण समय के दौरान पानी पर्याप्त मात्रा में प्राप्त नहीं हो पाता। कम बारिश के कारण हानि या कम उपज एक अस्थिर अनुपात में खेती को कम कर देता है। इस योजना के कारण अब उन जगहों पर भी खेती होने लगी जहां पहले नहीं होती थी। ऐसे में कृषि मजदूरों की आय तो बढ़ी ही, मजदूरी दर भी बढ़ गई।

मध्य प्रदेश इंदौर में रहने वाले किसान नेता केदार सिरोही कहते हैं “सर्वे सच्चाई बयां कर रहा है। मध्य प्रदेश में किसानों की स्थिति बदतर है। इस क्षेत्र में मजदूरी करने वाले किसान मजदूरों की स्थिति और खराब है। खेती की लोकप्रियता घट रही है। ऐसे में मजदूरी तो घटेगी ही।”

ये भी पढ़ें- जमीनी हकीकत : मध्यम वर्ग के ज्यादातर लोगों ने किसान को हमेशा एक बोझ समझा है

बिहार में भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। बिहार पांच वर्ष में 12 विभागों के माध्यम से विभिन्न कृषि योजनाओं पर 1. 54 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगा। बिहार सब्जी उत्पादन के मामले में देश में तीसरे नंबर पर पहुंच गया है। कभी सूखा प्रदेश कहा जाना वाले ये प्रदेश अब देश की जीडीपी में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।

More Posts