कृषि सुझाव: जल्द पूरी करें प्याज की रोपाई

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कृषि सुझाव: जल्द पूरी करें प्याज की रोपाईगाँव कनेक्शन

उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद की अध्यक्षता में 13 जनवरी, 2016 को फसल मौसम सतर्कता समूह (क्राॅप वेदर वाॅच ग्रुप) की वर्ष 2015-16 की छब्बीसवीं बैठक हुई। बैठक में प्रदेश में मौसम के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में किसानों को इस सप्ताह के लिए निम्नलिखित सुझाव जारी किए गए -

  • जिन क्षेत्रों में वर्षा का अनुमान है वहाॅं 16 जनवरी तक सिंचाई, रोग एवं कीटनाशी का छिड़काव न करें।
  • सिंचाई कर फसलों में नमी बरकरार रखें।
  • जिन कृषकों ने अभी तक प्याज की रोपाई नहीं की है यथाशीघ्र सम्पन्न करें।
  • गेहूॅं में बुवाई के 18-20 दिन बाद (ताजमूल अवस्था में) हल्की सिंचाई अवश्य करें। विशेष रूप से ऊसर भूमि में पहली सिंचाई हल्की ही करें। 
  • पशुओं में सभी तरह के रोगों का टीकाकरण विभाग द्वारा मुफ्त है जो कृषकों के द्वार तक जा कर लगाया जा  रहा है। कृषक इसका लाभ उठायें। 
  • जायद फसलों एवं सब्जियों की बुवाई का समय आ रहा है अतः बीज की व्यवस्था सुनिश्चित करें।

गेहूॅ की खेती

  • देर से बोई गई गेहूॅं की फसल में 20-25 दिन के मध्य पहली सिंचाई के आसपास पौधों में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 5 किग्रा. जिंक सल्फेट तथा 16 किग्रा. यूरिया को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिछिड़के। जिन क्षेत्रों में यूरिया की टाॅपड्रेसिंग हो चुकी हो वहाॅं यूरिया के स्थान पर 2.5 किग्रा. बुझे हुये चूने के पानी (2.5 किग्रा. चूने को 10 लीटर पानी में सायंकाल भिगोकर दूसरे दिन पानी निथार कर) का प्रयोग करें।
  • गेहूॅंसा एवं जंगली जई आदि पतली पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिये आईसोप्रोट्यूराॅन 75 प्रतिशत डब्लू.पी. 1.25 किग्रा. प्रति हेक्टेयर अथवा सल्फोसल्फ्यूराॅन 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 33 ग्रा. (2.5 यूनिट)/हे. मात्रा बुवाई के 20-25 दिन के बाद 500-600 ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। 
  • सॅंकरी एवं चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवारों के एक साथ नियंत्रण हेतु सल्फोसल्फ्यूरान 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 33 ग्रा. (2.5 यूनिट)/हे. अथवा मैट्रीब्यूजिन 70 प्रतिशत डब्लू.पी. की 250 ग्रा. प्रति हेक्टेयर अथवा सल्फोसल्फ्यूराॅन 75 प्रतिशत, मेट सल्फोसल्फ्यूराॅन मिथाइल 5 प्रतिशत डब्लू.जी. 40 ग्राम (2.50 यूनिट) पहली सिंचाई के बाद 500-600 ली. प्रति हेक्टेयर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • तराई क्षेत्रों में इस समय गेरूई रोग के लक्षण दिखाई देने पर थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू.पी. की 700 ग्राम अथवा जिरम 80 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा. अथवा मैंकोजेब 75 डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा. मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 750 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • गेहूॅं में पत्ती धब्बा रोग दिखाई देने पर गेरूई रोग के समान उपचार करें।

दलहनी फसलोें की खेती

जिन क्षेत्रों में सिंचाई के साधन उपलब्ध नहीं हैं व वर्षा के आसार भी नहीं हैं वहाॅं पर 2 प्रतिशत पोटाश का छिड़काव दलहनी फसलों पर करें।  

चना में प्रथम सिंचाई आवश्यकतानुसार फूल आने से पहले करें। फूल आते समय सिंचाई कदापि न करें इससे हानि होगी। 

चना में उकठा का प्रकोप दिखाई देने पर ग्रसित पौधों को उखाड़कर जला दें अथवा अधिक मात्रा में दिखाई देने पर 5 किग्रा. ट्राइकोडर्मा का 1000 लीटर पानी में घोल तैयार कर छिड़काव करें।  

मटर में फूल आने एवं दाना बनते समय आवश्यकतानुसार सिंचाई अवश्य करें। 

मटर की फसल में पत्तियों, फलियों और तनों पर सफेद चूर्ण की तरह फैले बुकनी रोग (पाउडरी मिल्डयू) की रोकथाम के लिये घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत 2 कि.ग्रा. अथवा ट्राईडेमार्फ 80 प्रतिशत ई.सी. 500 मिली./हेक्टेयर लगभग 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

मटर में फली बेधक कीट एवं सेमीलूपर कीट का प्रकोप होने पर नियंत्रण हेतु बैसिलस थूरिनजिएन्सिस (बी.टी.) की कस्र्टकी प्रजाति 1.0 किग्रा. अथवा फेनवैलरेट 20 प्रतिशत ई.सी. 1 लीटर अथवा मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस0एल0 1 लीटर जैविक/रासायनिक कीटनाशको का बुरकाव अथवा 500-600 लीटर में पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।

मटर में अल्टरनेरिया, पत्ती धब्बा एवं तुलासिता रोग के नियंत्रण हेतु मैंकोजेब 75 डब्लू.पी. की 2 किग्रा. अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2 किग्रा. अथवा काॅपर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू.पी. की 3 किग्रा. मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 500-600 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

अरहर में पत्ती लपेटक कीट की रोकथाम हेतु मोनोक्रोटोफाॅस 36 ई.सी. 800 मिली. प्रति हेक्टेयर की दर से घोल तैयारकर छिड़काव करें।

अरहर की फली मक्खी के नियंत्रण हेतु फूल आने के बाद मोनोक्रोटोफाॅस 36 ई.सी. अथवा डाइमेथोएट 30 ई.सी. एक लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रभावित फसल पर छिड़काव करें।

सरसों की खेती

सरसों में माॅंहू की रोकथाम हेतु नाशीजीवों के प्राकृतिक शत्रुओं जैसे इन्द्रगोप भृंग, क्राइसोपा, सिरीफेड आदि का फसल वातावरण में संरक्षण करना चाहिए। नाशीजीवों व उनके प्राकृतिक शत्रुओं की संख्या 2:1 का अनुपात होना चाहिए। यदि नाशीजीवों की संख्या प्राकृतिक शत्रुओं से अधिक है तो डाइमिथोएट 30 ई.सी. 1 लीटर या इन्डोसल्फान 35 ई.सी. 1.25 लीटर या मोनोक्रोटोफास 36 एस.एल. 1.00 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

अल्टरनेरिया, पत्ती धब्बा, सफेद गेरूई एवं तुलसिता रोग के नियन्त्रण हेतु मैकोजेब 75 डब्लू.पी. की 2.5 किग्रा. अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा अथवा जिनेब 80 प्रतिशत डब्लू पी की 2.0 किग्रा. अथवा कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू.पी. की 3.0 किग्रा. मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 600-750. लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

आरा मक्खी एवं बालदार सूढ़ी के नियन्त्रण के लिये मैलाथियान 5 प्रतिशत डब्लू.पी. की 20-25 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बुरकाव अथवा मैलाथियान 50 प्रतिशत ई.सी. की 1.50 लीटर अथवा डाइक्लोरोवाॅस 76 प्रतिशत ई.सी. की 500 मि.ली. मात्रा अथवा कयूनाॅलफास 25 प्रतिशत ई.सी. की 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600 से 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

गन्ना की खेती

बसन्तकालीन गन्ने की बुवाई के लिए खेत तैयार करें। संस्तुत प्रजाति के स्वस्थ बीज की आपूर्ति हेतु निकट स्थित गन्ना शोध केन्द्र अथवा चीनी मिल से सम्पर्क करें।  

सब्जियां/शाकभाजी

आलू में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें तथा झुलसा एवं माहू के नियंत्रण हेतु क्रमशः मैंकोजेब (2 ग्रा./ली. पानी) तथा फास्फामिडान (0.6 मिली/ली. पानी) का 10-15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें। 

प्याज की पूसा गोल, कल्यानपुर लाल गोल तथा लाईट रेड किस्मों की रोपाई करें।

फल

गुजिया (मिली बग) के उपचार के लिये आम के तने के चारों ओर गहरी जुताई करें। तने पर 400 गेज की पालीथीन की 25 सेमी. चैड़ी पट्टी बाॅधे और पट्टी के ऊपरी तथा निचले किनारों को सुतली से बाॅधकर निचले सिरे पर ग्रीस लगाकर सील कर दें। 2 प्रतिशत मिथाइल पैराथियान चूर्ण (200 ग्राम/पेड़) तने के चारों ओर बुरक दें। यदि कीट पेड़ पर चढ़ गये हों तो 0.04 प्रतिशत मोनोक्रोटोफाॅस (1 मिली./लीटर पानी) या डाइमेथोएट 0.06 प्रतिशत (02 मिली./ली. पानी) का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करें।

आम में गुम्मा विकार (माल फारमेशन) से बचाव के लिये बागों में बौर तोड़ दें।  

पेड़ पर स्थित जालों वाले गुच्छों को तोड़ कर जला दें एवं गहरी जुताई करें। 

आम में बौर निकलने के समय मिज का प्रकोप दिखाई देते ही फेनिट्रोथियान 1.0 मिली./ली. या डाईमेथोएट 1.5 मिली./ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें। यह छिड़काव गुजिया कीट नियंत्रण में भी प्रभावी होगा। 

आम में तना छेदक कीट का प्रकोप होने की दशा में उसके द्वारा बनाये गये छेदों में डाइक्लोरोवास में रूई भिगाकर भर दें तथा छेदों को गिली मिट्टी से बन्द कर दें। 

 

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