कस्तूरबा स्कूलों में पढ़ने से कतरा रहीं छात्राएं

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कस्तूरबा स्कूलों में पढ़ने से कतरा रहीं छात्राएंगाँव कनेक्शन

इटवा (सिद्धार्थनगर)। स्थानीय विकास क्षेत्र के ग्राम सिसवा बुजुर्ग स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय की छात्राएं विद्यालय प्रशासन की उदासीनता का दंश झेलने को मजबूर हैं। कार्रवाई के अभाव में छात्राओं का इस विद्यालय से मोह भंग हो रहा है। शायद यही कारण है कि दिन प्रतिदिन यहां छात्राओं की संख्या में कमी हो रही है। नामांकन के सापेक्ष यहां चन्द छात्राएं ही शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।

यहां अधिकांश स्टाफ बहाना बनाकर अक्सर छुट्टी पर रहता है और हफ्तों गायब रहते हैं, नाम न बताने की शर्त पर कर्मचारी ने बताया, ''वर्ष 2011-12 में विद्यालय की शुरुआत हुई थी। इस वर्ष के सत्र में 100 छात्राओं ने एडमीशन लिया था, लेकिन अव्यवस्थाओं के कारण इस समय मात्र 30 से 35 छात्राएं ही विद्यालय में उपस्थित हैं।’’

ग्राम सिसवा बुजुर्ग के प्रदीप कुमार (30 वर्ष) बताते हैं, ''एक तो स्टाफ की कमी दूसरे कर्मियों व अध्यापकों का अक्सर गायब रहना यहां की बालिकाओं को अखर रहा है। गाँव के बाहर बने इस विद्यालय के छात्राओं को समय पर भोजन व नाश्ता भी न दिये जाने की सूचना है। यही कारण है कि जो बच्चियां छुट्टी आदि में घर चली जाती हैं तो वह दोबारा बड़ी मुश्किल से वापस आती हैं।’’ 

इसके अलावा अधूरे बाउन्ड्रीवाल से परिसर में जंगली जानवरों का हमेशा भय बना रहता है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार की बच्चियों को नि:शुल्क शिक्षा तथा अन्य संसाधन मुहैया कराकर स्वावलम्बी बनाने वाली शासन की मंशा पर यहां पूरी तरह पानी फिरता नजर आ रहा है। 

यहां कार्यरत एकाउन्टेन्ट कभी कभार आते हैं। यहां स्टाफ के नाम पर वार्डेन आशा गुप्ता, फुलटाइम टीचर माया मौर्या, पार्ट टाइम टीचर काजी सब्बर अजीज, शैलेष कुमार, चौकीदार विनोद कुमार के अलावा एक एकाउन्टेन्ट की तैनाती बताई जा रही है। लेकिन सिसवा के ही रमेश कुमार का कहना है, ''कभी एक साथ सारे स्टाफ देखने को नहीं मिलते हैं। किसी न किसी बहाने से अक्सर गायब रहने की मानो परम्परा सी हो गई है।’’ छात्राओं के अनुसार तेल, साबुन के अलावा खानपान सामग्री देने में भी लापरवाही किया जाता है। उत्तर तरफ का बाउंड्री वाल बना ही नहीं है। सामने का गेट और बाउंड्रीवाल टूट गया है। वार्डेन आशा गुप्ता ने बताया, ''शासन व विभाग से जो सुविधायें दी जा रही हैं उसे बच्चियों को उपलब्ध कराया जाता है।’’

रिपोर्टर - निसार अहमद खान

 

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