कथकली 300 साल पुराना शास्त्रीय नृत्य
गाँव कनेक्शन 14 May 2016 5:30 AM GMT
गर्मी की छुट्टियों में सैर-सपाटे की तैयारी कर रहे हैं तो केरल बेहतरीन विकल्प हो सकता है। प्रकृति के करीब जाने का अहसास होता है वहां। अपने खूबसूरत लोकेशन के साथ ही केरल एक और चीज के लिए मशहूर है और वह है-केरल का शास्त्रीय नृत्य यानी कथकली।
केरल का यह नृत्य 300 साल पुराना है और दुनियाभर में मशहूर है। नृत्य विधा के साथ ही इसका आकर्षक मेकअप लोगों को खूब लुभाता है। इस नृत्य में बैले, ओपेरा, मास्क और मूक-अभिनय का मिश्रित रूप देखा जा सकता है। माना जाता है इसकी उत्पत्ति कूटियट्टम, कृष्णनअट्टम और कलरिप्पयट्टु जैसी अभिनय कलाओं से हुई है। कथकली में भारतीय महाकाव्य और पुराणों के आख्यानों और कथाओं का प्रदर्शन किया जाता है।
शाम होने के बाद केरल के मंदिरों में प्रस्तुत किए जाने वाले कथकली की उद्घोषणा केलिकोट्टु अथवा ढोल पीटकर और चेंगिला (गोंग) के वादन के साथ की जाती है। कथकली का रंगमंच जमीन से ऊपर उठा हुआ एक चौकोर तख्त होता है, जिसे ‘कलियरंगु’ कहते हैं। शाम को कथकली आयोजित करने के लिए दीए जलाए जाते हैं जिसको ‘आट्टविलक्कु’ कहते हैं।
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