कुम्भ मेले में भूले-भटकों को मिलाते राजाराम

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कुम्भ मेले में भूले-भटकों को मिलाते राजाराम

इलाहाबाद। 'एक लड़का जिसकी उम्र दस वर्ष है, जिसने पीले रंग की शर्ट और नीली पैंट पहनी है, पूछने पर अपना नाम रमेश बता रहा है, यह भूले भटके शिविर में बैठा है, जिस भी सज्जन का ये बच्चा हो वो आकर इसे यहां से ले जाए।' 

इलाहाबाद के कुम्भ मेले, अर्धकुम्भ और माघ मेले में सबसे ज्यादा सुनी जाने वाली आवाज यही होती है। भारत का सबसे बड़ा मेला कहे जाने वाले कुम्भ व हर साल लगने वाले माघ मेले में लाखों लोग आते हैं और उन्हीं में से कुछ बिछड़ जाते हैं। पर उनको मिलाने का काम राजाराम तिवारी बिना किसी सरकारी मदद के सात दशकों से कर रहे हैं।

सत्तर वर्षों से संगम के किनारे भूले-भटकों का शिविर लगा रहे राजाराम तिवारी ने गाँव कनेक्शन को खास बताया, ''सन 1946 से वो लगातार भटके हुए श्रद्धालुओं को मिला रहे हैं।" वे आगे बताया, ''एक बार सन 1946 में वो अपने दोस्तों के साथ मेले में घूम रहे थे तो उन्हें एक रोती हुई वृद्धा मिली जो अपने परिवार से बिछड़ गई थी, उस समय लाइट भी नहीं होती थी और न कोई लाउडस्पीकर था। सुबह मैंने उस महिला के परिवार को ढूंढ कर उसे सौंप दिया। फिर मैंने सोचा कि ऐसे तो न जाने कितने लोग अपने परिवार से बिछड़ जाते हैं, बस वही वो पल थे जब से मैंने दूसरों को मिलाना ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया था।"

मूलत: प्रतापगढ़ के राजाराम तिवारी (86 वर्ष) उम्र के साथ कमजोर हो गए है पर उनके जोश में कोई कमी नहीं है। तिवारी जी के छोटे बेटे उमेशचंद ने हमे बताया, ''शूटिंग शुरू होने से पहले अमिताभ बच्चन पिताजी से मिलने आए और आते ही गले से लगा लिया। मुलाकात के समय दोनों ही भावुक थे।" 

राजाराम तिवारी ने बताया, ''अब तक करीब 13 लाख लोगों को मिलवाया है बड़ी दूर-दूर के लोग भी बिछड़ जाते थे तो उनको मिलाने में मुश्किल होती थी।" 

एक टीवी शो 'आज की रात है जिन्दगी' में शो के दौरान अमिताभ बच्चन ने कहा, ''राजाराम तिवारी के इस प्रयास से न जाने कितनों को अपने परिवार से मिलने का मौका मिला। तिवारी जी ने न केवल अपना, बल्कि पूरे प्रयाग का नाम ऊंचा किया है।

राजाराम तिवारी के सम्मान में टीवी शो 'आज की रात है जिन्दगी' में एक एपिसोड़ बनाया गया।

अब तक 13 लाख लोगों को अपने से मिलवाया

सन् 1946 से अब तक राजाराम तिवारी जी ने छह कुम्भ, सात अर्धकुम्भ और 50 माघ मेले में तेरा लाख लोगो को उनके घर पहुचाया है। अब तिवारी जी के छोटे बेटे उमेश पिता के साथ मिल कर भूले भटकों का शिविर लगाते हैं।

'फिल्मों की कहानियां बदलनी पड़ेंगी' 

राजाराम के सम्मान कार्यक्रम में मौजूद सुपर स्टार अजय देवगन को भरोसा नहीं हो रहा था की कुम्भ में लोग मिलते भी है। उन्होंने फिल्मों में सिर्फ बिछडऩे की कहानियां देखी थी। राजाराम तिवारी से मिलने पर अजय काफी खुश थे और हैरान थे की कोई व्यक्ति लाखों लोगों को कैसे मिलवा सकता है। तिवारी के बेटे उमेश चंद ने बताया, ''शूटिंग के दौरान अजय और बच्चन साहब बाबूजी की बातों को बड़े ध्यान से सुने रहे थे और उन्होंने बीच में बोला भी की अब फिल्मों में दो भाइयों के बिछडऩे की कहानी बदली पड़ेगी।

रिपोर्टर - आकाश द्विवेदी

 

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