'मेरे मरने के बाद ही अलग होगी शहनाई'

कानपुर के रशीद अहमद जब शहनाई बजाते हैं तो उसकी आवाज लोगों के दिलों में उतर जाती है। देखिए शहनाई को अपनी जिंदगी समझने वाले रशीद अहमद की जिंदगी की एक झलक।

Deepanshu MishraDeepanshu Mishra   14 July 2018 1:26 PM GMT

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कानपुर। कानपुर में रहने वाले रशीद अहमद जब शहनाई बजाते हैं तो लोग सुनते ही उन तक खिंचे चले आते हैं। पहले तो ये सिर्फ शहनाई की तर्ज बजाते थे, लेकिन अब लोग इनसे गानों की फरमाइश करते हैं और इनके बजाने पर लोग खूब वाहवाही भी करते हैं।

शहनाई की धुन पर लोगों के पैरों को थिरकने पर मजबूर कर देने वाले कानपुर के रहने वाले रशीद अहमद बताते हैं, "हम बहुत से ऐसे घरों में शहनाई बजाने के लिए गए, जहाँ पर मेरी बहुत इज्जत की गई। इज्जत के साथ-साथ हमें पैसा भी मिला और हमें काम भी बहुत ज्यादा मिला। शादी में शहनाई बजना बहुत शुभ माना जाता है। शहनाई जिस घर में बजती है उस घर में खुशियाँ भर जाती हैं।"

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रशीद अहमद जब शहनाई पर पुराने गाने बजाते हैं तो लोग झूम उठते हैं

रशीद आगे बताते हैं, "हम इसे कभी छोड़ नहीं सकते हैं और अपनी जिंदगी भर छोड़ेंगें भी नहीं। हम अपने बच्चों को शहनाई सिखाने की कोशिश कर रहे हैं। जवानी में तो अपना नाम नहीं कमा पाया तो हो सकता है बुढ़ापे में ही नाम हो जाए।"

रशीद अहमद ने बताया, "हम शहनाई को लगभग 40 वर्षों से बजा रहे हैं। शहनाई से मेरा बहुत ज्यादा लगाव है और शहनाई मेरी जान है। मेरे मरने के बाद ही ये मुझसे अलग होगी। हमने शहनाई शादी, जनेऊ, तिलक में तो बजाई ही है, इसके साथ-साथ हमने कई बड़े नेताओं के सामने भी शहनाई बजाई है। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, नेपाल और कई जगह पर हमने शहनाई बजाई है।"

"पुराने गाने जब हम बजाते हैं तो बहुत तारीफ होती है। पुराने गायक के गाने जब हम शहनाई पर बजाते हैं तो सब झूम उठते हैं। सभी धर्मों में हम जाते हैं और शहनाई बजाते हैं। चाहे छोटा हो या बड़ा, हम सभी जगहों पर जाते हैं। अब नए लोगों की नई पसंदे भी सामने आने लगी हैं तो ढेर सारे गाने भी बजाने होते हैं।" रशीद अहमद ने बताया।

रशीद आगे बताते हैं, "हम तो पढ़े लिखे हैं नहीं, लेकिन हमें शहनाई का पूरा ज्ञान है। हमारे बाप-दादा जो शहनाई बजाते थे उन्हें भी शहनाई का ही ज्ञान था वो भी ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। मैंने अपने बच्चों को पढ़ाया भी है और उन्हें शहनाई बजाना भी सिखाया है।" रशीद अहमद ने बताया।

शहनाई बजाते समय नाल बजाकर अपने पिता का साथ देने वाले शमसीद अहमद बताते हैं, "पापा के साथ में हम शहनाई बजाने के लिए जाते हैं। पापा जब शहनाई बजाते हैं उस समय बस यही दिल करता है कि उसी में खो जाएँ। हम इतना चाहते हैं कि मेरे पापा के शहनाई की आवाज कभी बंद न हो इसलिए मैं अपने पापा की जगह ले लूँगा। शहनाई का काम कुछ समय का होता है, लगन के समय होता है इसके अलावा हम फेरी भी लगाते हैं।"

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"शहनाई से हमें इतना प्यार था कि काफ़ी छोटी उम्र से ही हमने शहनाई सीखना शुरू कर दिया था। आज हमें शहनाई बजाते-बजाते 10 साल हो गए हैं। जब मैं शहनाई बजाना सीखता था तो लोग हमसे बोलते थे कि ये क्या लेकर घूमते रहते हो लेकिन मैने छोड़ा नहीं। शहनाई बजाने के लिए मैं जंगल की तरफ भाग जाता था और वहीँ बैठ कर रियाज करता था। शहनाई से हमें बहुत प्यार है और इसे आगे बढ़ाने का हम पूरा प्रयास करेंगें।" शमसीद ने बताया।

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