माह के अंत तक काबू में अाएगी महंगाई

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माह के अंत तक काबू में अाएगी महंगाईgaonconnection

लखऩऊ। चढ़ते पारे के साथ अप्रैल में महंगाई का ग्राफ भी चढ़ा है। आम आदमी की रोज़ाना ज़रूरत का अनाज अरहर, उदड़ की दाल और चीनी समेत खाने-पाने की कई चीजें महंगी हो गई हैं। लेकिन बाज़ार के जानकार मान रहे हैं कि जनता को घबराने की आवश्यकता नहीं क्योंकि महंगाई 15 अप्रैल के बाद कम पड़ने की संभावना है।

मार्च के पहले हफ्ते से अप्रैल के शुरूआती हफ्ते की चीनी, अरहर और उरद दाल व छोले के दामों में तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई। मार्च के पहले हफ्ते में अरहर दाल 108 रुपये किलो थी जबकि अब 123 से 124 रुपये प्रतिकिलो पहुंच चुकी है। फुटकर बाजार में इसकी कीमत 130 से 140 रुपये तक है। इसी तरह उड़द की दाल 100 रुपये से बढ़कर 120 रुपये और छोले 75 से बढ़कर 100-110 तक पहुंच गया है।

लखनऊ के डंडहिया बाजार के किराना व्यापारी नीरज कुमार बताते हैं, “तेल और आटा छोड़कर लगभग खाने पीने की हर चीज महंगी हुई है।” 

‘लखऩऊ दाल एंड राइस मिलर्स एसोसिएशन’ के अध्यक्ष और कारोबारी भरत भूषण गुप्ता महंगाई बढ़ने की कई वजह गिनाते हैं। “मौसम की मार के चलते दहलन की फसल पर असर पड़ा है। अधिकांश दाल विदेशों से आती है और वहां डॉलर चलता है, डॉलर के मुकाबले इस वक्त रुपया कमजोर है।

त्यौहार के चलते कई मंडिया बंद रही। यूपी में ललितपुर मंडी दाल की सबसे बड़ी मंडी है, होली के पहले ही बंद हो गई थी और आठ दिन बंद रही। अब वहां करोबार शुरू हुआ है। इसके साथ ही मार्च क्लोजिंग के चलते भी कारोबारियों ने बड़े लेन-देन नहीं किए इसलिए सब मांग ज्यादा हुई और आपूर्ति कम, लिहाजा कीमतें बढ़ गई।”

भूषण ने बताया, “लेकिन हमें लगता है 15 अप्रैल के बाद मार्केट गिर सकती है। बाजार में अरहर और मसूर की नयी फसल आने वाली है। साथ ही सरकार ने महंगाई पर काबू पाने के लिए खाद्य पदार्थों की खरीद के लिए जो नौ हजार करोड़ का बजट रखा उससे नैफेड जैसी सरकारी संस्थाओं ने बड़े पैमाने पर दालों की बफर स्टॉक बनाया है इसलिए कीमतें कम होने की उम्मीद की जा सकती है।”

इस बारे में उत्तर प्रदेश मंडी परिषद के संयुक्त निदेशक, कृषि विपणन एवं कारोबार, दिनेश चंद्र बताते हैं कि मार्च और अप्रैल के बीच को ट्रांसजिशन पीरियड (पुरानी से नई फसलों के बदलाव का समय) कहा जाता है खेती और संबंधित कारोबार के लिए। मंडिया बंद होती हैं, खरीद-फरोख्त भी बड़े पैमाने पर नहीं होती। पुरानी फसलें खत्म हो रही होती हैं और नई के आने में वक्त होता है। इसलिए कई कुछ चीजें महंगी हो जाती हैं। मार्च के आखिर और अप्रैल के शुरूआत की कीमतों में ज्यादा फर्क नहीं आया है। आने वाले दिनों में रेट कम हो सकते हैं।

 

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