मांगें पूरी हो भी सकती हैं, जानें कैसे वापस आएंगी?

Swati ShuklaSwati Shukla   2 Jun 2016 5:30 AM GMT

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लखनऊ। डॉक्टर हड़ताल पर हैं, पर ज़िंदगी की आस में अस्पताल पहुंचे मरीज समय पर इलाज न मिल पाने के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं। डॉक्टरों की मांगें हो सकता है मान भी ली जाएं, लेकिन पिछले तीन दिनों में जान गंवा चुके करीब एक          दर्ज़न मरीजों की सांसें वापस नहीं आएंगी।  

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिर्सिटी (केजीएमयू) में यूपीपीजीएमई कांउसलिंग के विरोध में रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल से सबसे ज्यादा परेशानी गाँव के गरीब मरीजों को हो रही है।

सीतापुर के असौंधा के रहने वाले बद्रीनाथ शुक्ला (85 वर्ष) रोड एक्सीडेंट के बाद पिछले छह दिनों से टॉमा सेंटर में भर्ती हैं। “दो दिन से पिताजी का इलाज नहीं हो रहा है। डॉक्टर से कई बार बात की कि वह मेरे कागज वापस कर दें, जिससे मैं इलाज किसी और अस्पताल में करा सकूं। डॉक्टर कागज बनाने तक को तैयार ही नहीं है।” बद्रीनाथ शुक्ल के बेटे सतीश ने बताया।  

हड़ताल से मरीजों भटकना पड़ रहा है। “चिकित्सा सुविधा मूलभूत सेवाओं में आती है। सुप्रीम कोर्ट ने इन सेवा प्रदाताओं की हड़ताल को गलत माना है। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों का हड़ताल पर जाना नियम के खिलाफ माना है। सरकार को इस पर कड़े कदम उठाने चाहिए।” हाईकोर्ट के वकील विक्रांत सिंह चंदेल कहते हैं।

स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों का हड़ताल पर जाना नियम के खिलाफ माना है। सरकार को इस पर कड़े कदम उठाने चाहिए।” हाईकोर्ट के वकील विक्रांत सिंह चंदेल कहते हैं। वहीं, लखनऊ के मुख्य चिकित्साधिकारी एसएनएस यादव ने केजीएमयू के हालात की समीक्षा के लिए बृहस्पतिवार को सभी लोगों की बैठक बुलाई है।

याशीन पति ट्रामा सेन्टर में एक सप्ताह से भर्ती हैं। याशाीन ने बताया, दो दिन से डॉक्टर वार्ड में नहीं आए। हम गरीब हैं इसलिए यहां इलाज कराने आए, वरना प्राइवेट अस्पताल में जाते। हम गरीबों का कोई मर भी जाए तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। कल से बहुत लोग मर चुके पर अभी तक इलाज शुरु नहीं हुआ।”याशीन के पति के वार्ड में छह मरीज और भर्ती हैं, लेकिन उन्हें देखने के लिए डॉक्टर मरीजों को देखने को तैयार नहीं है। न ही अस्पताल का कोई कर्मचारी जानकारी देने को तैयार है।

टॉमा सेन्टर के सुरक्षा गार्ड ने बताया, “सुबह से चार-पांच लोगों की जान चली गई है। जो लोग दूर-दराज के क्षेत्रों से आ रहे है उनको हड़ताल के बारे में कोई जानकारी नहीं है, इसलिए उनको भटकना पड़ रहा है।” इलाज न मिलने से हरदोई के मुश्ताक की मौत हो गई, उसकी बहन किश्वर ने कहा, “डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप होते हैं, मगर ट्रामा सेंटर के डॉक्टर अपना फर्ज़ भूल गए। हमारा भाई हमेशा के लिए जुदा हो गया।” 

रिपोर्टर - जसवंत सोनकर

 

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