मध्य प्रदेश: मनरेगा श्रमिकों की 65 करोड़ 86 लाख रुपए की मजदूरी बकाया, योजना से दूर हो रहे ग्रामीण

मनरेगा में समय पर भुगतान न होने से मध्य प्रदेश में मनरेगा मजदूर परेशान हैं। ग्रामीणों का कहना है कि कोरोना के चलते पहले ही आर्थिक संकट है, ऊपर से मजूदरी समय पर नहीं मिल रही है।

Arun SinghArun Singh   5 July 2021 10:42 AM GMT

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मध्य प्रदेश: मनरेगा श्रमिकों की 65 करोड़ 86 लाख रुपए की मजदूरी बकाया, योजना से दूर हो रहे ग्रामीण

पन्ना के आदिवासी मनरेगा की मजदूरी न मिलने से परेशान। फोटो - अरुण सिंह

पन्ना (मध्यप्रदेश)। कोरोना महामारी के इस दौर में गरीबों के सामने सबसे बड़ा संकट आजीविका का है। ग्रामीण इलाकों के मजदूरों को रोजगार की गारंटी देने वाली योजना मनरेगा से भी मजदूरों राहत नहीं मिल पा

रही है। समय पर मजदूरी न मिलने के कारण, कई इलाकों में मजदूर नया काम खोजने और पलायन को मजबूर हो रहे हैं।

मध्य प्रदेश में पन्ना जिला मुख्यालय से लगभग 14 किलोमीटर दूर आदिवासी बहुल गांव कुडार में मनरेगा में काम करने वाले श्रमिक मजदूरी न मिलने से परेशान हैं। मन्नाबाई, जानकी, भगवंती व राजाबाई क्वांदर समेत दर्जनों महिलाओं ने पैसा न मिलने के कारण काम पर जाना छोड़ दिया है। लेकिन परेशानी ये है कि काम नहीं मिला तो घर कैसे चलेगा।

पैसा क्यों नहीं मिला पूछे जाने पर भगवंती बताती हैं, "अब हमें का पता कि पैसा काय (क्यों) नहीं मिल रहो। सरपंच के पास जाते हैं तो कहता है कि पैसा जब आएगा तो खाते में डल जाएगा।"

कुडरा गांव के ही युवक बिहारीलाल क्वांदर ( 22 वर्ष) गांव कनेक्शन को बताते हैं, "मजदूरी मांगने पर सरपंच चिढ़ जाता है, कहता है जहां जिससे बताना हो बता दो अभी पैसा नहीं मिलेगा। हमने पंचायत सचिव मनोज यादव से बात की तो उन्होंने कहा कि घबराओ नहीं पैसा लेट लतीफ आता है, जैसे ही आएगा डल (अकाउंट में) जायेगा।" बिहारी लाल के मुताबिक काम करवाने के बाद पैसा बहुत लेटलतीफ मिलता है इसलिए गांव के ज्यादातर लोग मनरेगा में काम करने नहीं जाते हैं।

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मध्य प्रदेश के 51 जिलों की कुल 22790 ग्राम पंचायतों में 86.76 लाख कुल जॉब कार्ड हैं।

पन्ना टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र से लगे आदिवासी गांव में खेती-किसानी बारिश के पानी पर ही निर्भर है। इस साल अभी बारिश नहीं होने के कारण खरीफ सीजन की बोनी नहीं हुई। गांव के सभी खेत खाली पड़े हैं। दरबारी क्वांदर (60 वर्ष) ने गांव कनेक्शन को बताया कि "पानी नहीं गिरो जीसे चारा लव सूख गओ है, अब तुमई बताओ ऐसे में भला बोनी कैसे हूहै। गांव के सबै चुमाने (शांत) बैठे हैं"।

पन्ना जिले में मजदूरी के 81 लाख रुपये बकाया

मनरेगा की राज्य प्रोफाइल (वेबसाइट) के मुताबिक बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना जिले में काम करने वाले मजदूरों की मजदूरी के भुगतान की स्थिति पर नजर डालें तो वित्तीय वर्ष 2021- 22 के प्रथम त्रैमास में 4 जुलाई तक जिले के पवई ब्लाक में सर्वाधिक 21 लाख 12 हजार रुपये मजदूरी का भुगतान बकाया है। जबकि अजयगढ़ ब्लॉक में 14 लाख, गुनौर में 13 लाख 86 हजार, पन्ना में 19 लाख 67 हजार व शाहनगर ब्लॉक में 12 लाख 84 हजार रुपये लंबित हैं।

"मनरेगा में 15 दिवस के भीतर भुगतान करना होता है। हमारी तरफ से कोई पेंडेंसी नहीं है, शासन से ही पैसा नहीं आया इसलिए मजदूरों के खातों में पैसा नहीं पहुंचा।" पन्ना के मुख्य कार्यपालन अधिकारी पी.एल पटेल ने गांव कनेक्शन को बताया।

पूरे राज्य की बात करें तो मनरेगा श्रमिकों की 65 करोड़ 86 लाख रुपए की मजदूरी बकाया है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की मनरेगा वेबसाइट महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनयम 2005 की वेबसाइट के अनुसार मध्य प्रदेश के 51 जिलों की कुल 22790 ग्राम पंचायतों में 86.76 लाख कुल जॉब कार्ड हैं, जिसमें से 63.68 लाख एक्टिव हैं। प्रदेश में कुल सक्रिव (एक्टिव) श्रमिकों की संख्या 118.91 लाख है।

पन्ना में मनरेगा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी पीएल पटेल के मुताबिक करीब 3 महीने से भुगतान लंबित था, करीब 25 दिन पहले कुछ पेमेंट आया है बाकि अभी पाइपलाइन (पेंडिग) है।

पन्ना जिले में बकाया मजदूरी।

मध्य प्रदेश के पन्ना समेत कई जिलों में मनरेगा और पोषण समेत कई मुद्दों पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठन 'समर्थन' के मुताबिक पन्ना समेत कई जिलों में मनरेगा मजूदरों का करोड़ों रुपए बाकी है। समर्थन के कार्यक्रम प्रबंधक ज्ञानेंद्र तिवारी के मुताबिक सूखे के लिए चर्चित पन्ना से सटे छतरपुर जिले में मनरेगा की स्थिति और गंभीर है।

वो छतरपुर से फोन पर बताते हैं, "यहां मनरेगा मजदूरों का करीब 1 करोड़ 60 लाख 64 हजार रुपए बाकी है। 25 दिन पहले तक ये रकम काफी ज्यादा था। लेकिन 25 दिन पहले कुछ लोगों को मामूली पेंमेंट मिला है।"

पन्ना जिले से युवा भारी संख्या में राजस्थान, मुंबई, दिल्ली, इंदौर को पलायन करते हैं। डेढ़ महीने पहले राजस्थान से वापस पन्ना जिले में अपने गांव कुडार लौटे मुकेश क्वांदर (21 वर्ष) फिर वापस जाने की तैयारी में है। क्यों यहां काम नहीं है।

मुकेश कहते हैं, "यहां काम नहीं मिलता, शहर में बड़े सेठों के यहां काम मिल जाता है मजदूरी भी ठीक-ठाक मिलती है।"

समर्थन के जिला समन्वयक पन्ना राहुल निगम के मुताबिक प्रदेश की 34 पंचायतें ऐसी हैं जहां मनरेगा के तहत प्रथम त्रैमास में एक धेला भी खर्च नहीं किया गया।

संभाग में महज 1809 परिवारों को मिला 100 दिन का काम

प्रदेश में मनरेगा कार्ड धारकों की संख्या भले ही संख्या 118.91 लाख है। लेकिन 100 दिन का काम बहुत कम लोगों को मिल पाता है। प्रदेश में इस वर्ष प्रथम त्रैमास में 4 जुलाई तक मात्र 21419 परिवारों ने 100 दिन का काम पूरा किया, जबकि सागर संभाग में 100 दिन का काम पूरा करने वाले परिवारों की संख्या सिर्फ 1809 है।

यदि सागर संभाग के जिलों पर नजर डालें तो छतरपुर में 554, दमोह 385, पन्ना 110, सागर 336 तथा टीकमगढ़ जिले में 424 परिवारों को अब तक 100 दिन का काम मिला है। मनरेगा में दैनिक मजदूरी की दर 193 रुपये है, जबकि प्रदेश में औसत मजदूरी 185 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से दी गई। मनरेगा में काम करने वाले ग्रामीण मजदूरों को समय पर मजदूरी का भुगतान न होने तथा उसमें भी कटौती होने से इस योजना के प्रति उनका रुझान कम हो रहा है।

कोरोना का असर : लकड़ी बेचकर चलता था गुजारा, अब वह भी बंद

कोरोना की दूसरी लहर में ग्रामीण इलाकों में आजीविका पर काफी असर पड़ा है। पन्ना जिले के खजरी व कुडार गांव की आदिवासी महिलाएं जंगल से जलाऊ लकड़ी लाकर पन्ना में बेचती थीं, जिससे परिवार का गुजर-बसर होता रहा है। लेकिन कोरोना महामारी के चलते इन गरीबों का यह सहारा भी छिन गया है।

अपने कंधे में कुल्हाड़ी लटकाए जंगल जा रही लल्लाबाई (60 वर्ष) ने गांव कनेक्शन को बताया, "पहले 50 से ज्यादा महिलाएं रोज अपने सिर पर लकड़ी का गट्ठा लेकर पैदल पन्ना जाती थी। लकड़ी बेचने से डेढ़-दो सौ रुपये रोज मिल जाते थे। जिससे घर चलता था।"

यह पूछने पर कि अब महिलाएं लकड़ी बेचने क्यों नहीं जातीं?

जवाब में लल्लाबाई ने कहा "कोरोना के मारे शहर मा अब कोऊ अपने द्वारे ठाढ़े (खड़े) लव नहीं होन देत, गरीब मरत है सो मरत रहे कोऊ खां चिंता नई आए" लेकिन हम जंगल नहीं जाएंगे, तो घर का चूल्हा कैसे चलेगा?

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