अगर साड़ी नहीं पहननी आती तो आपको शर्म आना चाहिए, एक मशहूर डिजाइनर का तंज

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   13 Feb 2018 5:53 PM GMT

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अगर साड़ी नहीं पहननी आती तो आपको शर्म आना चाहिए, एक मशहूर डिजाइनर का तंजबनारसी साड़ी बुनता एक बुनकर करीगर

नयी दिल्ली। देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक चाहे वह गांव हो या शहर महिलाओं के बीच साड़ी लोकप्रिय है। पर अचानक साड़ी पर एक विवाद पैदा हो गया। देश के जाने माने फैशन डिजायनर सब्यसाची मुखर्जी ने भारतीय महिलाओं पर निशाना साधते हुए कहा, अगर आपको साड़ी पहननी नहीं आती है तो आपको शर्म आनी चाहिए, यह आपकी संस्कृति का हिस्सा है, आपको इसके लिए आगे आना चाहिए। पर एक दिन बाद ही डिजायनर सब्यसाची मुखर्जी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इसे बेवजह लिंग आधारित मुद्दा बना कर तूल दिया जा रहा है।

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डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी ने उक्त टिप्पणी हार्वर्ड इंडिया सम्मेलन में की थी। बोस्टन से एक ईमेल साक्षात्कार में सब्यसाची ने बताया, परिधान के इतिहास और विरासत पर की गई इस टिप्पणी का उद्देश्य कुछ और था और इसे लेकर नारीवाद पर बहस शुरू हो गई। यह एक लिंग आधारित मुद्दा है। चूंकि सवाल साड़ी के बारे में था इसलिए इसमें महिलाएं शामिल थीं।

उन्होंने बताया, पुरुषों की राष्ट्रीय पोशाक के बारे में भी मेरा यही रूख है। मैंने किसी महिला की पसंद के बारे में कोई भी बयान नहीं दिया है। वह जो पहनना चाहती हैं यह हमेशा से उनका विशेषाधिकार है।

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शनिवार को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भारतीय छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, मुझे लगता है कि अगर आप मुझसे कहती हैं कि मुझे साड़ी पहननी नहीं आती तो मैं कहूंगा कि आपको शर्म आनी चाहिए, यह आपकी संस्कृति का हिस्सा है, आपको इसके लिए आगे आना चाहिए।

उन्होंने कहा था, महिलाएं और पुरुष वैसा दिखने के लिए जीतोड़ कोशिश करते हैं जैसे वे वास्तव में नहीं हैं। आपका परिधान दरअसल आपके व्यक्तित्व, आपके माहौल और आपकी जड़ों से जुड़ा होना चाहिए।

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इसी कार्यक्रम में अपनी एक और टिप्पणी में फैशन डिजायनर ने भारतीय महिलाओं को इस बात का श्रेय भी दिया था कि उन्होंने साड़ी को एक परिधान के तौर पर जीवित रखा है लेकिन साथ हीयह भी कहा कि धोती का रिवाज अब समाप्त हो गया है। कोलकाता के रहने वाले सब्यसाची के इसबारे में कहा कि यह उनका अपना विचार है।

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यजुर्वेद में सबसे पहले साड़ी शब्द का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद की संहिता के अनुसार यज्ञ या हवन के समय पत्नी को इसे पहनने का विधान है और विधान के इसी क्रम से ही यह जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बनती चली गई।

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भौगोलिक स्थिति, पारंपरिक मूल्यों और रुचियों के अनुसार बाज़ारों में साड़ियों की असंख्य किस्में उपलब्ध हैं। मध्य प्रदेश की चंदेरी, महेश्वरी, मधुबनी छपाई, असम की मूंगा रेशम, उड़ीसा की बोमकई, राजस्थान की बंधेज, गुजरात की गठोडा, पटौला, बिहार की तसर, काथा, छत्तीसगढ़ी कोसा रेशम, दिल्ली की रेशमी साड़ियाँ, झारखंडी कोसा रेशम, महाराष्ट्र की पैथानी, तमिलनाडु की कांजीवरम, बनारसी साड़ियाँ, उत्तर प्रदेश की तांची, जामदानी, जामवर एवं पश्चिम बंगाल की बालूछरी एवं कांथा टंगैल आदि प्रसिद्ध साड़ियां हैं।

इनपुट भाषा

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