धान-गेहूं से लागत निकालना था मुश्किल, सतना का किसान अब संतरे की बाग से कमा रहा मुनाफा

खट्टे मीठे संतरे बहुत लोगों के पसंदीदा फल होते हैं तो बहुत सारे किसानों और बागवानों की कमाई का जरिया भी होते हैं। संतरे की बाग में एक बार खर्च आता है, जिसके बाद पेड़ वर्षों तक फल देते रहते हैं।

Sachin Tulsa tripathiSachin Tulsa tripathi   25 Feb 2022 3:57 PM GMT

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सतना (मध्य प्रदेश)। किसान तेज नारायण तिवारी की संतरे की बाग में पिछले साल पहली बार फल आए थे। कोरोना लॉकडाउन के बावजूद उनका 20 कुंटल संतरा 20 रुपए किलो के हिसाब से 40 हजार रुपए का बिका था, जबकि इस साल जनवरी तक 40 कुंटल माल वो 32 रुपए किलो में बेचकर 128000 रुपए से ज्यादा कमा चुके हैं।

तेज नारायण तिवारी मध्य प्रदेश के सतना जिले में रहते हैं। बिरसिंहपुर तहसील के पगार कला गांव में उनके पास डेढ़ एकड़ खेत में संतरे के 250 पेड़ लगे हैं। तिवारी के मुताबिक फल आने शुरु हुए हैं आने वाले समय में संतरे का उत्पादन बढ़ता जाएगा।

गांव कनेक्शन से बात करते हुए तेज नारायण कहते हैं, "संतरा का पौधा करीब 6 साल में फल देने लायक हो जाता है, जैसे जैसे पेड़ बड़े होते जाएंगे। फल आने की मात्रा बढ़ती जाएगी। पिछले साल कुल 20 कुंटल ही उत्पादन हुआ था, जबकि इस साल करीब 40 कुंटल (जनवरी तक) हुआ। यानि एक साल में दोगुना हो गया। एक समय ऐसा आयेगा जब एक पेड़ में ही एक कुंतल तक फल आएंगे। फिलहाल एक पेड़ में 15 से 20 किलो ही फल निकल रहा है।" फरवरी में जब गांव कनेक्शन की टीम उनकी बाग में गई तो 5-8 फीसदी फसल पेड़ों पर लगे हुए थे। संतरे की तोड़ाई का औसत सीजन जनवरी से मार्च तक होता है।

वो कभी धान-गेहूं की खेती करते थे, लेकिन सिंचाई की समस्या और लागत के मुकाबले मुनाफा न होने से परेशान होकर उन्होंने अनाज वाली फसलों की जगह बागवानी फसलों का रुख किया।

तेज नारायण के मुताबिक संतरे की बाग में उनका जो खर्च लगना था वो लग गया अब आने दिनों में खर्च कम और बचत ज्यादा होगी। तेज नारायण 7 साल पहले नागपुर से संतरे के 250 पौधे लाए थे। वो बताते हैं, "सात साल पहले नागपुर से 35 रुपए प्रति पेड़ के हिसाब से पौधे लाया था। इन्हें तैयार करने में शुरुआत में काफी मेहनत करनी पड़ी क्योंकि पानी की समस्या है। लेकिन बाकी फसलों की अपेक्षा लागत कम औऱ मुनाफा ज्यादा है।"

तेज नारायण की इसी आखिरी लाइन में उनके धान गेहूं की खेती छोड़ने और बागवानी की फसलों की तरफ मुड़ने का सार छिपा है। उनके गांव पगार कला की अधिकांश जमीन पथरीली है। उनके खेत से करीब आधा किलोमीटर दूर पर ही पहाड़ है। भिमफोरा पहाड़ (आम बोल चाल में इसी नाम से बुलाया जाता है।) के तलहटी में करीब 400 एकड़ ज़मीन पथरीली है। जिसमें किसान गेहूं, चना, सरसों, उड़द और धान की खेती करते हैं लेकिन लेकिन बढ़ती लागत और सिंचाई की समस्या से किसान परेशान हैं।

तेज नारायण बताते हैं, "य़हां ऊपर जमीन तो पथरीली है ही जमीन के नीचे भी पत्थर, जिससे पूरे इलाके में पानी की कमी रहती है, पानी की कमी ही ये खेती छोड़ने का बड़ा कारण भी है। इसमें ही उनका ज्यादा खर्च हो जाता था और फसल से जो मिलता था उससे केवल भोजन हो सकता था। अन्य जरूरतों के लिए सब्जियों से खर्च निकालना पड़ता था।"

तेज नारायण तिवारी का संतरे का बाग।

पिता करते थे नागपुर में संतरे के बाग में काम

किसान तेज नारायण के पिता रामलाल तिवारी कई दशक पहले नागपुर में संतरे की बाग में काम करते थे, पहली बार करीब 20 साल पहले वो 10 पौधे लाए थे, ये देखने के लिए कि वो यहां की आबोहवा में चलेंगे या नहीं।

तेज नाराणय कहते है, "पिता जी जो 10 पौधे लगाए थे उनमें कुछ समय बाद फल आए थे, उनका यह प्रयोग सफल रहा था, जिसके बाद मैंने संतरा को व्यावसायिक खेती के रूप में अपना लिया है। संतरा की खेती की जानकारी भी पिता जी से मिली क्योंकि संतरे के बगीचे में ही काम करते थे।"

संतरे की दूसरी फसलों की तुलना करते हुए वो कहते हैं, "संतरे के पौधे तैयार करने में तो काफी मेहनत लगी। लेकिन गेहूं में तो कई बार एक ही फसल में तीन से पांच सिंचाई करनी पड़ती हैं। यहां जिन किसानों के पास मोटर पंप है तो उनका चल जाता है हमारे पास तब नहीं था इसलिए 1200 रुपये प्रति एकड़ सिंचाई देनी पड़ती थी। यह बात हमेशा परेशान करती थी। अब तो खुद का पंप भी है लेकिन गर्मी में वो भी काम नहीं करता।"

वो आगे बताते हैं, "संतरे के पौधों में अब तो कोई खर्च नहीं है। पांच सालों में खर्च के बात करें तो मुश्किल से 15-20 हजार रुपए ही खर्च किए हैं। हालांकि (हँसते हुए) मेहनत का तो कोई हिसाब किताब नहीं है। जहां तक धान और गेहूं के फसल उत्पादन की बात है तो केवल इतना हो जाता था कि परिवार खा सकता था।"

प्रेम नारायण तिवारी ने इस साल संतरे की फसल से करीब डेढ़ लाख रुपए कमाए हैं.

सहफसली खेती से मुनाफा

किसान के पास 3 एकड़ जमीन है, जिसमें से डेढ़ एकड़ में संतरा और बाकी में नींबू और अमरुद के पौधे लगे हैं। संतरे के एक पेड़ से दूसरे पेड़ की दूरी करीब 3 मीटर है। तो बाकी बची जमीन में वो टमाटर और बैंगन समेत दूसरी सब्जियों वाली फसलों की खेती करते हैं। पिछले साल उन्होंने 40 हजार के संतरे के साथ 20 हजार की 20 हजार रुपए की सब्जियां बेची थी, इस साल अभी टमाटर और बैंगन में फल आने शुरु हुए हैं। खाली संतरे उनकी इस साल की आय करीब 1.5 लाख है।

प्रेम नारायण कहते हैं, "मौसमी सब्जियों की खेती करता हूं लेकिन उसके लिए पानी बहुत दूर से लाना होता है। इसके लिए पहाड़ के दूसरे छोर की बसी बस्ती की ओर जाना पड़ता है।"

उनके मुताबिक पानी की समस्या इतनी ज्यादा है कि गर्मियों के दिनों में पीने के पानी तक की किल्लत हो जाती है। ऐसे में दूसरे किसान भी परंपरागत फसलों की जगह बागवानी करने लगे हैं।

नौकरी छोड़कर अपनाई खेती

आज कल युवाओं का नौकरियों से मोहभंग हो रहा है। कुछ नौकरी के साथ तो कुछ नौकरी छोड़ कर खेती किसानी की ओर रुख कर रहे हैं। तेज नारायण भी ऐसे ही किसान हैं जिन्होंने नौकरी छोड़ कर खेती को ही जीविकोपार्जन का साधन बना लिया। 12वीं तक पढ़े तेज नारायण की 2004 में शादी हो गई और 2010 में दिल्ली चले गए। जहां एक गियर बनाने वाली फैक्ट्री में काम करते थे लेकिन खुश नहीं थे। वो कहते हैं, "फैक्ट्री में 9000 रुपए की तनख्वाह मिलती थी, नौकरी से मोहभंग हुआ तो 2015 में घर लौट आया। फिर से खेती किसानी का काम शुरू कर दिया।"

देश और मध्य प्रदेश में संतरे की खेती

भारत बागवानी (फल सब्जी मसाला) फसलों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। पूरी दुनिया के फल-सब्जी में उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी करीब 12 फीसदी है। साल 2020-21 के दौरान देश में 331 मिलिटन टन उत्पादन का अनुमान है।

संतरा नींबू कुल का फल है, अंग्रेज में इस कुल को सिटरस (Citrus) बोलते हैं। संतरा (मैंडरिन- Mandarin) की खेती का रकबा रकबा बढ़ रहा है। साल 2019-20 में 454 हजार हेक्टेयर में इसकी खेती हुई थी तो पूरे देश का उत्पादन 6136 हजार मीट्रिक टन था, वहीं साल 2020-21 के तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक 462 हजार में हेक्टेयर में खेती हुई है और 6026 हजार मीट्रिक टन का अनुमान है।

देश में नागपुर के संतरे काफी प्रसिद्ध है। मध्य प्रदेश में भी छिंदवाड़ा, बैतूल, होशंगाबाद, शाजापुर, नीचम, रतलाम और मंदसौर के संतरे की खेती होती है। मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा संतरे का गढ़ कहा जाता है। राजस्थान के झालावाड़ में भी संतरे की खेती होती है तो पंजाब और हरियाणा में कई जगह किसान किन्नू की खेती करने लगे हैं।

मध्य प्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास की आधिकारिक वेबसाइट अनुसार मध्य प्रदेश में संतरे की बागवानी 43000 हेक्टेयर क्षेत्र में होती है जिसमें से 23000 हेक्टेयर क्षेत्र छिंदवाड़ा जिले में है। वर्तमान में संतरे की उत्पादकता से 12 टन प्रति हेक्टेयर है, जो कि विकसित देशों की तुलना में अत्यंत कम है। कम उत्पादकता की वजह बागवानी के लिए गुणवत्तापूर्ण पौधे (कलमों का अभाव तथा रखरखाव की गलत पद्धति प्रमुख है।

क्या सतना की जलवायु संतरे के अनुकूल है?

तेज नारायण के मुताबिक उन्हें संतरे की खेती में धान गेहूं से ज्यादा मुनाफा अभी से मिलने लगा है। हालांकि उद्यानिकी विशेषज्ञ यहां की जलवायु को संतरे के उत्पादन के लिए उतना अच्छा नहीं मानते हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र, रीवा के डॉक्टर राजेश सिंह ने 'गांव कनेक्शन' को मोबाइल पर बताया कि बघेलखंड के रीवा, सतना और अन्य जिलों की जलवायु में संतरे जैसे फल के लिए अनुकूल मौसम नहीं है। इसके लिए और आर्द्रता की जरूरत है लेकिन इन इलाकों में गर्मी ज्यादा है। रही बात फल की तो वह पेड़ की प्रकृति है आएगा ही।"

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