मध्य प्रदेश से ग्राउंड रिपोर्ट : देखें, गाँव बंद के दौरान आखिर क्या कर रहे हैं किसान?

आखिर मध्य प्रदेश के हरदा जिले के किसान गांव बंद के दौरान क्या कर रहे हैं और सरकार के खिलाफ उनका गुस्सा क्यों है?

Arvind ShuklaArvind Shukla   8 Jun 2018 12:50 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
मध्य प्रदेश से ग्राउंड रिपोर्ट : देखें, गाँव बंद के दौरान आखिर क्या कर रहे हैं किसान?

हरदा (मध्य प्रदेश)। सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ देश भर के किसानों में गुस्सा है और इन किसानों ने एक जून से 10 दिनों तक 'गांव बंद' कर रखा है, यानि गांव से कोई सामान, उपज शहर तक नहीं जा रहा है। किसान सरकार के खिलाफ 'गांव बंद' कर छुट्टी मना रहे हैं। गाँव कनेक्शन की ग्राउंड रिपोर्ट में देखें कि मध्य प्रदेश के हरदा जिले के किसान गांव बंद के दौरान क्या कर रहे हैं और सरकार के खिलाफ उनका गुस्सा आखिर क्यों है?

मध्य प्रदेश के हरदा जिला, भोपाल से करीब 250 किलोमीटर दूर, पिडगाँव में, किसान संतोष शर्मा आराम से खेती-बाड़ी का काम कर रहे हैं। किसानों के 'गांव बंद' के सात दिन बीतने के सवाल पर संतोष बताते हैं, "हम लोग सिर्फ खेती-बाड़ी का काम कर रहे हैं, छुट्टी मना रहे हैं और अगर सरकार चाहेगी तो आगे भी मनाएंगे, हमारा शहर से कोई संपर्क नहीं है।"

अपनी उपज या दूध शहर में जाकर न बेचने के सवाल पर होने वाले नुकसान पर किसान संतोष आगे बताते हैं, "हमारे यहां छह भैंसे और चार गाय हैं, दूध होता है, घर में उपयोग किया जाता है या गांव में ही गरीबों को बांट दिया जा रहा है, या तो घी बना रहे हैं। आज गांव बंद का आठवां दिन हैं, जब तक सरकार हम किसानों की मांगे नहीं मानेंगी, तब तक हम छुट्टियां मनाएंगे।"

यह भी पढ़ें : मंदसौर से ग्राउंड रिपोर्ट: कम भाव ने बढ़ाया किसानों का पारा

पिडगाँव के ही एक और किसान बताते हैं, "हमें कोई दिक्कत नहीं है, गांव में लोग घर से ही दूध ले जाते हैं और बस अब खेती का ही काम कर रहे हैं।" क्या ऐसा हो सकता है कि किसान शहर न जाए, शहर में अपना उपज न बेचे, इस सवाल के जवाब में किसान ने आगे कहा, "मजबूरी है हम किसानों की, गाँव वालों को भी शहर से मतलब है और शहर वालों को भी गाँवों से मतलब है, भला किसान के बगैर शहर क्या चलेगा।"

उपज न बेचने पर किसानों के ऊपर भार बढ़ने के सवाल पर किसान संदीप शर्मा बताते हैं, "हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि फसल का मूल्य मिले, दूध का उचित मूल्य मिले और सरकारी सुविधा पूरी तरह से मिले। हमारे पास 15 एकड़ जमीन है, सोयाबीन, गेहूं, चना उगाते हैं हम, बारिश आने वाली है तो सोयाबीन बोने की तैयारी चल रही है।"

अच्छी फसल हो तो कोई दिक्कत नहीं

सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा और भावांतर योजना के बारे में पूछने पर किसान संतोष आगे बताते हैं, "अच्छी फसल हो तो कोई दिक्कत नहीं है, हमें सरकारी मुआवजा भी समय से नहीं मिलता और भावांतर योजना किसानों के लिए सिर्फ सरकार का लॉलीपॉप है। हमारी सोयाबीन की दूसरी फसल चालू हो गई है और हम सोयाबीन 6,700 रुपए के भाव में खरीद कर लाएं हैं, मगर अभी हमारी सोयाबीन का क्या सरकारी भाव है, 3050 रुपए है तो इससे क्या फायदा, उसी का बीज बनाकर सरकार पहुंचा रही है हमारे खेतों तक।"

यह भी पढ़ें : घायल किसान की जुबानी मंदसौर कांड की कहानी


वहीं, किसान संदीप बताते हैं, "हमारे पास 16 एकड़ जमीन हैं और पिछली बार हमने उड़द बोई थी, हमने 16 एकड़ में आठ कुंतल उड़द बेची, 700 रुपए के भाव में, हमें भावांतर का कोई फायदा नहीं है। कुल मिलाकर हर किसान दिन प्रतिदिन कर्ज में डूबता जा रहा है। सरकार को कोई मतलब नहीं है। जैसे हमारी उड़द की फसल में हमें नुकसान उठाना पड़ा, वैसे और भी किसानों को नुकसान उठाना पड़ा, उस वक्त अगर सरकार से हम किसानों को समय से बीमा मिल जाता तो किसी किसान को कर्ज लेने की जरूरत नहीं पड़ती। राहत राशि ही मिल जाती। मगर यह भी नहीं हो सका।"

हम सरकार से नहीं कहते कि हमारा कर्ज माफ करो

सरकार की योजनाओं से मिलने वाले लाभ के बारे में संदीप आगे कहते हैं, "योजनाओं का फायदा मिला, लेकिन समय पर नहीं मिला। अगर टाइम से आ जाएगा तो हम किसानों को किसी से कर्ज लेनी की जरूरत नहीं पड़ेगी। हम सरकार से नहीं कहते हैं कि हमारा कर्ज माफ करो, मगर कम से हम किसानों को अपनी उपज का सही मूल्य तो दे दो।" संदीप बताते हैं, "इसी क्षेत्र में तीन साल पहले ओले गिरे थे, 60 प्रतिशत नुकसान हुआ था किसानों का, लेकिन अब तक कुछ नहीं मिला। फसल की लागत तक नहीं मिलती, इसके उल्टे लागत लगातार बढ़ती जाती है।"

यह भी पढ़ें : मंदसौर कांड की बरसी: क्या बोले मध्य प्रदेश के किसान... देखें वीडियो

आखिर फसल पर उचित मूल्य मायने क्या हैं, के सवाल पर पिडगाँव के एक और किसान बताते हैं, "हमने साढ़े 12-13 हजार रुपए लाए थे डॉलर चने में, लेकिन अब भाव 4000 रुपए चल रहा है, 12000 और 4000 में कितना अंतर है, अगर सरकार 8000 रुपए का उचित मूल्य कर दे तो क्या दिक्कत है, न किसान को दिक्कत है, और न व्यापारी को दिक्कत है। मैं 60,000 रुपए का बीज लेकर आया पांच एकड़ के लिए, मगर अब 4000-4500 रुपए प्रति कुंतल चल रहा है मंडी में भाव, कम से कम दस हजार रुपए प्रति कुंतल का रेट मिलता है तभी खेती मुनाफे का सौदा बनेगी।"

       

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.