रघुराजपुर : इस गांव के हर घर में है कलाकार, दर्ज़ हैं कई रिकॉर्ड

Anusha MishraAnusha Mishra   1 Feb 2019 11:15 AM GMT

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रघुराजपुर : इस गांव के हर घर में है  कलाकार, दर्ज़ हैं कई रिकॉर्डपट्टचित्र

बर्फी जैसा गुलाबी, चमकदार नीला, गहरा गेरुआ, बैंगनी, हल्का नारंगी, देवी-देवताओं की नक्काशी और चित्रकारी, दीवार पर उड़ते हरे तोते, ओडिसी नृत्य का घर, खूब हरा - भरा, ये नज़ारा मिलता है, पुरी ज़िले के रघुराजपुर गाँव में। ये गाँव 300 से ज़्यादा कलाकारों का घर है जो कई तरीके की पारंपरिक कलाकृतियां बनाते हैं और इस कला को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाते हैं।

इन कलाकारों के यहां 100 से ज़्यादा घर हैं। हर घर अपने आप में बेहतरीन ख़ूबसूरती को समेटे हुए है। मंदिरों की एक पूरी श्रृंखला है। रघुराजपुर गाँव के लोगों में बस दो ही चीज़ें बसती हैं, आस्था और कला - एक अगर यहां के लोगों के लिए सांस की तरह है तो दूसरी आत्मा है। यहां की कलाकृतियों में भगवान जगन्नाथ व दूसरे देवी देवताओं से जुड़ी पौराणिक कहानियां देखने को मिलती हैं। इस कला को पट्टचित्र कहते हैं। पट्ट एक उड़िया शब्द है जिसका मतलब होता है कैनवास और चित्र यानि कि तस्वीर, पेंटिंग। पट्टचित्र कला की शुरुआत 12वीं सदी में हुई थी। इन कलाकृतियों को बनाने के लिए जिस कैनवास का इस्तेमाल होता है वह नारियल के पेड़ की लकड़ी से बना होता है। इन चित्रों में रंग भरने के लिए यहां के चित्रकार फूल, पत्तियों से बने प्राकृतिक रंगों को तैयार करते हैं।

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चित्रकार पेंटिंग्स में भगवान कृष्ण की कहानियों को इस तरह उतारते हैं कि उन्हें देखकर कोई भी पूरी कहानी जान सकता है। इनमें से कई कलाकारों को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले हैं। इस गांव को ताड़ के घूमे हुए पत्तों से बनी तस्वीरें जिनमें कटआउट के साथ काले रंग में चित्रित चित्र, तुलसी रेशम, पत्थर और लकड़ी के नक्काशी पर नाजुक ब्रश का काम होता है, के लिए भी जाना जाता है। ताड़ के पत्ते, नारियल, पारंपरिक रंग, चूहे के बाल, पत्थर और लकड़ी से बनी ये कलाकृतियां अद्भुत सुंदरता समेटे होती हैं। यहां के हर घर का सामने वाला कमरा स्टूडियो और प्रदर्शनी की तरह सजा होता है। यहां के ज़्यादातर पुरुष और महिलाएं उड़िया भाषा ही बोल पाती हैं। इसी भाषा में वे अपनी कला की बारीकियों और तक़नीकों के बारे में लोगों को बताते हैं।

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लोक नृत्य भी है प्रसिद्ध

रघुराजपुर गोतीपुआ नामक एक फोक डांस के लिए भी जाना जाता है, जो ओडिशी नृत्य का आरंभिक स्‍वरूप है। यहां कलाकार इस लोक नृत्य को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पेश करते हैं। यह गाँव प्रसिद्ध ओडिशी नृत्य के गुरु स्वर्गीय पद्मविभूषण गुरु केलुचरण मोहापात्रा इसी गांव के थे। उनके पिता भी पट्टचित्र के कलाकार थे और मृदंगम बजाते थे। केलुचरण मोहापात्रा ने गोतीपुआ को सीखा और इसके बाद उन्हें बाकी ओडिशी नृत्य भी सीखे। आज भी यहां एक डांस स्टूडियो है जिसमें यहां के युवा कलाकार नृत्य सीखते हैं।

केलूचरण मोहापात्रा

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रघुराजपुर गाँव को सन 2000 में हेरिटेज विलेज यानि धरोहर गाँव के तौर पर मान्यता मिली थी। तबसे ही भारत सरकार की मदद से एनटीएसीएच, आईसीसीआई, नोराड और आर्ट्स के लिए इंडिया फाउंडेशन जैसे संस्थान रघुराजपुर को क्राफ्ट गाँव के तौर पर विकसित कर रहे हैं। ये संस्थाएं यहां के कलाकारों को नई तकनीक की सीख दे रही हैं। इन कलाकारों को सिखाया जा रहा है कि कैसे नींबू, जूट, दाल, दही और लोकल हर्ब्स जैसे त्रिफला और बेल का इस्तेमाल करके प्लास्टर बनाया जा सकता है। गाँव में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहां के कलाकारों ने अपने घरों को कलाकृतियों से सजाया है।

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बन गया है डिजिटल गाँव

साल 2017 में बैंक ऑफ इंडिया ने इस गाँव को डिजिटल गाँव के तौर पर अडॉप्ट किया और यहां बिक्री मशीनों के 20 प्लाइंट्स लगाए। बैंक ने 200 बचत खाते भी खुलवाए। गाँव में एक एटीएम भी लगा है और यहां के कुछ कलाकार पेटीएम के ज़रिए भी भुगतान लेते हैं। रघुराजपुर को आदर्श शिल्प गांव योजना में शामिल किया गया है और ऑनलाइन स्रोतों के अनुसार, भारत सरकार ने गांव के समग्र विकास के लिए 100 मिलियन डॉलर की मंजूरी दी है।

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