MP Election 2018: बुलेट ट्रेन के समय में यहां 20 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है ट्रेन

मध्य प्रदेश के श्योपुर और ग्वालियर के बीच चलने वाली यह रेलगाड़ी 220 किमी का सफर 12 घंटों में पूरा करके बैलगाड़ी का अहसास करा ही देती है।

Manish MishraManish Mishra   26 Nov 2018 4:09 AM GMT

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श्योपुर (मध्य प्रदेश)। दोपहर एक बजे के करीब एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर एक बुजुर्ग महिला को उसके परिवार के लोग गोद में लेकर सरपट भागे चले आ रहे हैं। इन बुजुर्ग को पैरालिसिस का अटैक पड़ा है, और उन्हें जल्द से जल्द इलाज की जरूरत है।

लेकिन ऐसा संभव नहीं, क्योंकि उन्हें जिस ट्रेन से जाना है उसकी अधिकतम रफ्तार ही 20 किमी प्रति घंटे की है, जो अपनी पूरी रफ्तार शायद ही पकड़ती है। डेढ़ घंटे तक स्टेशन पर इंतजार के बाद यह छुक-छुक ट्रेन इन बुजुर्ग महिला को अस्पताल शाम छह बजे पहुंचाएगी। करीब 70 से 80 किमी के सफर के लिए आठ घंटे का सफर।

मध्य प्रदेश के श्योपुर जिला मुख्यालय से चल कर ग्वालियर के बीच चलने वाली नैरोगेज (एक तरह की ट्वाय ट्रेन) की यह ट्रेन 199 किमी का सफर तय करने में करीब 12 घंटे का समय लेती है। ग्वालियर से श्योरपुर के बीच सैकड़ों गांवों के लोगों का घंटों ट्रेन में बैठ कर सफर करना मजबूरी है।

इन बुजुर्ग महिला की कहानी यहां लोगों की ज़िंदगी बयां करने के लिए काफी है। "हमारी मां को फालिस का अटैक आया है, उन्हें अस्पताल लेकर जाना है और अस्पताल पहुंचने में करीब पांच घंटे लग जाएंगे," अपनी बुजुर्ग मां को सही से स्टेशन पर बिठाते हुए ननावत गाँव के रहने वाले कांशीराम ने बताया, "बस से लेकर जाने में पैसे अधिक लगते हैं और यहा इसका इलाज नहीं है।"


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मध्य प्रदेश चुनावों को लेकर जारी 'गाँव कनेक्शन' की यात्रा इलेक्शन कनेक्शन राजस्थान की सीमा पर स्थित श्योपुर जिला पहुंची। मध्य प्रदेश का यह जिला काफी पिछड़ा है जिसकी वजह से यहां रहने वाले आदिवासियों को आने जाने के लिए इस ट्रेन का सहारा इसलिए भी लेना पड़ता है क्यूंकि बसों का किराया महंगा जो है।

इस बुजुर्ग महिला की बातें कई सवाल उठाती है, जरूरत के वक्त इलाज न मिलना, गरीबी के चलते बीमार को भी बस से न ले जा पाना और वर्षों पहले राजनेताओं के वादों के बाद भी ट्रेन को अपग्रेड न होना। "इस ट्रेन पर गरीब लोग ज्यादा जाते हैं, अगर बड़ी लाइन आ जाएगी तो पैसों और समय दोनों की बचत होगी," स्टेशन पर किसी के आने का इंतजार कर रहे लाखन सिंह ने बताया।

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इस तरह की नैरोगेज (छोटी ट्रेन) दर्जिलिंग में पर्यटकों के लिए चलाई जाती है, लेकिन श्योपुर में चलने वाली इस ट्रेन में शौचालय तक नहीं हैं। अगर किसी को शौच लग जाए तो ट्रेन से नीचे उतरना मजबूरी है, और वापस गए तो सीट गई।

हर रोज दिन में दो बार जाने वाली यह ट्रेन सुबह 6.10 बजे और दोपहर 2 बजे श्योपुर से ग्वालियर के लिए रवाना होती है। डिब्बे कम होने से लोग छतों पर बैठकर भी सफर करते हैं। जब ट्रेन पकड़नी होती है तो दौड़ के पकड़ भी सकते हैं और अपने घर के बगल में उतर भी सकते हैं।

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"इस ट्रेन को महाराजा सिंधिया जी द्वारा चलवाया गया था। यह बहुत ही पिछड़े इलाकों से आती है। आदिवासी इलाका होने के कारण आने जाने का साधन नहीं हैँ। ऐसे में यह ट्रेन बहुत महत्वपूर्ण है, कई बार इसे रोकने की बात भी की गई, तो लोगों ने इसे चलाने के लिए आंदोलन तक किए," ग्वालियर डिविजन के ऑडिटर देवेश चतुर्वेदी ने बताया।

इस ट्रेन की शुरुआत सन 1905 में ग्वालियर के महाराजा माधव राव सिंधिया ने किया था और आजादी के पहले तक महाराजा ही इस ट्रेन को रखरखाव देते थे। आजादी के बाद भारतीय रेलवे को इसकी जिम्मेदारी दे दी गई। ग्वालियर से श्योपुर कलां के बीच 199 किमी की दूरी में 26 स्टेशन आते हैं। वीडियो- सुयश शादीजा


     

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