एमपी: बीते साल तूफान ताउते से कर्जदार बने खरबूजा किसानों ने घाटे से उबरने के लिए इस बार लगाया ये दांव

सतना में जिले में इस बार किसान पिछले साल की अपेक्षा खरबूजे की दोगुनी बुवाई कर रहे हैं, किसानों के मुताबिक इस बार इन्होंने ये रिस्क (जोखिम) पिछले साल हुए घाटे से उबरने के लिए लिया है।

Sachin Tulsa tripathiSachin Tulsa tripathi   16 March 2022 11:59 AM GMT

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एमपी: बीते साल तूफान ताउते से कर्जदार बने खरबूजा किसानों ने घाटे से उबरने के लिए इस बार लगाया ये दांव

बकिया बैलो (सतना)। मध्य प्रदेश के सतना जिले में ब्लॉक रामपुर बघेलान में बकिया बराज नाम का बांध है। इस बांध के कछार (किनारे की सूखी रेतीली जमीन) में दर्जनों गांवों के 250-300 परिवार गर्मियों में मौसमी फल और सब्जियों की खेती करते हैं। इस बार इन किसानों ने अपना रकबा लगभग दोगुना कर दिया है।

कछार का खरबूजा (muskmelon) काफी स्वादिष्ट होता है, अक्सर रेट अच्छा मिलता है, इसलिए यहां के दर्जनों गांवों जैसे बकिया, तिवरियान, कंदवा, देउरी, गोलहटा, थथौरा आदि के किसान गर्मियों में खरबूज की खेती करते हैं। लेकिन साल 2021 इन किसानों के लिए घाटे का साल बन गया। मई 2021 में आए चक्रवाती तूफान के चलते हुए मूसलाधार बारिश से कछार में पानी भर गया और हजारों एकड़ तैयार फसल बर्बाद हो गई थी। इस कारण किसान साहूकारों के कर्जदार हो गए। इस कर्ज से उबरने के लिए खरबूज किसान इस साल दोगुनी मात्रा में बुवाई कर रहे हैं।

55 साल की राधा बाई सिंह भी उन्हीं किसानों में से एक हैं, अपने खेत में एक-एक बीज की सलीके से बुवाई कर रही राधा बाई सिंह 'गांव कनेक्शन' को बीते साल की कहानी बताती हैं, "पिछले साल सोचा था कि खरबूज से जो आमदनी होगी उससे दो बेटियों में से एक की शादी कर देंगे, लेकिन अचानक आई बारिश की वजह से खेत में ही पकी फसल सड़ गई और शादी रुक गई ऊपर से 1 लाख रुपए का कर्ज भी हो गया। वह अभी तक नहीं पटा (चुका) पाई। इधर इस साल मजदूर लगा के काम करा रहे हैं ताकि ज्यादा और जल्दी काम हो सके। इसके लिए भी कर्ज ले लिया है। आगे जो मिलेगा उसका भगवान मालिक है।"

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बकिया बराज के कछार में खरबूजे की बुवाई करते किसान। फोटो- सचिन तुलसा त्रिपाठी

साल 2021 में मध्य प्रदेश में लॉकडाउन 17 मार्च से 15 जून (समय समय पर बढ़ाते गए) तक लगाया गया था। इस दौरान तैयार खरबूज सही तरीके से बाहर की मंडियों में जा नहीं पाया। इसी बीच मई में आए चक्रवाती तूफान के कारण मूसलाधार बारिश हुई थी, जिस कारण बकिया बराज बांध का पानी चढ़कर कछार तक पहुaच गया। पानी से लबालब भरे हुए कछार के कारण खरबूज की फसल खेत में सड़ गई।

ढाई एकड़ के खेत में खरबूज की खेती करने वाले बकिया बैलो गांव के केशव तिवारी ने एक लाख रुपए का घाटा खाया था। इसलिए उन्होंने इस साल खेती का रकबा बढ़ा दिया। गांव कनेक्शन की टीम जब बकिया बैलो गांव पहुंची थी तब किसान केशव ने दो एकड़ और बढ़ा कर खरबूज लगा रहे थे।

राधा बाई की बातों को दोहराते हुए खरबूज किसान केशव तिवारी (45 वर्ष) कहते हैं, "मत पूछिये पिछले साल क्या हुआ था। तब के घाटे से उबरने के लिए ही इस साल दो एकड़ का रकबा और बढ़ा दिया है कि जो आमदनी होगी उससे तब का कर्ज भी पटा (चुका) देंगे।" पिछले साल हुए नुकसान का वीडियो देखिए

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30 रुपए में बिकने वाला खरबूज 5 रुपए किलो बिका था

हाथ से साइकिल के हैंडिल को पकड़ कर मेड़ों के ऊपर से पैदल चलकर अपने खेत को देखने जा रहे 59 साल के भइया लाल सिंह को पिछले साल की चक्रवाती बारिश के कारण डेढ़ लाख रुपए का नुकसान हुआ था। अगर फसल बच जाती तो यह उनका मुनाफा होता, लेकिन बारिश के कारण सब बर्बाद हो गया था। मुश्किल से 20-25 हजार रुपए ही कमा पाए थे।

प्लास्टिक की डिबिया से तम्बाकू और चूना निकाल कर हथेली में रगड़ते हुए नारायण सिंह ने परेशानियों का बड़े इत्मीनान से जिक्र करते हुए कहा, "पिछले साल करीब 4 एकड़ में खरबूज लगाया था। बारिश से एक दिन पहले ही आढ़तिया को पके हुए खरबूज बेचा था। उस दिन 30 रुपए के रेट से आढ़तिया खरबूज ले गया था और फिर बारिश शुरू हो गई। 3-4 दिन बाद जब बारिश शांत हुई तो खेत पानी-पानी हो चुका था। इसी कारण खरबूज सड़ भी गया। तब एक किलोग्राम का रेट 5 रुपए मिला था।"

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खरबूजे के बीज बोती महिलाएं। फोटो- सचिन तुलसा त्रिपाठी

इस साल केवल खरबूज की खेती

सतना जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर बकिया गांव के बांध का कछार करीब 3000 एकड़ का है, लेकिन खरबूज की खेती आधे यानि 1500 एकड़ में ही किसान करते आ रहे हैं। बाकी में सब्जियां लगाते आ रहे हैं लेकिन इस साल ज्यादातर किसान वहां केवल खरबूज की खेती ही कर रहे हैं।

किसान वीरेंद्र तिवारी (52 वर्ष) ने 'गांव कनेक्शन' से कहा, "बांध के करीब 3000 एकड़ के कछार का पानी जनवरी माह के अंत में और फरवरी के पहले हफ्ते में पानी नीचे उतर जाता है, जिसमें खरबूजे और तरबूजे की खेती की जाती है। बाकी बचे 1500 एकड़ में कुछ किसान सब्जियां उगाते थे। इस साल सभी किसान खरबूज ही लगा रहे हैं। यह करीब दस सालों से चला आ रहा। मई/जून में खरबूज की फसल निकलने लगती है, जो जुलाई तक निकलती है।"

स्थानीय प्रशासन से मिले रिकॉर्ड अनुसार सतना जिले में बड़ी क्षमता वाले 20 बांध हैं। बकिया बराज बांध इकलौता है जो हाईडल प्रोजेक्ट के लिए बनाया गया है। यह बांध वर्ष 1991 में बन कर तैयार हुआ था। बाकी के 19 बांधों को स्थानीय नदियों पर बनाया गया है, जिनका निर्माण सिंचाई के लिए होता है। बकिया बांध टोन्स नदी पर बना हुआ है। टोन्स, यमुना नदी की सहायक नदी है। इसका उद्गम उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल से हुआ है। इस नदी का कुल कैचमेंट एरिया 16,905 स्क्वायर किलोमीटर का है। यह मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्य से होकर गुजरती है। इसका प्रवाह सतना जिले में भी है।

पिछले साल आए तूफान के बाद कछार में पानी भर गया था, जिसके बाद किसानों की पूरी फसल बर्बाद हो गई थी। फाइल फोटो- गांव कनेक्शन

बम्पर उत्पादन लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में जिक्र तक नहीं

देश में सिर्फ बकिया बराज ही नहीं लगभग हर नदी के कछार और डैम के आसपास किसान गर्मियों के मौसम में सब पानी खत्म हो जाता है तो परवल, तरबूज, खरबूज, लौकी, तरोई, कुंदरू, करेला, नेनुआ जैसी फसलें उगाते हैं। मानसून आने से पहले ये फसलें खत्म हो जाती हैं। पानी की यहां जरूरत कम होती है और जमीन भी उपजाऊ होती है, लेकिन ये खेती पूरी तरह किसानों के जोखिम पर होती है। मौसम अच्छा रहा तो कमाई भी अच्छी हो जाती है, बारिश तूफान या कोई आपदा आई तो फसल तबाह। यहां तक की कई इलाकों में ऐसी खेती सरकारी आंकड़ों में भी नहीं होती है।

सतना के उद्यानिकी विभाग के पास कछार में फल-सब्जी का रिकॉर्ड नहीं है। सतना के सहायक संचालक अनिल सिंह कुशवाहा ने बताया, "बकिया और आसपास के किसान कृषक भूमि पर खरबूज और तरबूज नहीं उगाते हैं। इसलिए यह रिकॉर्ड में नहीं आता। बकिया और आसपास के किसान बांध के कछार में यह खेती कर रहे हैं।"

कैसे बोते हैं खरबूज का बीज

खरबूज का बीज बोने से पहले ये देखा जाता है कि नीचे की मिट्टी में नमी है कि नहीं, हालांकि कछार में यह 5 सेंटीमीटर से भी कम गहराई में मिल जाती है। यही कारण है कि बकिया बराज बांध के कछार में खरबूज का उत्पादन अधिक होता है। 85 साल की सुग्गी साकेत एक दिहाड़ी मजदूर हैं। उन्हें तरबूज-खरबूज बोने का अच्छा अनुभव है इसलिए किसान उन्हें अक्सर बुला लेते हैं। सुग्गी बताती हैं, "तीन अंगुल (लगभग 3 सेंटीमीटर) का खेत में गड्ढा करते हैं गीली मिट्टी मिलती है तो उसमें खाद (जिंक) मिला देते हैं। इसके बाद खरबूजा का गीला बीज उसमें डालते हैं। ऊपर से गीली मिट्टी डाल देते हैं। इतना ही करना पड़ता है।"

कृषि विज्ञान केंद्र रीवा के उद्यानिकी वैज्ञानिक डॉ. राजेश सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया कि खरबूजा की खेती के लिए बलुई मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। जैसा कि आपने बताया तो नदी का कछार तो खरबूज के लिए सबसे बेहतर है। गर्मी में 26 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक का तापमान इसके लिए जरूरी है।

अक्टूबर 2021 में हुई बारिश के चलते इस बार बैराज में पानी ज्यादातर दिन टिके रहने के कारण फरवरी में होने वाली बुवाई 15-20 दिन बाद अब मार्च में हो रही है।

इस साल देरी से शुरू हुई बुवाई

बकिया बराज बांध के कछार का पानी इस बार करीब एक महीने की देरी से नीचे उतरा था। इस कारण बुवाई भी देरी से शुरू हुई। अमूमन जनवरी अंत और फरवरी की शुरुआती दिनों में कछार खाली होने लगता है इस बार फरवरी के अन्तिम पखवाड़े से पानी नीचे उतरने शुरू हुआ, जिस कारण बुवाई भी देरी से शुरू हुई।

"इस बार तो लगभग 15-20 दिन खरबूज के बुवाई का काम देरी से शुरू हुआ है। ऊपरी क्षेत्र का पानी तो उतर गया था लेकिन जमीन में पैर धंस रहे थे। ऐसे में तो बुवाई नहीं हो पाती। इसलिए देरी से काम शुरू हुआ।" किसान भैया लाल सिंह ने अपनी बातों में आगे जोड़ते हुए कहा।

देश का तीसरा बड़ा उत्पादक राज्य है मध्य प्रदेश

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार पूरे देश में साल 2020-21 में 69 हजार हेक्टेयर में खरबूजे की खेती हुई है और 1346 हजार मीट्रिक टन उत्पादन का अनुमान है। एमपी की बात करें तो सतना जिले के उद्यानिकी विभाग के पास खरबूजे के उत्पादन के आँकड़े भले न हो नहीं, लेकिन कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद विकास प्राधिकरण (APEDA) की 2017-18 की रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश राज्य में 127.48 मिलियन टन खरबूज का उत्पादन होता है इस मामले में तीसरे नम्बर पर है। जो कि देश भर में कुल उत्पादन का 10.36 फीसदी है। पहले नम्बर पर 548.67 मिलियन टन के उत्पादन के साथ उत्तर प्रदेश है। दूसरे नम्बर पर 314.39 मिलियन टन के साथ आंध्र प्रदेश है।

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