मध्य प्रदेश में 18 महीने बाद खुले स्कूल: दूसरी कक्षा के बच्चे को कुछ याद नहीं, पांचवीं के बच्चे नहीं पढ़ पाए हिंदी की किताब

मध्य प्रदेश में छोटे बच्चों के स्कूल खोल दिये गए हैं, साथ ही ऑनलाइन पढ़ाई भी जारी रखने के निर्देश दिए गए हैं। कई बच्चे पहले दिन जब स्कूल आए तो वह कक्षा की किताब तक नहीं पढ़ पाए। करीब 17-18 महीने से स्कूल से दूर रहने के बाद बच्चे काफी कुछ भूल भी गए हैं।

Sachin Tulsa tripathiSachin Tulsa tripathi   21 Sep 2021 11:39 AM GMT

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मध्य प्रदेश में 18 महीने बाद खुले स्कूल: दूसरी कक्षा के बच्चे को कुछ याद नहीं, पांचवीं के बच्चे नहीं पढ़ पाए हिंदी की किताब

मध्य प्रदेश में 20 सितंबर से शुरु हुई हैं,शिक्षा सत्र 2021-22 के लिए कक्षाएं। फोटो- सचिन तुसला त्रिपाठी

सीन नंबर-01 : सतना ज़िला मुख्यालय के उत्तर पूर्व में स्थित शासकीय प्राथमिक विद्यालय बरदाडीह में इस साल पांचवीं कक्षा में दाखिला लेने वाले सूरज कुशवाहा ने हिंदी की किताब खोल रखी थी। पाठ भी पहला ही था। पाठ का नाम पुष्प की अभिलाषा था। इस कविता के पहली चार पंक्तियों को पढ़ने में सूरज कई बार अटक रहा था। जैसे सुरबाला को सु...र...बा...ला..पढ़ पाया। इस तरह प्रेम को भी प्रमेय पढ़ा।

सीन नम्बर-02: सतना जिले में ही बरदाडीह की प्राथमिक शाला से करीब 5 किलोमीटर दूर एक और विद्यालय था। जिसे कैमा कोठार प्राथमिक शाला के नाम से जाना जाता है। यहां पांचवीं और कक्षा दूसरी के दो छात्रों सुभाष सिंह और शुभम सिंह को एक ही बेंच में बैठाया गया था। शुभम ने कहा कि उसे पढ़ना नहीं आता। सुभाष से शुभम को पढ़ाने के लिए कहा गया। कक्षा दूसरी के हिंदी के पहले पाठ की प्रार्थना पढ़ने के लिए कहा गया। इसकी दूसरी पंक्ति में लिखा था प्रतिदिन करें तुम्हारा ध्यान जिसे सुभाष जो कि कक्षा पांच का विद्यार्थी है, उसने भी किसी तरह शब्दों को जो इसने करें को करो पढ़ा। इसी तरह हमसे को ह..म...से और सबका शब्द को तोड़ कर स..ब..का पढ़ा।

सूरज और सुभाष के अध्यापकों के मुताबिक स्कूल बंद होने से पहले दोनों बच्चे पढ़ने में ठीक थे, लेकिन डेढ़ साल बाद वापस दोबारा स्कूल आने के बाद के बाद वो काफी कुछ भूले नजर आए।

सूरज ने गांव कनेक्शन से कहा कि वो पढ़ने की कोशिश करता है लेकिन पढ़ने में नहीं आ रहा है। वहीं सुभाष ने कहा कि, मुझे मम्मी लिखने को नहीं देती थी किताब पढ़वाती थी। घर में मोबाइल था तो फूट गया था।" स्कूल खुलने पर खुश सुभाष ने कहा कि वो अब पढ़ाई करेगा।

लंबे अरसे बाद स्कूल पहुंचे छात्रों की स्थिति देखने के बाद शिक्षक भी चिंतित हैं। प्राथमिक शाला बरदाडीह की प्रभारी हेडमास्टर सुषमा तिवारी 'गांव कनेक्शन' को बताती हैं, "डेढ़ साल बाद कक्षाएं लग रही हैं। चिंता नहीं चुनौती मिली है। बच्चों को पढ़ाने के लिए जीरो से शुरू करना होगा। हम प्रयास करेंगे कि इन्हें फिर से तैयार कर सकें।"

सुषमा की तरह ही प्राथमिक शाला कैमा कोठार के प्रभारी हेडमास्टर राकेश पांडेय कहते हैं, "पढ़ाई के स्तर में कमी तो आई है। इसे किसी भी तरह कवर करना पड़ेगा। इस माह से ही दक्षता उन्नयन और नेशनल अचीवमेंट सर्वे शुरू किया गया है। उस आधार पर बच्चों के पढ़ाई में बदलाव आएगा।"

सतना जिले में ही किटहा गाँव के आशु अहीर (10 वर्ष ) ने 'गाँव कनेक्शन' से कहा, "स्कूल बंद होने के बाद जब से बस्ता रखा है। तब से उठाया ही नहीं। मम्मी कभी-कभार साफ सफाई करते समय हटा देती है। किताबें जस की तस पड़ी हैं। स्कूल नहीं खुलती तो मन भी नहीं करता पढ़ने का। अभी का कुछ याद नहीं पिछली पढ़ाई का कौन याद रख पाएगा।"


मध्य प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री स्कूली शिक्षा (स्वतंत्र प्रभार) इंदर सिंह परमार ने ट्वीट किया, "प्राइमरी स्कूलों में लौटी रौनक, पहले दिन 64% बच्चे पहुंचे स्कूल। प्रदेश के 49.40 लाख बच्चे पहले दिन स्कूल पहुंचे। बच्चों का फूल बरसा कर बच्चों का स्वागत किया गया और क्लास में सैनेटाइजेशन और मास्क की पढ़ाई कराई गई।"

भारत दुनिया में सबसे लंबे समय तक स्कूल बंद रखने वाले देशों में से एक है। देश में लगभग 44 करोड़ छात्र-छात्राएं 18 महीने से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। सितंबर से कुछ राज्यों में स्कूल खुले हैं। तो कई राज्यों में स्कूल खुलने की संभावना अभी नहीं है।

स्कूल के पहले दिन पढ़ाई करता एक बच्चा।

गांवों के सिर्फ 8 फीसदी बच्चे ही कर रहे थे ऑनलाइन पढ़ाई- सर्वे

सितंबर के पहले हफ्ते में आई एक रिपोर्ट में 'स्कूल चिल्ड्रेन ऑनलाइन एंड ऑफलाइन लर्निंग (स्कूल) सर्वे' में कहा गया का कि कोविड की महामारी ने बच्चों की पढ़ाई पर प्रतिकूल असर डाला है। 500 से ज्यादा दिन से बंद रहे स्कूलों के चलते ग्रामीण बच्चे कैसे शिक्षा से दूर हो गए हैं। सर्वे के नतीजों के मुताबिक शहरों में 24 फीसदी तो गांवों में महज 8 फीसदी ऑनलाइन पढाई कर रहे थे। गांवों में 37 फीसदी पढ़ाई नहीं कर रहे थे। गांवों में शामिल 48 फीसदी बच्चे ऐसे थे जो कुछ शब्दों से ज्यादा नहीं पढ़ सकते थे।

यह सर्वे अगस्त 2021 में 15 राज्यों किया गया, जिसमें एमपी भी शामिल था। सर्वे में शामिल 1362 परिवारों में से प्रत्येक प्राइमरी और अपर प्राइमरी में पढ़ने वाले एक-एक बच्चे से बात की गई थी। ग्रामीण इलाकों में महज 8 फीसदी ऑनलाइन पढाई कर रहे थे इसकी वजह ये है कि ग्रामीण भारत में आधे परिवारों (सैंपल में शामिल) के पास स्मार्टफोन नहीं है।

इससे पहले फरवरी 2021 में छोटी कक्षाओं के बच्चों के पढ़ाई के स्तर पर अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की रिपोर्ट 'लॉस ऑफ लर्निंग इन पैनडमिक' में कहा गया था कि प्राइमरी और मिडिल के बच्चों में पढ़ाई की क्षमता में कमी आयी है। यह कमी समझने, पढ़ने और लिखने में भी है। साथ ही यह भी पाया कि बच्चे चित्र देख कर भी उसके बारे में बोल नहीं पाते।

92 फीसदी बच्चों की भाषा कमजोर: सर्वे

'लॉस ऑफ लर्निंग इन पैनडमिक' क्षेत्र सर्वेक्षण में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय ने पाया था कि भाषा (लैंग्वेज) और गणित में बच्चे कमज़ोर हो रहे है। उनमें गणित के सवाल और भाषा के शब्द कहने, बोलने, समझने और लिखने में समस्या हो रही है। सर्वेक्षण में 92 फीसदी बच्चे भाषा और 82 फीसदी बच्चे गणित में कमज़ोर मिले। भाषा में चित्र देख कर समझ पाने, लिखने और शब्दों की पहचान करने में दिक्कत हुई। इसी तरह गणित में दो अंकों की पहचान और बोलने में तथा 2डी और 3डी आकार में अंतर बता पाने में भी बच्चों को समस्या आ रही है। लॉस ऑफ लर्निंग इन पैनडमिक' क्षेत्र सर्वेक्षण देश के पांच राज्यों में किया गया जिसमें मध्यप्रदेश में शामिल है।

25 में 5 का भाग भी नहीं दे पाए बच्चे

स्कूल बंदी ने बच्चों की पढ़ने, लिखने और तार्किक सभी क्षमताओं पर असर डाला है। सुमित चौधरी (11वर्ष) ने 25 में 5 जोड़ और घटा तो लिया लेकिन भाग नहीं दे पाए। पूछने पर बताया कि भाग नहीं आता है। सुमित कक्षा छठवीं के विद्यार्थी हैं। वह कैमा उन्मूलन अपने बुआ के घर आये थे। उनका गांव कैथी, सतना जिले की ही ऊँचेहरा तहसील में आता है। हालांकि कैमरा ऑन करता देख वह भाग गए।

मध्य प्रदेश में करीब 18 महीने बाद खोले गए प्राथमिक स्कूल।

मोहल्ला क्लासेस: कहां तक तय हुआ सफर

सतना के नागौद ब्लॉक के एक प्राथमिक शाला के शिक्षक ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कहा, "सर्वेक्षण की बातें हद तक सही हैं। मध्य प्रदेश में प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं के बच्चों को पढ़ाने के लिए पिछले सत्र में मोहल्ला क्लास शुरू की गईं थी। हम जाते थे। राज्य शिक्षा केन्द्र (स्कूल शिक्षा विभाग की प्राथमिक और मिडिल विंग) द्वारा भेजे गए टॉपिक वीडियो बच्चों को दिखाना पड़ता था। इसके लिए एक बच्चे के घर में ही पांच बच्चों को बुलाते थे उन्हें वह वीडियो दिखाते थे। इसके बाद उनके प्रश्नों के उत्तर हम देते थे। इस तरह से साल भर पढ़ाई चली लेकिन बच्चों को इससे समझ में कम ही आता था। प्रश्न पूछने में भी वह हिचकिचाते थे।" वह कहते हैं "स्कूल बंद होने के कारण पढ़ाई का रूटीन बिगड़ा है।"

बच्चों के भविष्य को लेकर अभिभावक चिंतित

कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे के कारण स्कूल बंद थे। घर में ही रह कर बच्चों की पढ़ाई चल रही है लेकिन शब्दों और अंकों को लिखने, बोलने और समझने की क्षमता में आई कमी से अभिभावकों में भी चिंता साफ दिख रही है। सतना जिले के किटहा गांव की चैतूनिया बसोर (49 वर्ष ) 'गाँव कनेक्शन' से कहती हैं, "पिछले साल पढ़ाई का क्या है हुई ही नहीं। हम लोगों के घर में तो वैसे भी मास्टर साब लोग नहीं आते। हमारे बच्चों के भविष्य तो आपको भी पता है लेकिन सोचते हैं कि पढ़ लिख लेंगे तो जो हम करते हैं (बांस का व्यवसाय) उन्हें नहीं करना पड़ेगा पर स्कूल नहीं खुले थे इसी के कारण बच्चे घर में ही रहे और पढ़ाई- लिखाई सब स्वाहा ही गई।"

तीन बच्चों की मां चैतूनिया का सबसे छोटा बेटा कक्षा छठवीं में पढ़ रहा है। इस साल सातवीं में जायेगा। बाकी 1 हाई स्कूल में और 1 ने पढ़ाई छोड़ दी है।

स्कूल बंदी के दौरान हुए अलग-अलग सर्वे बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में बेहद कम बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे बल्कि एक बड़ी आबादी की पढ़ाई बिल्कुल बंद रही।

ऑनलाइन पढ़ाई: शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच तालमेल की कमी

स्कूली शिक्षा के विशेषज्ञ भी इस बात को मानते हैं कि कक्षा में पढ़ाने और ऑनलाइन पढ़ाई दोनों में अंतर हैं। इसका कारण शिक्षक और बच्चे दोनों ही इस नए विकल्प के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाए हैं।

रीवा संभाग के पूर्व संयुक्त संचालक स्कूल शिक्षा विभाग अंजनी कुमार त्रिपाठी (62 वर्ष ) 'गाँव कनेक्शन' से टेलीफोन पर कहते हैं "क्लास रूम की पढ़ाई और ऑनलाइन की पढ़ाई में अंतर तो होगा। न शिक्षक न ही बच्चे ऑनलाइन की पढ़ाई से तालमेल बैठा पा रहे। क्लासरूम में बच्चे एक- दूसरे से प्रतिस्पर्धी होकर भी कुछ सीखते हैं लेकिन ऑनलाइन में घर में खाते-पीते, इधर- उधर बैठे पढ़ रहे हैं। पढ़ाई में एकाग्रता जरूरी है यही कमी तालमेल नहीं बैठाने दे रही है। "

'स्कूल चिल्ड्रेन ऑनलाइन एंड ऑफलाइन लर्निंग (स्कूल) सर्वे' में 97 फीसदी ग्रामीण चाहते थे कि स्कूल जल्द से जल्द खोले जाएं।

40 फीसदी छात्रों तक ही पहुंची ऑनलाइन पढ़ाई- विभाग

मध्य प्रदेश में शिक्षा सत्र 2020-21 में अब न रुकेगी पढ़ाई की थीम के साथ ऑनलाइन पढ़ाई कराई गई। सतना के ज़िला परियोजना समन्वयक सर्व शिक्षा अभियान विष्णु कुमार त्रिपाठी ने बताया कि राज्य शिक्षा केन्द्र, भोपाल द्वारा डिजीलेप (डिजिटल लर्निंग एनहासमेन्ट प्रोग्राम) के तहत वर्ष 2020 से चलाए गए 'हमारा घर -हमारा विद्यालय' कार्यक्रम के आंकड़े बताते हैं कि व्हाट्स एप्प ग्रुप से 11 से 15 प्रतिशत, दूरदर्शन से 26 प्रतिशत विद्यार्थियों तक पहुंच हो सकी है ऑनलाइन यानि कुल लगभग 40 प्रतिशत विद्यार्थियों तक ही ऑनलाइन पहुंच हो सकी है।"

हालांकि 'स्कूल चिल्ड्रेन ऑनलाइन एंड ऑफलाइन लर्निंग (स्कूल) सर्वे' के अनुसार ग्रामीण भारत में महज 8 फीसदी बच्चे ही ऑनलाइन पढ़ाई कर पा रहे थे।


सुविधा और शिक्षक दोनों कम

स्कूल तो खुल गए हैं लेकिन इनमें सुविधाओं की भी कमी है। डेढ़ साल स्कूल खुलने के बाद भी शिक्षकों और छात्रों को सुविधाओं की कमी से दो चार होना पड़ा। प्राथमिक शाला बरदाडीह की प्रभारी हेडमास्टर सुषमा तिवारी ने कहा "हमारे विद्यालय में सुविधाओं में बाउंड्री वाल की कमी है। सड़क से सटा हुआ विद्यालय है तो इसकी बेहद जरूरत है। पंखे भी खराब है। यह समस्या बारिश के दिनों में ज्यादा होती है कारण है कि छत से पानी टपकता है। अधिकारियों को कई बार पत्र लिखा है लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ।"

"विद्यालय में वर्तमान में कक्षा 1 से 5 वीं तक में 100 विद्यार्थी हैं। जिन्हें पढ़ाने के लिए 5 शिक्षक हैं। एक की ड्यूटी जन शिक्षक (सर्व शिक्षा अभियान में क्लस्टर एकेडमिक कोऑर्डिनेटर) में लगी हुई है। " सुषमा तिवारी आगे जोड़ती हैं।

इसी तरह प्राथमिक शाला कैमा कोठार के प्रभारी हेडमास्टर राकेश पांडेय गांव कनेक्शन को बताते हैं " विद्यालय कक्षा 1 से 5वीं तक है। इस समय 38 छात्रों का दाखिला है। 7-8 और हैं जो दस्तावेज के कारण रुका है। स्टाफ में 3 शिक्षक हैं। 1 शिक्षक बूथ लेवल ऑफिसर का काम करते हैं।

अलग-अलग सर्वे की रिपोर्ट और जमीन के हालात ये बताते हैं कि कोविड के दौरान न सिर्फ पढ़ाई प्रभावित हुई है बल्कि उनका शारीरिक,मानसिक विकास भी प्रभावित हुआ है। बच्चों के लिए काम करने वाली संस्थाओं और शिक्षाविदों ने स्कूल में स्वस्थ माहौल समेत कई मुद्दों पर जोर दिया है। खास़कर ग्रामीण और उनमें भी गरीब और कुछ खास वर्ग के बच्चों को विशेष ध्यान देना होगा।

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