मध्य प्रदेश: 29 शावकों को जन्म देने वाली 'सुपर मॉम' बाघिन नहीं रही, ये है पूरी कहानी

कॉलर वाली बाघिन के नाम से दुनिया भर में मशहूर मध्यप्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व की "सुपर मॉम" नहीं रही। 17 वर्ष की इस बाघिन ने 29 शावकों को जन्म दिया, जो एक रिकॉर्ड है। जंगल में पूरा जीवन जीने वाली बाघिन सुपर मॉम के बिछड़ने से वन्यजीव प्रेमी पर्यटक जहां दुखी हैं, वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी शोक व्यक्त किया है।

Arun SinghArun Singh   17 Jan 2022 6:14 AM GMT

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पन्ना (मध्य प्रदेश)। पेंच टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा बढ़ाने के साथ-साथ मध्य प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा दिलाने में अहम योगदान देने वाली "सुपर मॉम" कॉलर वाली बाघिन अब नहीं रही। देशी व विदेशी पर्यटकों के आकर्षण रही बाघिन ने 15 जनवरी को अंतिम सांस ली। बाघिन को सम्मान के साथ आदिवासी महिला ने मुखाग्नि दी।

यह बाघिन "मोस्ट फेमस टाइग्रेस इन इंडिया" के नाम से भी जानी जाती रही है। पेंच टाइगर रिजर्व में भ्रमण हेतु आने वाला हर पर्यटक एक बार इस बाघिन को शावकों के साथ जरूर देखना चाहता था। पेंच टाइगर रिजर्व के पूर्व फील्ड डायरेक्टर विक्रम सिंह परिहार बताते हैं, "सितंबर 2005 में जन्मी इस बाघिन ने वर्ष 2008 से लेकर 2018 तक 10 साल में 29 शावकों को जन्म दिया, जो एक कीर्तिमान है। दुनिया में किसी भी बाघिन ने इतने शावकों को जन्म नहीं दिया। इस लिहाज से यह "सुपर मॉम" बाघिन पेंच टाइगर रिजर्व की धरोहर मानी जाती रही है।"

विक्रम सिंह परिहार के मुताबिक उन्होंने करीब तीन वर्ष तक इस कॉलर वाली बाघिन को बहुत करीब से देखा है। यह अत्यधिक निर्भीक, शावकों की केयरिंग करने वाली तथा वन कर्मियों के बहुत पास से गुजरने पर भी आक्रामकता न दिखाने वाली बाघिन थी। अपने शावकों को सुरक्षा प्रदान करने तथा परवरिश करने की उसमें अद्भुत क्षमता थी।

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कॉलर वाली बाघिन। फोटो- विक्रम सिंह परिहार

10 साल में 29 शावकों को जन्म, 23 शावक हुए व्यस्क

परिहार गांव कनेक्शन को बताते हैं, "इस बाघिन ने 8 बार में 29 शावकों को जन्म दिया, जिनमें 23 शावकों को वयस्कता तक पहुंचाकर बाघों की वंश वृद्धि में अविस्मरणीय योगदान दिया है। अपने तीसरे लिटर में इस बाघिन ने एक साथ 5 शावकों को जन्म दिया था। जंगल में सामान्यतः बाघ शावकों का सरवाइबल रेट 50 फ़ीसदी के लगभग

होता है लेकिन इसके 29 में 23 सही सलामत हैं, जो 80 फ़ीसदी के लगभग है।" वन अधिकारियों के मुताबिक अपने इलाके को सुरक्षित रखने की इस बाघिन में गजब की क्षमता थी। पेंच टाइगर रिजर्व में सबसे पहले वर्ष 2008 में रेडियो कॉलर इसी बाघिन को लगाया गया था, जिससे यह कॉलर वाली बाघिन के नाम से प्रसिद्ध हुई।

"ऐसी बाघिनें यदा कदा ही पैदा होतीं"

बाघ पुनर्स्थापना योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता ने गांव कनेक्शन को बताया, "पेंच की कॉलर वाली बाघिन का योगदान अभूतपूर्व है। ऐसी बाघिनें यदा-कदा ही होती हैं जो अपने जीवन में इतिहास रचती हैं।"

डॉक्टर गुप्ता बताते हैं, "इस बाघिन ने जंगल में अपना पूरा जीवन जिया है, उसके निशान हर कहीं मौजूद हैं जिन्हें मिटाया नहीं जा सकता। इस बाघिन की वंशवेल पेंच टाइगर रिजर्व ही नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य दूसरे वन क्षेत्रों में भी फैल चुकी है। एक बाघिन अपने जीवन में कितना योगदान दे सकती है, इसका अनुमान लगाना कठिन है।"

उन्होंने पन्ना टाइगर रिजर्व की बाघिन टी-2 का उदाहरण देते हुए बताया, "लगभग 16 वर्ष की इस बाघिन ने 7 बार में 21 शावकों को जन्म दिया है। इन 21 शावकों से पन्ना टाइगर रिजर्व में 72 से 80 शावकों का जन्म हुआ। इस तरहसे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पेंच की कॉलर वाली बाघिन के 29 शावकों से अब तक कितने शावक पैदा हुए होंगे।'

डॉक्टर गुप्ता के मुताबिक राजाशाही जमाने में जब राजा शिकार करते थे तो वे मेल टाइगर को ही मारते थे, फीमेल को नहीं। क्योंकि वे जानते थे कि फीमेल को मारा तो बाघों की प्रजाति ही खत्म हो जाएगी।

सितंबर 2005 में जन्मी इस बाघिन ने वर्ष 2008 से लेकर 2018 तक 10 साल में 29 शावकों को जन्म दिया, जो एक कीर्तिमान है। फोटो- विक्रम सिंह परिहार

पेंच की बाघिन का पन्ना से है कनेक्शन

पेंच टाइगर रिजर्व की बाघिन "क्वीन ऑफ पेंच" का कनेक्शन मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से भी है। इस विश्व प्रसिद्ध बाघिन की बेटी को बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत 22 जनवरी 2014 को पन्ना लाया गया था। लाइट कलर (गोरे रंग) वाली इस बाघिन को पन्ना टाइगर रिजर्व में सबसे सुंदर बाघिन का रुतबा हासिल है। लगभग 11 वर्ष की हो चुकी इस खूबसूरत बाघिन ने पन्ना टाइगर रिजर्व में आकर यहां बाघों की वंश वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस बाघिन ने यहां अब तक 7 बार में 17 शावकों को जन्म दिया है। कॉलर वाली बाघिन की संतान बाघिन टी-6 पन्ना में अपनी मां की विरासत को आगे बढ़ा रही है।

लंबे समय तक जीवित रहने का रिकॉर्ड राजस्थान की मछली के नाम

कॉलर वाली बाघिन की तरह विश्व प्रसिद्ध बाघिनों की सूची में राजस्थान के रणथम्भौर टाइगर रिजर्व की मछली बाघिन का नाम भी दर्ज है। विक्रम सिंह परिहार बताते हैं, "सर्वाधिक समय तक जीवित रहने का रिकॉर्ड मछली के नाम है। अमूमन जंगल में बाघ का जीवन औसतन 12 से 15 साल होता है, लेकिन रणथम्भौर की यह बाघिन 20 साल तक जीवित रही। मछली बाघिन दुनिया में कई नामों से मशहूर हुई। इसे "लेडी ऑफ लेक" तथा "क्रोकोडायल किलर" के नाम से भी जाना जाता है। यह बाघिन अपने शावकों को बचाने के लिए मगरमच्छ से भिड़ गई थी।"

बाघिन की मौत पर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने जताया शोक

एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दुनियाभर के वन्यजीव प्रेमियों व पर्यटकों के बीच मशहूर रही पेंच की इस बाघिन के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने ट्वीट किया है कि मध्य प्रदेश को टाइगर स्टेट का

दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली प्रदेश की शान और 29 शावकों की माता पेंच टाइगर रिजर्व की "सुपर टाइग्रेस मॉम" कॉलर वाली बाघिन को श्रद्धांजलि। पेंच टाइगर रिजर्व की 'रानी' के शावकों की दहाड़ से मध्य प्रदेश के जंगल सदैव गुंजायमान रहेंगे।

प्रदेश के वन मंत्री कुंवर विजय शाह ने भी ट्वीट कर 29 शावकों को जन्म देने का कीर्तिमान स्थापित कर सुपर टाइग्रेस मॉम कहलाने वाली बाघिन टी-15 की मृत्यु को वन विभाग और वन्यजीव प्रेमियों के लिए अपूरणीय क्षति बताया है। उन्होंने कहा कि मैं पूरे वन विभाग की ओर से भावांजलि समर्पित करता हूं।

आदिवासी महिला शांताबाई ने दी मुखाग्नि। फोटो साभार- पेंच टाइगर रिजर्व

आदिवासी महिला शांताबाई ने दी मुखाग्नि

पेंच टाइगर रिजर्व की बाघिन ने जंगल में अपनी जिंदगी को रॉयल अंदाज में जिस तरह से जिया है, उसी तरह उसको पूरे सम्मान के साथ रॉयल विदाई भी दी गई। पेंच टाइगर रिजर्व के प्रवेश द्वार वन ग्राम कर्माझिरी की निवासी दबंग आदिवासी महिला शांताबाई सरयाम ने अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पेंच की रानी को मुखाग्नि दी। वन्य प्राणी संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली शांताबाई एक ऐसी दबंग आदिवासी महिला हैं

जिन्होंने अपने गांव कर्माझिरी में न सिर्फ शराब पर पाबंदी लगाई है, बल्कि शिकार की घटनाओं पर रोक लगाने में भी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। शांताबाई इको विकास समिति कर्माझिरी की अध्यक्ष भी हैं तथा स्टे होम चलाती हैं।

कॉलरवाली बाघिन टी-15 को वन कर्मियों ने पूरे सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी। पेंच टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक अशोक मिश्रा के मुताबिक जब अंतिम विदाई दी गई, उस समय उप संचालक अधर गुप्ता, सहायक वन संरक्षक बी.पी.पी. तिवारी, परिक्षेत्र अधिकारी आशीष खोब्रागडे, एनटीसीए के प्रतिनिधि विक्रांत जठार, राजेश भेंडारकर, जिला पंचायत सदस्य रामगोपाल जयसवाल, पंजीकृत गाइड तथा रिसोर्ट प्रतिनिधि भी मौजूद थे।

कॉलर वाली बाघिन को लेकर देसी और विदेशी पर्यटकों में काफी उत्सुकता रहती थी। फोटो- विक्रम सिंह परिहार।

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