एक ऐसी ह‍िन्‍दी फिल्म जो क‍िसानों के पैसों से बनी थी

अगर भारतीय सिनेमा की बात करें तो बॉलीवुड के साथ-साथ भारतीय सामानांतर सिनेमा ने भी देश और दुनिया में एक अलग छाप छोड़ी है।

Mohammad FahadMohammad Fahad   24 July 2019 10:39 AM GMT

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एक ऐसी ह‍िन्‍दी फिल्म जो क‍िसानों के पैसों से बनी थीसाभार: इंटरनेट

अगर भारतीय सिनेमा की बात करें तो बॉलीवुड के साथ-साथ भारतीय सामानांतर सिनेमा ने भी देश और दुनिया में एक अलग छाप छोड़ी है। वर्ष 1947 में हम आजाद तो हो गये थे, लेकिन अंग्रेजों के जाने के बाद देश में परेशानियों और दिक्कतों का सिलसिला ख़त्म नहीं हुआ था। इन्ही सब के बीच भारतीय सामानांतर सिनेमा भी शोषितों और भारत की उस आबादी की समस्याएँ उठा रहा था, जो अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित हो रही थी।

कुछ लोग थे जो अपनी फिल्मो के माध्यम से शोषित वर्ग की आवाज़ बन रहे थे, वो चाहे वर्ष 1953 रिलीज़ हुई। बिमल राय की फिल्म दो बीघा ज़मीन हो या श्याम बेनेगल की वर्ष 1976 में रिलीज़ हुई श्वेत क्रांति पर बनी फिल्म मंथन हो। मंथन फिल्म में श्याम बेनेगल ने किसानों और पशुपालको के उस संघर्ष की दास्तान को बड़े पर्दे पर उतरा था, जिसका नेतृत्व वर्गीज कुरियन कर रहे थे। गिरीश कर्नाड, नसीरुद्दीन शाह, अमरीश पुरी, स्मिता पाटिल जैसे दिग्गज कलाकारों से सजी इस फिल्म को श्याम बेनेगल ने निर्देशित किया था।

मंथन पहली ऐसी फिल्म है जो श्वेत क्रांति पर बनायी गयी थी। फिल्म में बड़े अच्छे और मंझे हुए तरीके से दिखाया गया है कि कैसे एक सहकारी समिति बनाकर उसमें किसानों और पशुपालकों को जोड़ा गया और आगे चल कर ये सहकारी समिति कैसे एशिया की नंबर एक डेयरी बन गयी। अगर आज की तारीख की बात करें तो असल में में ये वही सहकारी समिति है, जिसको हम आनंदा मिल्क यूनियन लिमिटेड यानि कि अमूल के नाम से जानते है। जब श्याम बेनेगल मंथन फिल्म बना रहे थे तो एक बहुत बड़ी समस्या सामने खड़ी हो गयी थी, जो उस समय में बनने वाली आर्ट फिल्मों में अक्सर सामने आती थी कि फिल्मों को निर्माता बड़ी मुश्किल से मिला करते थे।


मंथन के साथ भी ऐसी ही कुछ दिक्कत सामने आ रही थी कि इतने अहम् मुद्दे पर बनी फिल्म को निर्माता मिलना मुश्किल हो गया था। श्याम बेनेगल उस समय काफी लोगों से मिले मगर हर जगह से निराशा हाथ लगी, लेकिन अगर नियत साफ़ होती है तो ऊपर वाला भी आपका साथ देता है। मंथन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ श्याम बेनेगल ने निर्माता न मिल पाने की दिक्कत वर्गीज कुरियन को बताई क्योंकि वर्गीज कुरियन भी इस फिल्म से जुड़े हुए थे और फिल्म का आधार ही वर्गीज कुरियन के द्वारा शुरू की गई श्वेत क्रांति से था तो उनका भी परेशान होना लाज़मी था।

वर्गीज कुरियन ने सबसे पहले श्याम बेनेगल से बजट बनाने को बोला और जल्दी ही फिल्म का बजट भी तय हो गया जो उस समय का 10 लाख रुपए बजट था। बजट बन तो गया था, लेकिन फिल्म को अभी भी निर्माता नहीं मिला था। तभी वर्गीज कुरियन के दिमाग में ये बात आई की उनकी सहकारी समिति यानि कि आज की अमूल इंडिया में करीब पांच लाख किसान जुड़ चुके हैं और फिल्म भी उन्‍हीं की कहानी है। इसलिए श्याम बेनेगल और वर्गीज कुरियन उन किसानों और पशुपालाकों के पास गए और उनसे आग्रह किया कि मंथन आपकी फिल्म है और इस फिल्म के निर्माता भी आप बन सकते हैं। आप अपनी एक दिन की कमाई से सिर्फ दो रुपए इस फिल्म के लिए दान कर दीजिये ताकि हम आपके संघर्ष की कहानी दुनिया को दिखा सकें। किसानों को उनकी मेहनत पर ज़रा सा भी शक नहीं हुआ और किसान भी श्याम बेनेगल की मंथन का हिस्सा बन गए और भारतीय सिनेमा का इतिहास रचने को तैयार हो गए। मंथन भारतीय इतिहास की पहली ऐसी फिल्म बनी जिसका निर्माता पांच लाख किसान और पशुपालक था।

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