नफ़रत की 'सरहद' से बंटे दो मुल्कों की कहानी
Shabnam Khan 26 Feb 2019 12:30 PM GMT
अरे इमरान, कहां चल दिया, नाश्ता तो कर ले दरवाज़ा धीरे से सटाकर इमरान दबे पांव बाहर निकल ही रहा था कि अम्मी की आवाज़ से ठिठक गया, फिर संभलते हुए बोला – वो.. खान अंकल की बेटी की शादी है ना.. तो.. मुहल्लेदारी का मामला है, देखूं कुछ काम-वाम तो नहीं है। टोस्टर से ब्रेड निकालते हुए अम्मी बोलीं, हां मगर शादी तो रात में है ना, अभी से क्या वहां ढोलक बजाएगा? दरवाज़े से कोई जवाब नहीं आया तो अम्मी समझ गईं कि इमरान निकल गया, उन्होने एक नज़र आराम कुर्सी पर बैठकर अंग्रेज़ी अख़बार पड़ रहे, इमरान के अब्बू यानि मुर्तज़ा साहब को देखा। उनके चेहरे पर हल्का सा गुस्सा था, बिना कुछ बोले वो फिर से अख़बार में डूब गए।
मुर्तज़ा साहब का शुमार इलाके के दानिशवर और शोहरतयाफ्ता लोगों में होता था और होता भी क्यों ना, स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन के रिटायर्ड साइंटिस्ट थे। और हां, इसके अलावा मुर्तज़ा साहब में एक बात बड़ी दिलचस्प थी, वो पक्के वाले देशभक्त थे। जी हां सौ फीसदी वतन परस्त। झंडा हमेशा उनके घर की छत पर लहराता रहता। सैटेरडे को दिल्ली के कनॉटप्लेस के कॉफी हाउस में दोस्तों के साथ मुल्क के हालात पर बात करते हुए कहते – ये पाकिस्तान चीज़ क्या है? हैं? इंडिया जब चाहे दुनिया के नक्शे से मिटा दे, अरे यूं मसल दे यूं, वो तो ह्यूमैनिटेरियन ग्राउड्स की बात है वरना..।
वो थे भले ही रिटायर्ड साइंटिस्ट लेकिन बात इस अंदाज़ से कहते जैसे, हिंदुस्तान की रक्षा नीतियां वही तय करते हों। पाक्सितान को लेकर उनके अंदर एक अजीब तरह का उन्माद था, गुस्सा था, सनक थी। और यही वजह थी कि आज जब इमरान, पड़ोसी खां साहब के यहां गया तो उनको अच्छा नहीं लगा। वो इसलिए क्योंकि खां साहब उन्हे कतई पसंद नहीं थे, खां साहब के एक भाई पाकिस्तान में जो रहते थे, हालांकि खां साब दोनों मुल्क के बीच अमन का रास्ता ढूंढे जाने के हिमायती थे।
इमरान ये बात जानता था कि अब्बा, उसके खां साहब के यहां जाने से नाराज़ होंगे, फिर भी वो गया। अब आप सोच रहे होंगे कि देखो कितना नेक लड़का था.. वालिद की नाराज़गी के बावजूद मुहल्लेदारी निभाने गया है ना? अजी हां.. ऐसा कुछ नहीं, इमरान के वहां जाने की वजह कुछ और थी।
आख़िर क्या वजह हो सकती है इमरान की? आगे की कहानी सुनने के लिए वीडियो पर क्लिक करें।
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