‘ भाबीजी घर पर हैं ’ के सक्सेना जी बोले- टर्निंग पॉइन्ट्स से भरी है मेरी जिंदगी

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
‘ भाबीजी घर  पर हैं ’ के सक्सेना जी बोले- टर्निंग पॉइन्ट्स से भरी है मेरी जिंदगीसानंद सक्सेना, सीरियल में अनोखे लाल सक्सेना के किरदार में हैं।

(सीरियल “भाबीजी घर पर हैं” के आई लाइक इट वाले अनोखे लाल सक्सेना यानी सानंद वर्मा से हमारे कंसल्टिंग एडिटर डॉ दीपक आचार्य की खास बातचीत)

"भाबी जी घर पर हैं" सीरियल का एक पगलेट किरदार बेजा चर्चा में हैं। अक्सर करंट के झटके या किसी व्यक्ति से तमा़चे खाकर "आई लाइक इट" कहने वाले अनोखे लाल सक्सेना यानी सानंद वर्मा की कॉमिक टाइमिंग इतनी सटीक है कि ये नाम सबके सिर चढ़ के बोलने लगा है। एक छोटे से गाँव से संघर्ष करते हुए कॉर्पोरेट जगत की तमाम ऊंचाईयों को छूने के बाद सानंद अभिनय की दुनिया में अपना लोहा मनवा रहे हैं।

सानंद ने "भाबी जी घर पर हैं" सीरियल के अपने किरदार अनोखे लाल सक्सेना के जरिये अपने अभिनय की ऐसी अमिट छाप छोड़ी है कि बच्चे हों या बूढ़े, सक्सेना जी से "आई लाइक इट" सुनते ही हंसने लगते हैं। "गाँव कनेक्शन" के कंसल्टिंग एडिटर डॉ दीपक आचार्य ने सानंद वर्मा से एक लंबी बातचीत की, पेश है उसी बातचीत के कुछ अंश, आप सभी पाठकों के लिए..

सवाल- कैसा लग रहा है आपको अनोखे लाल सक्सेना के किरदार में हिट होने के बाद? आप कहेंगे, "आई लाइक इट?"

जवाब-मुझे मेरे काम से हमेशा असंतोष रहता है। हर बार जब पलटकर अपने पिछ्ले काम को देखता हूं तो यूं महसूस होता है कि मैं इससे बेहतर करने की क्षमता रखता हूं। मुझमें सीखने की भूख है और इसी वजह से हर नयी सीख के साथ खुद को बेहतर करने की कोशिश करता हूँ। सक्सेना जी के किरदार ने मुझे ज्यादा पॉपुलर जरूर किया है लेकिन मैं खुद को सिर्फ अनोखे लाल सक्सेना तक सीमित नहीं देखता हूँ।

अनोखे लाल सक्सेना के किरदार में सानंद वर्मा।

सवाल-अपने व्यक्तिगत जीवन में भी आपने सक्सेना जी की तरह कुछ अनोखे काम किए हैं?

जवाब-ये किरदार मुझे बेहद प्रभावित करता है। वजह ये है कि अनोखे लाल सक्सेना एक सकारात्मक सोच का इंसान है जो पिटने या करंट लगने पर भी खुश होता है, मन से बेहद साफ और ईमानदार भी है और तो और जुनूनी भी। मैंने अभिनय की दुनिया में आने से पहले 3 उपन्यास लिखे थे, जासूसी उपन्यास। इन उपन्यासों के पूरा होने के बाद जब मैनें इन्हें पढ़ा तो मुझे लगा कि मैनें कितना बकवास लिखा है, मैं तो इससे बेहतर लिख सकता हूं। मैंने एक ही झटके में उन तीनों उपन्यासों को फाड़कर फेंक दिया। इतना अनोखा काम और कौन करेगा?

ये भी पढ़ें:कंगना, आदित्य पंचोली के बीच छिड़ी कानूनी लड़ाई

सवाल-सानंद, आप हमारे पाठकों के साथ आपके परिवार और आपके बचपन से जुड़ी कुछ खास बातें साझा करना चाहेंगे?

जवाब-मेरा जन्म पटना में हुआ लेकिन मैं तीन महीनों का था जब पिताजी सपरिवार दिल्ली आ गए। पिताजी श्री राजनारायण वर्मा हिन्दी साहित्य विषय में पोस्ट ग्रेजुएट थे। वे साहित्यकार तो थे ही, कविताएं भी खूब लिखते और पत्रकारिता भी करते थे। कुछ साल दिल्ली में रहने के बाद वे वापस बिहार कूच कर गए। बिहार के मोतिहारी (पूर्वी चंपारण) जिले के रामनगर में वे किसानी करने लगे। हमारा परिवार उन दिनों आर्थिक तंगी से बदहाल था।

आर्थिक बदहाली के उस दौर ने पिताजी को प्रापर्टी डीलर, उपन्यासकार तो कभी साहित्य प्रकाशन का व्यवसाय भी करवाया। इस दौरान पिताजी ने राजनीति से भी दो- दो हाथ किए। मैं करीब 8 साल का था जब पिताजी ने मोतिहारी लोकसभा सीट के लिए निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया था। मैं खुद सायकल रिक्शा में बैठ, सड़कों पर घूमते हुए पिताजी के लिए प्रचार किया करता था और चिल्ला-चिल्लाकर कहता "मोतिहारी के महाकवि श्री राजनारायण वर्मा को विजयी बनाएं"।

लोग एक नन्हें से बालक को इस तरह चुनाव प्रचार करता देख बड़े खुश होते थे। संघर्ष में जूझते रहना और लगातार सीखते रहने का हुनर पिताजी से ही आया है। मुझे तो लगता है कि पिताजी का चंदा बटोरकर चुनाव लड़ना दरअसल विपरीत परिस्थितियों से जूझने और घर के आर्थिक हालात सुधारने के लिए ही रहा होगा।

सवाल- तो फिर क्या पिताजी कभी चुनाव जीते?

जवाब-नहीं। चुनावी भूत उतरते ही वे पटना आ गए और प्रकाशन का व्यवसाय शुरु किया, उस प्रेस में कुंजियां और गाइड्स छापी जाती थी। पिता के इस व्यवसाय की देखरेख करने के 8-10 साल का यही बच्चा था। मैं खुद पटना में उन किताबों को बेचने सड़कों पर फिरता था।

सवाल-एक्टिंग की तरफ पहली बार आपका रुझान कब आया?

जवाब- देखिये, साइकिल पर चुनाव प्रसार करना, पटना में दुकानों की तरफ दौड़ लगाकर किताबों को बेचना, ये सब एक कला ही थी जिसमें आपको एक्टिंग ही करनी पड़ती है। मेरे घर में पिताजी अपने मित्रों के साथ कवि गोष्ठी आयोजित किया करते थे। मैं उन गोष्ठियों में एंकरिग करता था, गाने गाता था और तमाम कवियों की रचनाएं भी पढ़ता था। मुझे गाने का भी खूब शौक है। इसी दौर में प्रकाश झा जी एक मोबाइल थियेटर चलाते थे, उस बैनर के तले मैंने नुक्कड़ नाटक भी किए।

मैनें स्टेज पर भी कई नाटकों में अभिनय किया और मुझे अपने पहले ही नाटक में बेस्ट एक्टर अवार्ड भी मिला था। हो सकता है ये वही दौर रहा हो जब मुझे एक्टिंग के तरफ खींचाव महसूस हुआ हो। सच्चाई यह भी है कि मुझे खुद नहीं पता था कि मुझे भविष्य में करना क्या है। मैंने लेखन में भी हाथ आजमाया, बच्चों के लिए कुछ कहानियां भी लिखी जिसे हिन्दुस्तान टाइम्स की "नंदन" पत्रिका में जगह मिलती रही। हर एक प्रकाशित कहानी के एवज में मुझे 250 रुपये मिलते थे। एक समय मैं खुद को एक बड़ा लेखक मानने लगा था और उपन्यास भी लिख दिए जिन्हें बाद में फाड़कर फेंकने में देरी भी ना लगी।

ये भी पढ़ें:18 फ़िल्मों में काम किया पर अपनी कहानी कभी नहीं दी

सवाल- आपके करियर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइन्ट्स क्या रहा?

जवाब- बचपन से लेकर अब तक सिर्फ टर्निंग पॉइन्ट्स ही मेरी जिंदगी के हिस्से रहे हैं। करीब 18 साल का था जब मेरे पिता का देहांत हो गया। बारहवीं कक्षा के तुरंत बाद मैं दिल्ली आ गया था। बाद में पत्रकारिता में खूब हाथ आजमाए। दैनिक जागरण, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स के लिए आर्ट्स और कल्चर जैसी बीट पर काम किया। इस बीट से जुड़ी स्टोरिज़ को कवर करने के लिए अक्सर मंडी हाउस जाया करता था जहां मुझे बड़े-बड़े कलाकारों और दिग्गजों से मुलाकात का मौका मिलता था। मैं उनके इंटरव्यूज़ किया करता था।

फ़िल्मों के रिव्यूज़ भी लिखा करता था। कई इवेंट्स पर महारथियों जैसे वी एम बडोला, इब्राहिम अल्काज़ी, हबीब तनवीर, पीयूष मिश्रा और आशीष विद्यार्थी आदि से मिलता रहा। कुछ ही दिनों में पत्रकारिता जगत में मेरे काम की तारीफें होने लगी और मैं अपने सर्किल में एक चर्चित चेहरा बनने लगा। लेकिन मैं हमेशा एक्सपेरिमेंट करने पर यकीन करता हूं।

नब्बे के दशक में मैं मुंबई चला आया। गीत-संगीत में रुचि होने की वजहों ने मुझे गीतकार समीर जी से मिलवाया, मैं नदीम श्रवण से भी मिला। मेरे गुरु सत्यनारायण मिश्रा हुआ करते थे। मैं एक तरफ गायक बनने के लिए संघर्ष कर रहा था और वहीं दूसरी तरफ "दोपहर का सामना" और "ब्लिट्ज़" के लिए पत्रकारिता भी करता रहा। ब्लिट्ज़ में काम करते हुए सुधीन्द्र कुलकर्णी जी के संपर्क में आया और उन्होने मुझे "इन-केबल" के चैनल "सीवीओ" में नौकरी का मौका दिया। मैं दिन में अपनी नौकरी वाला काम करता और रात को ऑफ़िस की मशीनों पर बैठकर वीडियो एडिटिंग करना सीखता था।

मैनें यहां 5 साल नौकरी की और जिस दिन यहाँ नौकरी छोड़ी, उसी दिन सोनी टीवी से मुझे फोन आया और मेरे लिए नयी नौकरी तैयार थी। सोनी के साथ मैने 9 साल काम किया। कॉर्पोरेट जगत के बड़े- बड़े ओहदो पर रहते हुए मैंने खूब पैसा कमाया, बंगला लिया, पसंद की कार भी खरीद ली। मेरे अन्दर हर बार कुछ नया करने की भूख लगातार पलती रही। अचानक एक दिन मैनें अपनी नौकरी त्याग दी। ग्रेज्चूटी के पैसे से घर का लोन चुकाया, गाड़ी भी बेच दी। एक दौर ऐसा भी आ गया था जब मेरे लिए टैक्सी और ऑटो रिक्शा के किराये की व्यवस्था कर पाना कठिन हो चला था।

लोकल बस और ट्रेन में धक्के खाए नहीं जाते थे, ऐसे में हतोत्साहित होकर रोज करीब 40-50 किमी पैदल चलकर काम की तलाश करता फिरता था। फिर मेरे हाथ "आईडिया" का एक विज्ञापन आया जिसमें मैनें एक्टिंग की और वो सुपरहिट हुआ। इसके बाद मुझे छोटे-मोटे ऑफर्स आने लगे। मैंने सोनी टी.वी. पर सीरियल "सीआईडी" में भी काम किया, इसके अलावा "एफआईआर", "आरके लक्ष्मण की दुनिया" और "अदालत" जैसे सीरियल्स में भी काम किया। और अब "भाबी जी घर पर हैं" में आप मुझे देख ही रहे हैं।

सवाल-"भाबी जे घर पर हैं" कैसे मिला और इसमें अभिनय करना कैसा लग रहा है आपको?

जवाब-मैं इससे पहले "एफआईआर" सीरियल करता था, उसके प्रोड्यूसर से मेरा परिचय पहले से था। "भाबी जे घर पर हैं" सीरियल भी उन्हीं का है, इस प्रोजेक्ट के लिए अनोखे लाल सक्सेना के किरदार के लिए उन्हें मैं बिल्कुल परफेक्ट लगा। ये रोल चुनौतीपूर्ण है, काफी सारे शेड्स हैं इसमें। खुद के काफी करीब पाता हूँ इस रोल को।

सवाल-फ़िल्मों में भी हाथ आजमा रहें हैं? और क्या-क्या योजनाएं है?

जवाब- हां, पहले यशराज की "मर्दानी" में काम किया है मैनें। इसी साल एक फिल्म "रामसिंह चार्ली" में भी दिखायी दूंगा और इसके अलावा अमिताभी जी और आमीर खान की फिल्म "ठग ऑफ हिन्दुस्तान" और राजकुमार गुप्ता की "रेड" में भी आप मुझे देख पाएंगे। मैं गाने में भी अपना करियर खोजता हूं, अपना एक सोलो एल्बम लांच करना चाहता हूं और हर वो ख्वाहिश पूरा करना चाहता हूं जो मेरे बस की है।

सवाल-आपका गाँव कनेक्शन कितना तगड़ा है?

जवाब-मुझे शांत जगहें, पेड़-पहाड़ और नदियां बहुत पसंद है। मुझे मेरा देश पसंद है क्योंकि ये देश गाँवों का देश है। गाँव से मेरा कनेक्शन दिल से लेकर दिमाग तक है। मैं अपने गाँव को बहुत मिस करता हूं और मौका मिलने पर जरूर एक दिन अपने गाँव के लिए कुछ करना चाहूंगा।

सवाल-हमारे पाठकों के लिए कोई खास संदेश देना चाहेंगे?

बिल्कुल, नकारात्मकता से दूर रहें, बुरे दौर में निराश ना हों, आपसे ज्यादा कोई और व्यक्ति आपको नहीं जानता है। खुद को समझें और अपने टैलेंट के साथ इंसाफ करें।

ये भी पढ़ें:लता मंगेशकर के लिए आनंद बख्शी ने 1973 में लिखी थी ये कविता

ये भी पढ़ें:पंकज त्रिपाठी : एक किसान का बेटा बना बॉलीवुड का चमकता सितारा

ये भी पढ़ें:महिलाओं के हक के लिए आवाज उठाने वाली इस्मत चुगताई के योगदान से नाटक के जरिए रूबरू हुए लोग

       

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.