फिल्म प्यासा की शूटिंग के दौरान जब पहली बार कोठे पर गए थे गुरुदत्त...
गाँव कनेक्शन 9 July 2017 4:29 PM GMT
लखनऊ। फिल्म मेकिंग के स्टुडेंट्स को जब सिनेमा के तकनीकी पहलू सिखाए जाते है, तो गुरुदत्त की तीन क्लासिक फिल्मों का जिक्र जरूर होता है- ‘प्यासा’, ‘कागज़ के फ़ूल’, और ‘साहिब, बीबी और गुलाम’।
दरअसल फिल्मों में खामोशी भरे दृश्य को भी लाइट और कैमरा की मदद से सफल बनाने का गुरुदत्त को बखूबी आती थी। कर्नाटक के बंगलुरू में नौ जुलाई 1925 को जन्मे गुरुदत्त का पूरा नाम वसंथ कुमार शिवशंकर पादुकोण था। फिल्मों में आने से पहले उन्होंने कोलकाता में टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी की। आज उनके 92 वें जन्मदिवस पर कुछ खास-
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उन दिनों निर्देशक अबरार अल्वी फिल्म प्यासा की कहानी लिख रहे थे। फिल्म एक संघर्षरत कवि की कहानी पर आधारित थी जो देश की आजादी के बाद अपने काम को लोगों के बीच पॉपुलर बनाना चाहता है। वह एक वेश्या से मिलता है जो उसकी कविताओं को प्रकाशित करने में उसकी मदद करती है। दरअसल यह कहानी लेखक अबरार की असली कहानी बताई जाती है। कॉलेज के दिनों में जब वे पहली बार अपने दोस्तों के साथ कोठे पर गए थे तो उनके सामने तीन लड़कियों को पेश किया गया।
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सत्या सरन की लिखी किताब टेन ईयर्स विद गुरुदत्त जो कि अबरार अल्वी से बातचीत पर आधारित किताब है। इसमें अबरार बताते हैं कि दोस्तों की जिद के आगे उन्होंने एक बड़ी उम्र की महिला की ओर इशारा किया। उसका नाम गुलाबो था। इस तरह दोनों की बातचीत शुरू हुई और दोस्ती में बदल गई लेकिन बाद फिल्मों में व्यस्त रहने के कारण अबरार गुलाबो से नहीं मिल पाते थे जब कई साल बाद वह गुलाबो से मिलने गए तो देखा कि वह टीबी से पीड़ित थी। कुछ समय बाद जब अबरार दोबारा गुलाबो से मिलने गए तब वह दुनिया से रुखसत हो चुकी थी।
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फिल्म की कहानी सुनकर गुरुदत्त काफी प्रभावित हुए थे। लिखने के बाद उसमें लीड रोल के लिए निर्देशक गुरुदत्त ने पहले दिलीप कुमार का नाम सुझाया लेकिन बाद में उन्होंने खुद ही यह रोल प्ले किया।
और इस तरह साहिर के गाने के लिए गुरुदत्त को मिला था सीन
गुरुदत्त अपने किरदार को सजीव करना चाहते थे लेकिन वो कभी खुद कोठे पर नहीं गए थे। इसके बाद यह फैसला लिया गया कि गुरुदत्त कोठे जाएंगे। उनके साथ लेखक अबरार अल्वी भी साथ गए। दत्त जब कोठे पर गए तो वहां का मंजर देखकर वो हैरान रह गए। कोठे पर नाचने वाली लड़की कम से कम सात महीनों की गर्भवती थी, फिर भी लोग उसे नचाए जा रहे थे। गुरुदत्त से रहा नहीं गया, वो ये सब देखकर भावुक हो गए और अबरार से बोले, 'चलो यहां से' और नोटों की एक मोटी गड्डी जिसमें कम से कम हजार रुपए रहे होंगे, उसे वहां रखकर बाहर निकल आए। इस घटना के बाद गुरुदत्त ने कहा कि मुझे साहिर के गाने के लिए चकले का सीन मिल गया और वह गाना था, ‘जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां है।’
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