अब फिल्म ‘द ब्रदरहुड’ पर चलाई सेंसर बोर्ड ने कैंची

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अब  फिल्म ‘द ब्रदरहुड’ पर चलाई सेंसर बोर्ड ने कैंचीद ब्रदरहुड

सेंटरल बॉर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफकेशन (सीबीएफसी) का विवादों से रिश्ता सा जुड़ गया है। ‘न्यूड’ और ‘एस दुर्गा’ जैसी फिल्मों पर विवाद के बाद अब एक और फिल्म सेंसर बोर्ड में फंस गई है। यह बिसाहड़ा कांड की पृष्ठभूमि में बनी फिल्म ‘द ब्रदरहुड’ है। महज 24 मिनट की फिल्म में तीन बड़े कट लगाने का आदेश बोर्ड ने दिया है। उसके बाद भी बोर्ड यू/ए सर्टिफिकेट देना चाहता है जबकि, निर्माता यू सर्टिफिकेट मांग रहे हैं।

क्या है फिल्म की पृष्ठभूमि

डॉक्यूमेंटरी फिल्म 'द ब्रदरहुड' का निर्माण ग्रेटर नोएडा प्रेस क्लब के सहयोग से जर्नलिस्ट पंकज पाराशर ने किया है। यह फिल्म बिसाहड़ा गांव में अखलाख हत्याकांड (दादरी लिंचिंग केस) के बाद पैदा हुए हालातों से शुरू होती है और ग्रेटर नोएडा क्षेत्र के दो गांवों घोड़ी बछेड़ा और तिल बेगमपुर के ऐतिहासिक रिश्तों को पेश करती है।

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निर्माता और निर्देशक पंकज पाराशर ने बताया, फिल्म की कहानी और विषय वस्तु लोगों के लिए प्रेरणादायक है। घोड़ी बछेड़ा गांव में भाटी गोत्र वाले हिन्दू और तिल बेगमपुर गांव में इसी गोत्र के मुस्लिम ठाकुर हैं। लेकिन घोड़ी बछेड़ा गांव के हिन्दू तिल बेगमपुर गांव के मुसलमानों को बड़ा भाई मानते हैं। मतलब, एक हिन्दू गांव का बड़ा भाई मुस्लिम गांव है। फिल्म बताती है कि अखलाख हत्याकांड जैसे दुर्भाग्यपूर्ण हादसे से यहां के सामाजिक ताने-बाने पर कोई असर नहीं पड़ा। यहां के लोग इसे केवल राजनीति करार देते हैं।

किस बात पर आपत्ति

पंकज पाराशर बताते हैं कि बोर्ड को आपत्ति है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के गोत्र एक नहीं हो सकते हैं, फिल्म से यह बात हटाईये। दूसरी आपत्ति फिल्म के उस दृश्य को लेकर है जिसमें ग्रेटर नोएडा के खेरली भाव गांव में 02 अप्रैल 2016 को एक मस्जिद की नींव रखी गई। मंदिर के पंडित ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मस्जिद की नींव रखी। कार्यक्रम में सैकड़ों लोग शामिल हुए थे। इस घटना पर मीडिया में खूब समाचार प्रकाशित हुए थे। बोर्ड का कहना है कि इस तथ्य को भी डॉक्यूमेंटरी से हटाएं। तीसरी आपत्ति एक इंटरव्यू में भारतीय जनता पार्टी के जिक्र पर है। पंकज पाराशर का कहना है कि भाजपा का जिक्र हटाने से उन्हें कोई समस्या नहीं है। इससे डॉक्यूमेंटरी की मूल भावना प्रभावित नहीं होती है। लेकिन बाकी दोनों कट समझ से परे हैं।

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अदालत का दरवाज़ा खटखटाएंगे

फिल्म के सह निर्देशक हेमंत राजोरा का कहना है कि हम सेंसर बोर्ड के फैसले से सहमत नहीं हैं। सेंसर बोर्ड ने पांच महीनों से फिल्म को लटकाकर रखा है। बार-बार रिविजन और स्क्रीनिंग के नाम पर परेशान किया गया। दस लोगों की रिविजन कमेटी ने अब कांट-छांट करके अवांछित सर्टिफिकेट देने की बात कही है। हम इसके खिलाफ अपीलेट ट्रिब्यूनल जाएंगे। जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे लेकिन बोर्ड की मनमानी को चुनौती देंगे। हमारे पास सारे तथ्यों के प्रमाण हैं।

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