वोदका डायरीज़ : वोदका और डायरी के बीच उलझी हुई कहानी

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
वोदका डायरीज़ : वोदका और डायरी के बीच उलझी हुई कहानीफिल्म समीक्षा - वीडियो डायरीज़।

फिल्म : वोदका डायरीज़

कलाकार : के के मेनन, मंदिर बेदी, रीमा सेन

निर्देशक : कुशल श्रीवास्तव

फिल्म समीक्षक : स्नेह्वीर गुसाईं

एक तेज तर्रार आदमी की जिंदगी में ऐसे भी लम्हे आते हैं, जब उसकी खुद की होशियारी उस पर हावी हो जाती है। फिल्म वोडका डायरीज़ भी ऐसे ही किरदार की कहानी है, जिसे कुशल श्रीवास्तव ने निर्देशित किया है।

कहानी -

वोडका डायरीज़ मनाली की खूबसूरत वादियों में एसीपी अश्वनी दीक्षित (के के मेनन) की कहानी है, जो अपनी मसरूफियत के चलते अपनी बीवी शिखा (मंदिरा बेदी) को वक्त नहीं दे पाता है। फिल्म की कहानी तब उलझ जाती है, जब वोदका डायरीज़ नाम के एक क्लब में एक रात में तीन क़त्ल हो जाते हैं। अश्विनी दीक्षित इन क़त्ल की गुत्थियों को सुलझा भी नहीं पाते हैं की उन्हें पता चलता है कि उनकी पत्नी का अपहरण हो गया है। एक लड़की (राईमा सेन) इस केस को सुलझाने में उनकी मदद करती है। फिल्म के अंत तक अश्विनी दीक्षित के साथ साथ दर्शक भी कातिल को ढूंढने की कोशिश करते हैं। सस्पेंस थ्रिलर फिल्मों की सबसे बड़ी खूबी ये होती है कि की दर्शक इन्हें देखना न तो बीच से शुरू कर सकते हैं और न ही कहानी के बीच में ख़त्म कर सकते हैं, लेकिन फिल्म की कामयाबी कहानी के अंत पर टिकी होती है, जहां कहानी को समेटना होता है। कहानी के इसी हिस्से में फिल्म बहुत कमज़ोर पड़ जाती है।

वोदका डायरीज़ फिल्म का एक दृश्य।

ये भी पढ़ें- खेल जगत में राजनीतिक और सामाजिक दबाव की कहानी है ‘ मुक्काबाज़ ’

अदाकारी -

एसीपी अश्वनी दीक्षित के किरदार में के के मेनन ने बेहतरीन काम किया है। अश्वनी दीक्षित की पत्नी शिखा के किरदार में मंदिरा बेदी की अदाकारी ने भी प्रभावित किया है। फिल्म में राईमा सेन के लिए करने को बहुत ज्यादा नहीं था, फिर भी वो अपने किरदार के साथ इन्साफ करने में कामयाब रहीं। अश्वनी दीक्षित के साथी शरीब हाश्मी को मजाकिया किरदार दिखाने की नाकामयाब कोशिश की गयी है।

फिल्म की सबसे बड़ी कमज़ोरी इसका प्लाट है। फिल्म की शुरुआत जिस सस्पेंस से होती है फिल्म के दूसरे हिस्से में निर्देशक उसके साथ न्याय नहीं कर पाते, जिस थ्रिलर का भरोसा कहानी की शुरुआत दिलाती है, अंत तक आते-आते दर्शकों का वो भरोसा टूट जाता है। फिल्म के अंत तक ये उन्हें बांधे तो जरुर रखती है, लेकिन अच्छी फिल्म के तौर पर याद रखी जाए, इसकी उम्मीद कम ही है। यही वजह है कि सभी कलाकारों की अच्छी एक्टिंग के बावजूद फिल्म खुद को एक उम्दा सस्पेंस थ्रिलर के रूप में साबित नहीं कर पाती। कुल मिलकर यह कहा जा सकता है की निर्देशक कुशल श्रीवास्तव ने अच्छी कोशिश की है, लेकिन वो कोशिश कामयाब नहीं हो पायी है।

ये भी पढ़ें- अनुष्का की फिल्म परी होली पर होगी रिलीज 

ये भी पढ़ें- मुक्काबाज़- कुछ के लिए टॉनिक है, कुछ के लिए वाइन

  

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.