पुण्यतिथि विशेष: दिलों में आज भी जिंदा है मदर इंडिया का ‘बिरजू’
Shefali Srivastava 25 May 2017 1:52 PM GMT

लखनऊ। आज ही के दिन करीब 12 साल पहले जब मुंबई की सड़कों पर सुनील दत्त का पार्थिव शरीर गुजरा तो बॉलीवुड सहित आम लोगों की भीड़ सड़कों पर उमड़ आई थी। इसकी वजह यही थी कि सुनील दत्त न केवल बेहतरीन अभिनेता बल्कि एक अच्छे इंसान के रूप में लोगों के बीच जाने जाते थे। उनकी अदाकारी के साथ-साथ लोग उनके विनम्र स्वभाव के भी कायल थे। एक समर्पित पति, आदर्श पिता के साथ सुनील दत्त एक जुझारू व्यक्ति भी थे जो हालातों के सामने कभी हार नहीं मानते थे।
6 जून 1929 को पंजाब (पाकिस्तान) के झेलम ज़िले के खुर्दी गाँव में जन्मे सुनील दत्त का असली नाम बलराज दत्त था। सुनील दत्त बचपन से ही अभिनय के क्षेत्र में जाना चाहते थे। उन दिनों बलराज साहनी फ़िल्म इंडस्ट्री में अभिनेता के रूप में स्थापित हो चुके थे, इसे देखते हुए उन्होंने अपना नाम बलराज दत्त से बदलकर सुनील दत्त रख लिया। सुनील दत्त ने कुछ वक्त लखनऊ में भी गुजारा, जहाँ पर वह अमीनाबाद गली में रहा करते थे।
सुनील दत्त की पहली फ़िल्म 'रेलवे प्लेटफॉर्म' 1955 में प्रदर्शित हुई। अपनी पहली फ़िल्म से उन्हें कुछ ख़ास पहचान नहीं मिली। उन्होंने इस फ़िल्म के बाद 'कुंदन', 'राजधानी', 'किस्मत का खेल' और 'पायल' जैसी कई छोटी फ़िल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से उनकी कोई भी फ़िल्म सफल नहीं हुई।
ये भी पढ़ें: नरगिस के नाम की जगह पत्र में कोडवर्ड का इस्तेमाल करते थे सुनील दत्त
इसके बाद 1957 में डायरेक्टर महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया आई। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाढ़ने के साथ ही सुनील दत्त को भी प्रसिद्ध कर दिया। इसके बाद उनकी कई यादगार फिल्में आईं जिसमें सुजाता, रेशमा और शेरा, मिलन, नागिन, जानी दुश्मन, पड़ोसन, जैसी फ़िल्मों के लिए वो हमेशा याद किए जाते रहेंगे। सुनील दत्त ने 1964 में एक प्रयोगधर्मी फ़िल्म 'यादें' बनाई थी। इस फ़िल्म का नाम सबसे कम कलाकार वाली फ़िल्म के रूप में गिनीज बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में दर्ज है।
न चाहते हुए भी बनना पड़ा खलनायक
सुनील दत्त का सफर कभी आसान नहीं रहा। एक वक्त ऐसा भी आया था जब फिल्में न मिलने के कारण उन्हें खलनायक का किरदार निभाना पड़ा था। फ़िल्म पत्रकार जयप्रकाश चौकसे ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि जब 1971 से 1975 तक कोई फ़िल्म नहीं मिलने से उनका करियर लड़खड़ाने लगा तब अभिनेत्री साधना और आरके नय्यर ने उन्हें 'गीता मेरा नाम' फ़िल्म में काम करने को कहा। लाख समझाने के बाद उन्होंने पहली बार खलनायक की भूमिका निभाई। उसके बाद से उन्हें फिर से फ़िल्में मिलनी शुरू हो गईं।
ये भी पढ़ें: जब सुनील दत्त को लेना था नर्गिस का इंटरव्यू
हालातों ने संघर्ष में भी हंसना सिखा दिया था
1980 में सुनील दत्त ने अपने बेटे संजय दत्त को फ़िल्म 'रॉकी' में लॉन्च किया। यह एक सुपरहिट फ़िल्म साबित हुई लेकिन फ़िल्म के प्रदर्शित होने के थोड़े समय के बाद ही उनकी पत्नी नरगिस का कैंसर की वजह से देहांत हो गया। सुनील दत्त ने पत्नी की याद में 'नरगिस दत्त फाउंडेशन' की स्थापना की। सुनील दत्त ने पूरे जीवन कई लड़ाइयां लड़ी हैं। अपने बेटे को ड्रग्स की लत छुड़ाने और पत्नी का इलाज कराने के लिए वो दो बार अमेरिका गए। इस दौरान वो बहुत परेशान रहे।
दूसरों के चुटकुलों में नरगिस का हंसना पंसद नहीं था सुनील दत्त को
नरगिस और सुनील दत्त की प्रेम कहानी भी फिल्म इंडस्ट्री में बेहद चर्चित रही। सुनील दत्त ने 'मदर इंडिया' फ़िल्म की शूटिंग के दौरान एक आग की दुर्घटना में नर्गिस को अपनी जान की परवाह किये बिना बचाया। सुनील दत्त नरगिस को पिया कह के पुकारते थे व पत्रों में एक-दूसरे को मार्लिन मुनरो और एल्विस प्रिंसले लिखा करते थे। वे एक-दूसरे को डार्लिंगजी भी पुकारते थे। सुनील दत्त को यह अच्छा नहीं लगता था कि पार्टियों में नरगिस अतिथियों के साथ चुटकुलों पर हँसे और अतिथियों को चुटकुले सुनाती रहें।
More Stories