जब 'आवारा' का पिता बुलाए जाने पर बिदक गए थे पृथ्वीराज कपूर

Shefali SrivastavaShefali Srivastava   3 Nov 2018 6:12 AM GMT

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जब आवारा का पिता बुलाए जाने पर बिदक गए थे पृथ्वीराज कपूरफिल्म मुगल-ए-आजम में अकबर के किरदार में जान भर दी थी

लखनऊ। बॉलीवुड की माइलस्टोन फिल्मों में एक मुगल-ए-आजम की खासियत अकबर की दमदार भूमिका भी है। फिल्म में सम्राट अकबर का एक अलग ही रूप दर्शकों ने देखा था, एक गुस्सैल और सख्त मिज़ाज पिता जो अपने बेटे को एक कनीज़ के प्यार को स्वीकार नहीं कर पाते। लोग कहते हैं कि इस भूमिका को पृथ्वीराज कपूर के अलावा कोई और एक्टर इतना जीवंत कर ही नहीं पाता।

आज इन्हीं महान अभिनेता और कपूर खानदान की रीढ़ कहे जाने वाले पृथ्वीराज कपूर की पुण्यतिथि है। इन्होंने अभिनय की दुनिया में कई मानक स्थापित किए। न सिर्फ मुगल-ए-आजम बल्कि सिकंदर, दहेज, ज़िंदगी, आसमान महल और तीन बहुरानियां में हमने उनकी दमदार अदाकारी देखी लेकिन उनके लिए फिल्में नहीं बल्कि नाटक उनका पहला प्यार था। आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ दिलचस्प बातें-

बॉलीवुड का जिक्र हो तो कपूर खानदान की बात कैसे न हो और बात अगर कपूर खानदान की हो तो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में उसकी नींव रखने वाले पृथ्वीराज कपूर को कैसे भूला जा सकता। फिल्म इंडस्ट्री में 'पापाजी' के नाम से मशहूर पृथ्वीराज कपूर का जन्म तीन नवंबर 1906 को पश्चिमी पंजाब के लायलपुर (अब पाकिस्तान) शहर में जन्मे पृथ्वीराज कपूर का विवाह महज 18 वर्ष की उम्र में ही हो गया और वर्ष 1928 में अपनी चाची से आर्थिक मदद लेकर पृथ्वीराज कपूर अपने सपनों के शहर मुंबई पहुंचे।

पृथ्वीराज कपूर 1928 में मुंबई में इंपीरियल फ़िल्म कंपनी से जुडे़ थे। साल 1930 में बीपी मिश्रा की फ़िल्म 'सिनेमा गर्ल' में उन्होंने अभिनय किया। इसके कुछ समय बाद एंडरसन की थिएटर कंपनी के नाटक शेक्सपियर में भी उन्होंने अभिनय किया। लगभग दो वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करने के बाद पृथ्वीराज कपूर को वर्ष 1931 में प्रदर्शित पहली बोलती फिल्म 'आलमआरा' में सहायक अभिनेता के रूप में काम करने का मौका मिला। इसके बाद 1934 में देवकी बोस की फिल्म 'सीता' की कामयाबी के बाद बतौर अभिनेता पृथ्वीराज कपूर अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।

उनकी कई प्रसिद्ध फिल्में आईं जिसमें मुगल-ए-आजम उनकी सबसे दमदार फिल्मों में शामिल है।

कला देश की सेवा में

उन्होंने नाटकों और फिल्मों दोनों माध्यमों में समान रूप से कामयाबी हासिल की लेकिन उनका पहला प्यार थियेटर ही था। इसी लगाव के बीच और 'कला देश की सेवा में' के उद्देश्य से उन्होंने 1944 में पृथ्वी थियेटर्स की स्थापना की। देश में घूम-घूमकर नाटक दिखाने वाली इस कंपनी में 150 लोग काम करते थे जिसमें कलाकार, मज़दूर, रसोइया, लेखक और टेक्नीशियन सभी प्रकार के लोग थे। यहां पहला नाटक शकुंतला पेश किया गया। पृथ्वी थियेटर्स ने अगले 16 साल में दो हजार से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां की। अधिकतर नाट्य प्रस्तुतियों में पृथ्वीराज कपूर ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं कीं। इसमें दीवार, पठान, गद्दर, कलाकार, पैसा और किसान जैसे नाटक शामिल थे।

आधुनिक थियेटर की धारणा को साकार किया

उन दिनों थियेटर पर पारसी प्रभाव अधिक था लेकिन पृथ्वीराज कपूर ने पृथ्वी थियेटर के जरिए पहली बार सही मायने में आधुनिक थियेटर की धारणा को साकार किया। जब स्टेज पर पृथ्वीराज की भारी भरकम आवाज गूंजती तो दर्शक मंत्रमुग्ध रह जाते। पृथ्वी थियेटर उनके तीन पुत्रों के अलावा कई कलाकारों के लिए अभिनय संस्थान साबित हुआ जो बाद के दिनों में थियेटर और फिल्मों के सफल कलाकार साबित हुए। उस समय पृथ्वी थियेटर में भारत-विभाजन के समय की स्थिति के नाटक खेले जाते थे। नाटक की भाषा जनसाधारण की भाषा होते हुए भी परिस्कृत है। पृथ्वीराज के अभिनय की स्वाभाविकता के कारण इसके नाटकों की ख्याति पूरे देश में फैल गई।

नाटक खत्म होने के बाद झोली में पैसे बटोरते थे

बताते हैं कि अपने थिएटर के तीन घंटे के शो के समाप्त होने के बाद गेट पर एक झोली लेकर खड़े हो जाते थे ताकि शो देखकर बाहर निकलने वाले लोग झोली में कुछ पैसे डाल सकें। इन पैसों के जरिए पृथ्वीराज कपूर ने एक वर्कर फंड बनाया था जिसके जरिए वे पृथ्वी थिएटर में काम कर रहे सहयोगियों को जरूरत के समय मदद किया करते थे।

फिल्म मुगल ए आजम के एक दृश्य के दौरान

थियेटर के लिए नेहरू जी के आमंत्रण को अस्वीकार किया

पृथ्वीराज कपूर अपने काम के प्रति बेहद समर्पित थे। एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें विदेश में जा रहे सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने की पेशकश की लेकिन पृथ्वीराज कपूर ने नेहरूजी से यह कहकर पेशकश नामंजूर कर दी कि वे थिएटर के काम को छोड़कर वे विदेश नहीं जा सकते।


फिल्म इंडस्ट्री में उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए पृथ्वीराज कपूर वर्ष 1969 में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किए गए। इसके साथ ही फिल्म इंडस्ट्री के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फालके से भी पृथ्वीराज कपूर को सम्मानित किया गया। पृथ्वीराज कपूर 29 मई 1972 को इस दुनिया से रुखसत हो गए।

जब बना पृथ्वी थियेटर ट्रस्ट

1972 में पृथ्वीराज कपूर की मृत्यु के बाद लगा कि अब पृथ्वी थियेटर्स भी इसी के साथ बंद हो जाएगा लेकिन 1978 में उनके बेटे अभिनेता शशि कपूर और उनकी पत्नी जेनिफर केंडल ने मिलकर पृथ्वी थियेटर ट्रस्ट की स्थापना की। पृथ्वी थियेटर में मंगलवार से लेकर रविवार तक हर दिन नाटक होते हैं। रिहर्सल और मेंटीनेंस के लिए इसे सोमवार को बंद रखा जाता है। पृथ्वी थियेटर में एक साल में 643 से भी ज्यादा शो होते हैं जिसमें 77 फीसदी लोगों की उपस्थिति होती है। हिंदी, अंग्रेजी, मराठी और गुजराती में यहां प्ले होते हैं। शशि कपूर का स्वास्थ्य न ठीक होने की वजह से अब इसे उनके बेटे कुणाल कपूर देखते हैं।

फिल्म कल आज और कल में कपूर खानदान की तीनों जनरेशन एक साथ दिखी

पसंद नहीं था 'आवारा का पिता' कहलाना

एक बार जब रीगल में अभिनेता राज कपूर की फ़िल्म दिखाई जा रही थी तो उस समय सांसद रहे पृथ्वीराज कपूर फ़िल्म देखने के लिए संसद भवन से सीधे रीगल सिनेमा पहुंचे थे। कुर्ता पैजामा पहने जब पृथ्वीराज कपूर सिनेमाघर में घुस रहे थे तो उन्होंने सुना कि दर्शकों में से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कह रहा था, "देखिए, आवारा के पिता।" दरअसल आवारा राजकपूर की जबर्दस्त हिट फिल्म थी और उसी समय रिलीज हुई थी।

ये सुनना था कि वो ठिठक गए। वो पीछे मुड़े और ऐसा कहने वाले को चिल्ला कर चुप रहने के लिए कहा। इससे पहले बॉम्बे में इस बात के लिए वो एक व्यक्ति को चांटा जड़ चुके थे। वो स्पष्ट कह चुके थे कि वो राज कपूर के पिता हैं किसी आवारा के नहीं।

       

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