भड़म नृत्य से आदिवासी करते हैं अपनी खुशी का इज़हार 

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भड़म नृत्य से आदिवासी करते हैं अपनी खुशी का इज़हार टिमकी वादक बजाता आदिवासी कलाकार।                           फोटो: इंटरनेट

दीपांशु मिश्रा, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। मध्य प्रदेश में देश की सर्वाधिक जनजाति है। यहां 46 प्रकार की जनजातियों और प्रजातियां रहती हैं उनमें भारिया जनजातियां रहती हैं। इन जनजातियों के कई प्रसिद्ध नृत्य भी हैं| इसी नृत्य कला में लिप्त भड़म नृत्य का प्रचलन है जो आदिवासियों को अपनी खुशी का इजहार करने के लिए करते हैं। इस नृत्य के अन्य नाम भी हैं जैसे- गुन्नू साही, भडनी, भडनई, भरनोटी अथवा भंगम नृत्य। भड़म नृत्य विवाह या किसी भी तरह की खुशी के अवसर पर सबसे प्रिय नृत्य माना जाता है।

भड़म लोकनृत्य करते आदिवासी कलाकार। फोटो: इंटरनेट

यह नृत्य समूह में होता है। इसमें बीस से पचास साठ पुरुष नर्तक और वादक होते हैं। ढोलों की संख्या से टिमकियों की संख्या दुगुनी होती है। नृत्य कला में दस ढोलक वादक हों तो बीस टिमकी वादक पहले घेरा बनाते हैं। पहला ढोल वादक विपरीत दिशा में खड़ा होता है शेष अन्य ढोल वादक एक के पीछे एक खड़े होते हैं।

ऐसे होता है भड़म नृत्य

टिमकी वादक घेरा बनाकर खड़े होते हैं। घेरे के बीच का एक नर्तक लकड़ी उठाकर दोहरा (आदिवासी गाना) गाता है। दोहरे के अंतिम शब्द से वाद्य बजना शुरू हो जाता है और लय धुन तीव्रता से बढ़ता जाता है। नृत्य की गति वाद्यों के साथ बढ़ती है। ढोल वादकों का पैर समानान्तर गति में धीरे-धीरे घूमते हैं तथा घेरे के बीच के नर्तक तेज गति से पैर कमर और हाथों को लाकर नाचते हैं। बीच-बीच में किलकारी भी होती है। यही क्रम चलता रहता है।

आदिवासी समाज में यह नृत्य परम्परा

भारिया जनजाति विभिन्न पर्वों पर नाचते गाते हैं। आदिवासी समाज में नृत्य गान इनकी परम्परा है। बच्चे से बूढ़े तक नृत्य कला में पारंगत होते हैं। बुजुर्ग व्यक्ति बचपन से नृत्यकला में निपुण बनाता है, जो छोटी उम्र में आकर्षण का कारण भी होता है। भारियाओं का ढोल गोल और बड़ा होता है। ये ढोल स्वयं बनाते हैं।

     

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