फिल्म समीक्षा पद्मावत: कलाकारों के बीच परदे पर दिखी बेजोड़ अभिनय करने की लड़ाई

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फिल्म समीक्षा पद्मावत: कलाकारों के बीच परदे पर दिखी बेजोड़ अभिनय करने की  लड़ाईफिल्म पद्मावत का एक दृश्य।

फिल्म - पद्मावत

स्टार कास्ट - शाहिद कपूर, रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, अदिति राव हैदरी

डायरेक्टर - संजय लीला भंसाली

फिल्म समीक्षक - शबनम गुप्ता

पद्मावत देखने के बाद पहला ख़याल दिमाग में आता है- पता नहीं किस बात का हल्ला मचा हुआ है? संजय लीला भंसाली और करणी सेना का उद्देश्य एक ही तो है, राजपूतों की आन, बान और शान का बेहिसाब बखान, तो फिर मुद्दा क्या है ?

फिल्म पद्मावत में अच्छे संगीत के साथ दिखा कलाकारों का अच्छा अभिनय।

खैर -

फिल्म की कहानी13वीं सदी के कवि, मलिक मोहम्मद जायसी, के काव्य पर आधारित है। सिंघली राजकुमारी पद्मावती, चित्तौड़ के राजपूत राजा रावल रतन सिंह की दूसरी पत्नी है। अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान है. जब वो पद्मावती की खूबसूरती के बारे में सुनता है, तो उसे अपनी बेगम बनाने के लिए उतावला हो जाता है। मेहमान बनकर चित्तौड़ के महल में पहुंचता है और रानी से मिलने की गुज़ारिश करता है। राजपूतों की परंपरा के खिलाफ होने पर भी, एक शक्तिशाली दुश्मन की बात रख ली जाती है, और उसे पद्मावती का चेहरा शीशे में दिखाया जाता है।

फिर वही होता है जो होना था, पद्मावती को देखकर खिलजी का इरादा और पक्का हो जाता है और वो उसे अपनी बेगम बनाना चाहता है। युद्ध में अपने कपट और ताक़त के बल पर वो जीत जाता है, पर रानी पद्मावती अपनी दासियों और महल की बाकी सभी औरतों के साथ जौहर कर लेती है। युद्ध के बाद जीते हुए महल में खिलजी को सिर्फ जलते हुए अंगारे और राखमिलती है।

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पिक्चर बहुत भव्य है और 3D में ये और भी बढ़िया लगी, क्योंकि कुछ हद तक ये परीकथा और राजस्थानी लोक कथा का समागम है। सब्जेक्ट 3D के हिसाब से उम्दा है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी लाजवाब है, सारे सेट शानदार है,रंग बिरंगे लहंगों और जडाऊ गहनों में सजी दीपिका बेहद खूबसूरत लगी हैं। राजस्थान में वॉटर फॉल देखकर कुछ अजीब लगा पर विशालकाय पत्थर की मूर्तियां, गुफा की दीवारों की नक्काशी, महल और किले केआलीशान बुर्जतो पूरी तरह बाहुबली फिल्म की याद ताज़ा कर गएं।

फिल्म में शाहिद ने राजपूत राजा रावल सिंह की भूमिका में जान डाल दी , तो दीपिका की सुंदरता ने जीता दिल।

मुख्य कलाकारों में शाहिद कपूर, रणवीर सिंह और अदिति राव हैदरी ने बहुत सधी हुई एक्टिंग की है। शाहिद ने राजपूत राजा रावल सिंह की भूमिका में जान डाल दी, उनकी डायलॉग डिलीवरी शानदार है और हर सीन में उनका अभिनय वास्तविक लगा। उनकी और दीपिका की कैमेस्ट्री भी बहुत ख़ास लगी है। दीपिका के चेहरे पर पूरी फिल्म में कुछ एक भाव ही दिखे हैं। ये वही दीपिका हैं, जो बाजीराव की मस्तानी और राम की लीला भी थी। उनके अभिनय में कोई ख़ास गहराई नहीं दिखी। हां, उनका काम इतना खूबसूरत लगना है कि उनके लिए युद्ध हो जाए, हेलेन ऑफ़ ट्रॉय की तरह और ये काम उन्होंने बढ़िया किया है।

गुलाम मलिक काफूर के रोल में जिम सरभ ने चौंका दिया। उनका किरदार एक ऐसे गुलाम का है, जो खिलजी को प्यार करता है। उन्होंने इस किरदार को पूरी इमानदारी से निभाया है- उनके चेहरे पर आते जाते भाव एक पल में हंसी से खौफ में बदल जाते हैं, और हैरानी की बात ये है कि उनके अभिनय में कुछ बनावटी नहीं लगता।

फिल्म का सबसे मज़बूत पक्ष रणवीर सिंह का अभिनय है। उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी को जीवंत कर दिया। एक क्रूर, व्याभिचारी और बायसेक्सुअल सुल्तान का ऐसा चित्रण किया है कि उनसे नफरत होने लगती है। किसी सीन में भी उनका किरदार लड़खड़ाया नहीं। पहले सीन में जब वो डायलॉग बोलते हैं, ‘सारा मसला ख्वाइशों का है’- से लेकर आखिरी सीन में जब वो बदहवासी की हालत में भागते हुए किले की दीवारों को पार कर के उस जगह पहुंचते है, जहां पद्मावती अपनी दासिओं के साथ जौहर कर रही होती है, उनका अभिनय सशक्त रहा है। रज़ा मुराद और अदिति राव ने भी अपनी भूमिका अच्छी निभाई है।

रणवीर ने किया अलाउद्दीन खिलजी को जीवंत करने वाला अभिनय।

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संजय लीला भंसाली ने एक और ऐतिहासिक रोमांस को बहुत बखूबी दिखाया है। प्रकाश कपाड़िया के डायलॉग ने स्क्रिप्ट में जान डाल दी है। डायरेक्टर ऑफ़ फोटोग्राफी, सुदीप चैटरजी, नेहर फ्रेम को किसी पेंटिंग की तरह सजा दिया है। जहां राजस्थान के हर फ्रेम में खिले हुए सुनहरी रंग है, वहीं खिलजियों के खेमे और महल के हर सीन में काले और ग्रे रंग है, बिल्कुल जैसे तूफ़ान से पहले के आसमान में होते हैं। म्यूजिक भंसाली की हर पिक्चर की रूह होती है, और पद्मावत में भी संगीत और कोरियोग्राफी कमाल की है।

फिल्म के गाने और एडिटिंग -

घूमर गाना तो फिल्म के प्रदर्शन से पहले ही चर्चा का विषय बना हुआ है, और बहुत हिट गाना है।

एक दिल है गाना बेहद खूबसूरत है। ये फिल्म में तब आता है जब रावल रतन सिंह युद्ध पर जा रहे होते हैं और ये राजा और रानी के जज़्बात को बहुत संवेदनशीलता के साथ दिखाता है।

खली गाने में तुर्की अफगानी संगीत का संगम और रणवीर का डांस काफी हद तक अय्याशखिलजी के पागलपन और जूनून को उभार कर दिखाता है।

फिल्म की एडिटिंग इतनी बेहतरीन है कि आपको पता ही नहीं चलेगा कि दो घंटे 44 मिनट की ये फिल्म कब ख़त्म हो गई।

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