ओमपुरी का स्टारडम कभी उनके सिर पर हावी नहीं हुआ : गोविंद निहलानी 

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ओमपुरी का स्टारडम कभी उनके सिर पर हावी नहीं हुआ : गोविंद निहलानी निहलानी कहते हैं कि ओमपुरी का आकर्षण ही यही था कि उन्होंने कभी कोई स्टाइल नहीं बनाया।

नई दिल्ली (भाषा)। शायद ही कोई होगा जिसने ओम पुरी के अभिनय का लोहा नहीं माना हो, लेकिन उन्हें इन ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाली ‘आक्रोश' और ‘अर्ध सत्य' सरीखी फिल्मों के निर्देशक गोविंद निहलानी उन्हें ऐसी शख्सियत के तौर पर याद करते हैं जिनका स्टारडम उनके अंदर के कलाकार के ऊपर कभी हावी नहीं हुआ।

निहलानी (76) कहते हैं कि ओमपुरी का आकर्षण ही यही था कि उन्होंने कभी कोई स्टाइल नहीं बनाया और यही स्टारडम के लिए प्रमुख शर्त है।

ओम ने कभी स्टारडम हासिल करने की कोशिश नहीं की। यही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। आपके लिए दर्शकों का प्यार ही हकीकत होता है। वे चाहतें हैं कि आप सब कुछ करें, नाचें, लड़ें, कॉमेडी करें। आपको एक स्टाइल बनाना होता है और वही करते रहना होता है। वही स्टाइल आपके अभिनय का एक भाग बन जाता है।
गोविंद निहलानी, निर्देशक

हैबिटेट फिल्म फेस्टिवल में ओम पुरी के बीते वक्त के काम को प्रस्तुत करने वाले निदेशक ने कहा कि दर्शक ओम पुरी से अभिनय में दोहराव की उम्मीद नहीं करते थे। उन्होंने कहा, ‘‘जब आपने ओम को देखा, आपने गंभीर किरदार और प्रस्तुति की उम्मीद की और आपको वह मिला। उनके पास स्टारडम था जो कभी उन पर हावी नहीं हुआ।''

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ओमपुरी को सबसे बड़ी सफलता निहलानी की फिल्म ‘आक्रोश’ से मिली। इसके बाद बंटवारे पर भीष्म साहनी के नॉवल पर बनी फिल्म ‘तमस’ में ओमपुरी के अभिनय का लोहा सबने माना। हालांकि अधिकतर लोगों का मानना है कि ‘अर्धसत्य’ में ओमपुरी का अभिनय सर्वश्रेष्ठ था। निहलानी उन्हें एक ऐसा भावुक अभिनेता मानते हैं जो अनेक बार एक परफेक्ट टेक के बाद लगभग बेहाल हो जाते थे क्योंकि वह अपने किरदार में एकदम खो जाते थे।

अगर उनमें कोई कमजोरी थी तो वह यह थी कि वह अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाते थे। वह इतना भावुक हो जाते थे कि मुझे सीन को दोबारा शूट करना पड़ता था। लेकिन क्या इसे कमजोरी कहना चाहिए अथवा विशेषता, इसे बेहद संजीदगी के साथ देखा जाना चाहिए।
गोविंद निहलानी, निर्देशक

निदेशक का मानना है कि यही अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में भी उनकी सफलता का कारण है। ओम पुरी इस वर्ष छह जनवरी को दुनिया को अलविदा कह गए।

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