गोविंद नामदेव : 250 रुपए की स्कॉलरशिप के सहारे दिग्गज अभिनेता बनने की कहानी

Mohit AsthanaMohit Asthana   27 Dec 2017 5:46 PM GMT

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गोविंद नामदेव : 250 रुपए की स्कॉलरशिप के सहारे दिग्गज अभिनेता बनने की कहानीअभिनेता गोविंद नामदेव।

फिल्म ओह माई गॉड में पाखंडी पंडित सिद्धेश्वर महाराज या फिर बैंडिट क्वीन में औरतों पर अत्याचार करने वाला गाँव का ठाकुर। थियेटर हो या फिल्म उनके अभिनय के साथ-साथ उनकी दमदार आवाज ने हिंदी सिनेमा में उन्हें अगली पंक्ति में खड़ा किया है।

हम बात कर रहे हैं अभिनेता गोविंद नामदेव की। पिछले दिनों अपनी फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में आए गोविंद नाम देव से गाँव कनेक्शन संवाददाता ने उनसे खास मुलाकात की। पेश है इस मुलाकात के दौरान पूछे गए सवाल और उनके जवाब...

आपका जन्म मध्य प्रदेश के सागर में हुआ था। इसके बाद दिल्ली जाने का ख्याल मन में कैसे आया।

बचपन से ही मुझे अव्वल आने की चाह रही है। चाहे वो खेल हो या दोस्तों की मंडली या फिर पढ़ाई। हर चीज में मैं हमेशा आगे रहना चाहता था। इसके साथ ही मैंने गांधी जी की आत्मकथा पढ़ी थी। उससे मैं बहुत प्रेरित था। साथ ही और भी महापुरूषों की किताबें पढ़ी जिससे मुझे लगा कि मुझे आम लोगों की तरह नहीं बनना है।

मुझे कुछ बड़ा बनना है कुछ अलग बनना है। मैं चाहता था कि लोग मुझे जानें। ये बात घर कर गई। फिर मैने सोचा कि ये जितने भी लोग हैं ये बड़े संस्थानों से पढ़ हैं इसलिये मुझे भी किसी बड़े संस्थान से पढ़ना चाहिये। साथ ही जितने भी लोगों की मैंने आत्मकथा पढ़ी उससे मुझे ये पता चला कि सारे बड़े लोग दिल्ली में ही मिलते हैं। देखिए वीडियो

थियेटर में जाने का मौका कैसे मिला।

11 वीं क्लास के बाद समस्या आई आगे की पढ़ाई की। सोचा कॉलेज में पढ़ता हूं तो नौकरी कैसे करूंगा। फिर मैनें ऐसी नौकरी खोजनी शुरू की जो पार्ट टाइम हो। उसी वजह से मैं अखबार में विज्ञापन देखा करता था। एक पेपर में मैने देखा कि दिल्ली राज्य सरकार 250 रुपए की दो स्कालरशिप नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के लिये दे रही है।

इच्छुक लोग आवेदन करें। मुझे लगा ये अच्छा है मैं सीखता भी रहूंगा जो भी सिखाएंगे साथ ही स्कॉलरशिप भी मिलती रहेगी। उस वक्त तक मैं ये नहीं जानता था एनएसडी क्या है। मैं रिसेप्शन पे गया और फार्म ले लिया। फार्म भरकर दे दिया। उसके बाद इंटरव्यू हुआ उसमें करीब 60 से 65 लोग थे। मै इंटरव्यू देकर घर चला गया और अगले दिन टेलीग्राम आ गया कि एनएसडी में मेरा चयन हो गया है। एनएसडी में डिप्लोमा लेने के साथ-साथ मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री भी ली।

रेपेट्री कंपनी में जाने के बारे में क्यों सोचा था।

जब मेरा डिप्लोमा एनएसडी में पूरा हो गया तो मुझे लगा कि मुझे अभी और सीखना है। उन्हीं दिनों रेपेट्री कंपनी में मनोहर सिंह , उत्तराभाव , सोएका सीकृति ये बड़े नाम थे। उनके अभिनय को लेकर मैं अचम्भित हो जाता था। मुझे लगता था ये लेवल होना चाहिये अगर मैं एक्टिंग करूं तो और इन लोगों ने डिप्लोमा पूरा करने के बाद रेपेट्री कंपनी में 5 या 8 साल गुजारे हैं तो मुझे कम से कम 10 साल तो गुजारना ही चाहिये।

इनके बीच में रह कर। बस वहीं मैंने डिसाइड किया और 1978 में रेपेट्री कंपनी ज्वाइन की और 1989 तक रेपेट्री कंपनी में रहा। 11 साल रेपेट्री कंपनी में गुजारने के बाद मैंने डिसाइड किया कि मुझे अब मुंबई की तरफ रूख करना चाहिये और मार्च 1989 में रिजाइन किया। उसके बाद 1990 में मुंबई आ गया।

आपका एक प्ले था अंधा युग उसके बारे में कुछ बताइये।

उस प्ले का निर्देशन एमके राणा ने किया था। उसमें मैने अश्वथामा का किरदार निभाया था जो उस प्ले का मेन रोल था। उन्हीं दिनों बर्लिन का थियेटर फेस्टिवल हुआ करता था, वहां से हम लोगों को निमंत्रण आया थियेटर फेस्टिवल में भाग लेने का। फिर ये निर्णय लिया गया कि इस फेस्टिवल के लिये अंधा युग को तैयार किया जाए।

हम बर्लिन गए। ये नाटक युद्ध के खिलाफ था जर्मन्स ने युद्ध बहुत झेला है। जहां हमने ये नाटक किया उस हॉल में ट्रांसलेटर भी था क्योंकि हमारा प्ले हिंदी में था। तो ट्रांसलेटर के कारण सबको समझ आ रहा था उस नाटक में क्या बोला जा रहा है। एक डर भी था कि प्ले अच्छा नहीं हुआ तो हिंदुस्तान की नाक कट जाएगी। जब प्ले खत्म हुआ तो तकरीबन 8 मिनट तक लोगों ने खड़े होकर तालियां बजाई और इस तरह से हमारा प्ले अच्छा रहा।

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मुंबई जाने के बाद पहली फिल्म कौन सी थी।

मेरी पहली फिल्म थी केतन मेहता की सरदार पटेल थी उस फिल्म को बनने में तकरीबन साढ़े तीन साल लग गए। लेकिन उसी दौरान शोला और शबनम मुझे मिल गई वो जल्दी से बनकर तैयार भी हो गई और रिलीज भी हो गई। इसलिये मेरी पहली रिलीज फिल्म शोला और शबनम है। उसके बाद शेखर कपूर से मिले और बैंडिट क्वीन में मुझे विलेन का किरदार दिया। उस फिल्म की वजह से मुझे आरके बैनर की फिल्म मिली प्रेम ग्रंथ। उसके बाद मुझे लगातार फिल्में मिलती रहीं और आज भी कर रहा हूं।

लखनऊ में जिस फिल्म की शूटिंग चल रही है उस फिल्म का विषय क्या है।

ये फिल्म हिंदू मुस्लिम एकता को लेकर है। जिस तरह से हिंदू-मुस्लिम में दूरियां बढ़ रही हैं इसका समाधान सिर्फ भाई-चारा ही है। इस बात को रेखांकित करते हुए ये फिल्म बनाई जा रही है। ये थोड़ा आर्ट फिल्म टाइप है। फिल्म में रवि किशन, यशपाल शर्मा के साथ मैं हूं।

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